राजनैतिक संस्कृति सुधरने के बजाय बिगड़ी!
आठ साल पहले नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने देश में नई राजनीतिक संस्कृति शुरू करने का वादा किया था। उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था, जिसकी एक व्याख्या यह की गई कि वे कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति से देश को मुक्त करना चाहते हैं। यह बड़ा मनभावन नारा था क्योंकि इस हकीकत से किसी को इनकार नहीं होगा कि आजादी के बाद सात दशक में सभी राजनीतिक दल किसी न किसी रूप में कांग्रेस की कार्य संस्कृति को अपना चुके थे- यहां तक कि भाजपा भी। तभी संघ-भाजपा के विचारक गोविंदाचार्य ने भाजपा को भगवा कांग्रेस कहना शुरू कर दिया था। जब नरेंद्र मोदी ने राजनीति को बदलने की बात कही तो यह उम्मीद बंधी थी कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति से देश को मुक्ति मिलेगी। पार्टियों की राजनीतिक संस्कृति के साथ साथ प्रधानमंत्री मोदी ने दशकों से चली आ रही राजनीतिक कुरीतियों को भी खत्म करने का संकल्प जताया था और इसका एक रोडमैप भी सामने रखा था। उनके दूसरे कार्यकाल के तीन साल पूरे होने के मौके पर उनकी उपलब्धियों का लेखा-जोखा करते हुए आर्थिक, सामाजिक, सामरिक व वैश्विक नीतियों के साथ साथ इस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि राजनीति कितनी बदली।
देश की राजनीति को बदलने के लिए मोदी ने जो रोडमैप रखा था, उसमें चार बातें मुख्य थीं। पहली बात देश के सारे चुनाव एक साथ कराने की थी क्योंकि हर साल चुनाव होने से विकास की गतिविधियां प्रभावित होती हैं। दूसरी बात राजनीति की ऊपर से सफाई करने की थी। उन्होंने कहा था कि वे नीचे से नहीं, बल्कि ऊपर से राजनीति की सफाई करेंगे और सबसे पहले दागी-आरोपी नेताओं को सजा दिलाएंगे। तीसरी बात राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की थी और चौथी बात राजनीति को वंशवाद-परिवारवाद से मुक्त करके उसे समावेशी बनाने की थी। कहने की जरूरत नहीं है कि ये चारों बातें भारतीय राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए जरूरी हैं। लेकिन अगर आठ साल का इतिहास देखें तो पता चलता है कि इनमें से किसी एजेंडे पर आंशिक रूप से भी अमल नहीं हुआ है।
सबसे पहले एक साथ चुनाव की बात करते हैं। नरेंद्र मोदी ने अनेक बार एक देश, एक चुनाव की बात कही है। चुनाव आयोग भी उनकी इस बात से हर बार सहमति जताता है। लेकिन पिछले आठ साल में एक ठोस पहल चुनाव आयोग की ओर से यह हुई है कि आयोग ने हर चुनाव के लिए एक कॉमन वोटर लिस्ट बनाने का फैसला किया है। इसके अलावा कोई फैसला या कोई पहल ऐसी नहीं हुई है, जिससे लगे कि आने वाले दिनों में सारे चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। अभी सारे चुनाव एक साथ कराने की बाधाओं और उसके गुण-दोष पर चर्चा नहीं हो रही है। वह अलग मुद्दा है लेकिन हकीकत यह है कि इस दिशा में रत्ती भर भी पहल नहीं हुई है। इसी साल की मिसाल है, जब फरवरी-मार्च में पांच राज्यों में चुनाव हुए हैं और नवंबर में हिमाचल प्रदेश में व दिसंबर में गुजरात में चुनाव होने हैं। गुजरात और हिमाचल दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार है और अगर भाजपा चाहती तो इन दोनों राज्यों के चुनाव फरवरी-मार्च में पांच राज्यों के साथ हो सकते थे। इसमें किसी विपक्षी पार्टी की सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं थी। एक साथ चुनाव कराने की दिशा में यह एक पहल होती। ऐसे ही अगले साल फरवरी में पूर्वोत्तर के कई राज्यों में चुनाव है। उसके बाद मई में कर्नाटक में चुनाव है और साल के अंत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनाव हैं। हकीकत यह है कि पिछले आठ साल में राज्यों के चुनाव को आगे-पीछे करके, ज्यादा से ज्यादा राज्यों में एक साथ चुनाव कराने की कोई पहल नहीं हुई है।
दूसरी बात दागी-आरोपी नेताओं को सजा दिला कर राजनीति की ऊपर से सफाई की है तो इस मामले में भी रत्ती भर तरक्की नहीं हुई है। नेताओं से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की पहल जरूर हुई लेकिन वह पहल सिरे नहीं चढ़ सकी। एकमात्र नेता, जिनको सजा होने की चर्चा की जा सकती है तो वो लालू प्रसाद हैं। लेकिन उनको भी सजा किसी राजनीतिक पहल की वजह से नहीं हुई है, बल्कि दो दशक से ज्यादा समय की सुनवाई के बाद हुई है। बाकी सारे नेताओं के मुकदमे जस के तस हैं। उलटे पिछले आठ साल में राजनीति और गंदी होती गई है। सभी राज्यों में और सभी पार्टियों में आरोपी सांसदों-विधायकों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।
भाजपा भी अपवाद नहीं है। उत्तर प्रदेश की मिसाल से पूरे देश का अंदाजा लग जाएगा। 10 मार्च 2022 को आए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा के 255 विधायक हैं, जिनमें से 111 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के हलफनामे का विश्लेषण करके एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नाम की संस्था ने बताया है कि भाजपा के 95 विधायकों के ऊपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। उत्तर प्रदेश इकलौता राज्य है, जहां कुल चुने गए प्रतिनिधियों में से 51 फीसदी के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। सोचें, राजनीति की सफाई की दिशा में देश किस तरफ बढ़ा है?
तीसरी बात राजनीतिक चंदे के सिस्टम को पारदर्शी बनाने की थी। लेकिन इस मामले में तो पूरी तरह से उलटा काम हो गया है। सरकार ने राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता पूरी तरह से समाप्त कर दी है। अब किसी को पता नहीं चल पाता है कि किस कारोबारी घराने ने किस ट्रस्ट के माध्यम से किस दल को कितना चंदा दिया। सिर्फ इतना पता चल रहा है कि मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बांड की जो व्यवस्था लागू की है उससे 90 फीसदी के करीब चंदा भाजपा के खाते में जा रहा है। राजनीतिक चंदे की रही सही पारदर्शिता भी इस नियम से समाप्त हो गई। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद कानून बना कर राजनीतिक दलों को चंदे के मामले में एक और बड़ी छूट दी। सरकार ने मार्च 2018 में यह कानून पास किया कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले विदेशी चंदे की जांच नहीं होगी। इस कानून की वजह से किसी भी पार्टी को 1976 के बाद मिले विदेशी चंदे की जांच नहीं हो सकेगी।
चौथी बात राजनीति को वंशवाद और परिवारवाद से मुक्त करने की थी। चार बातों में से यह एकमात्र बात है, जिसे प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा दोहराते हैं। लेकिन क्या सचमुच राजनीति वंशवाद से मुक्त हुई है? कांग्रेस पार्टी जरूर कमजोर हुई है लेकिन क्या सिर्फ उससे राजनीति में वंशवाद खत्म हो जाएगा? पूरे देश में एक परिवार के असर वाली पार्टियां फल-फूल रही हैं और उनमें से कई पार्टियों के साथ भाजपा का भी तालमेल है। भाजपा खुद राजनीति के युवराजों की अंतिम शरणस्थली बनी है। किसी भी पार्टी का युवराज भाजपा में शामिल हो सकता है और महत्वपूर्ण पद हासिल कर सकता है। सो, इस मामले में भी सिर्फ बातें हुई हैं, कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
कुल मिला कर स्थिति यह है कि पहले से जो खामियां थीं वो खत्म होने की जगह बढ़ रही हैं और साथ साथ नई खामियां आ गई हैं। बदला लेने की राजनीति की एक नई संस्कृति देश में फल-फूल रही है। विपक्ष को प्रतिद्वंद्वी की बजाय जानी दुश्मन मान कर उसे खत्म करने की संस्कृति पैदा हो गई है। विपक्ष के नेताओं पर झूठे-सच्चे आरोप लगा कर और सोशल मीडिया के जरिए उन आरोपों का प्रचारित कर नेताओं की साख खराब करने की एक नई संस्कृति भी देखने को मिल रही है। अपनी कमीज उजली दिखाने के लिए दूसरों की कमीज पर कीचड़ फेंकने की जो संस्कृति हाशिए पर थी उसे राजनीति के केंद्र में ला दिया गया है।