बीजेपी की वन फैमिली-वन टिकट पॉलिसी से राजस्थान के राजनीतिक परिवारों को लगेगा झटका
जयपुर। संगठन के गलियारों से सत्ता की चकाचौंध में जाने को लेकर बीजेपी में बदलाव की बयार चल रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में भोपाल में कहा कि बीजेपी अपनी पार्टी में नेताओं के बच्चों को टिकट नहीं देगी। अगर बेटे को टिकट दिलाना है तो पिता को टिकट दावेदारी से हटना पड़ेगा। इसके अलावा बीजेपी 70 प्लस नेताओं को भी टिकट न देने पर विचार कर रही है। इन नए फार्मूलों से राजस्थान के कई वरिष्ठ नेताओं का राजनीतिक गणित गड़बड़ा जाएगा। इसकी जद में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी आ सकती हैं।
बीजेपी में वन फैमिली-वन टिकट का फॉर्मूला लोकसभा से लेकर निकाय सहित सभी चुनाव पर भी लागू होगा। इससे राजस्थान के दो दर्जन से ज्यादा राजनीतिक परिवारों को झटका लगा है। कई बीजेपी नेता चुनावों में बेटों-बहुओं या सगे संबंधियों को टिकट दिलाने का सपना देख रहे थे।
वन फैमिली-वन टिकट के पक्ष में बीजेपी अध्यक्ष
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक जून को मध्य प्रदेश में परिवारवाद के कॉन्सेप्ट को समझाया। नड्डा ने संकेतों में समाजवादी पार्टी पर प्रहार करते हुए कहा कि पिता अध्यक्ष, बेटा जनरल सेक्रेटरी। पार्लियामेंट्री बोर्ड में चाचा-ताया-ताई. हमारा मानना है कि यह परिवारवाद है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यूपी के कई सांसदों के बेटे राजनीति में अच्छा काम कर रहे थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया। वहां कह दिया गया है कि नेताओं के बेटे फिलहाल संगठन के काम में लगे रहें।
बीजेपी में 70 प्लस को टिकट न देने पर विचार
इन संकेतों के आधार पर राजस्थान की पड़ताल करें तो कई कद्दावर सियासी परिवारों के समीकरण बदल जाएंगे। यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके बेटे सांसद दुष्यंत सिंह भी पार्टी की नई नीति में फंस सकते हैं।राजस्थान में 2023 में विधानसभा और 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। टिकट के लिए आयु सीमा और वन फैमिली-वन टिकट फॉर्मूला लागू होने के चलते कयास अभी से लगने लगे हैं कि वसुंधरा-दुष्यंत में से किसे टिकट मिलेगा। और किसका पत्ता कट सकता है। राजस्थान के कद्दावर सियासी परिवारों की राजनीति, रणनीति, कमजोर और मजबूत पक्ष।
विधानसभा चुनाव से समय राजे हो जाएंगी 70 पार
साल 2003 में वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके बेटे दुष्यंत सिंह को वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव का टिकट मिला। इसके बाद हुए हर विधानसभा चुनाव में राजे और हर लोकसभा चुनाव में न सिर्फ दोनों को टिकट मिला, बल्कि वसुंधरा-दुष्यंत जीते भी। दुष्यंत सिंह लगातार चार बार से सांसद हैं और राजे दो बार मुख्यमंत्री रहीं।
राजे मजबूत पक्ष – राजस्थान में प्रदेशव्यापी प्रभाव, राज्य और देश की राजनीति का चेहरा। वो राज्यसभा चुनाव में एक बार फिर सीएम फेस बनने के लिए रणनीति बना रही हैं।
कमजोर पक्ष – राज्य में विधानसभा चुनाव के समय उनकी उम्र 70 वर्ष 8 महीने होगी। इसलिए राज्य से हटाकर संगठन की राष्ट्रीय राजनीति में लाया जा सकता है।
…तो दुष्यंत सिंह का टिकट कट सकता है
दुष्यंत मजबूत पक्ष – लोकसभा के लिए अनुभवी चेहरा। चार बार सांसद और राजे के प्रभाव का फायदा मिल सकता है। राजे को राष्ट्रीय राजनीति में लाने का फैसला हुआ तो विधानसभा चुनाव में दुष्यंत को टिकट मिलने की ज्यादा संभावना।
कमजोर पक्ष- राज्य की राजनीति में ज्यादा प्रभाव नहीं। न ही राज्य के कद्दावर नेताओं में शुमार। वसुंधरा राजे को टिकट मिला तो वन फैमिली-वन टिकट के फार्मूले पर लोकसभा में दुष्यंत का टिकट कट सकता है।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के भी आड़े आएगी उम्र
अर्जुन राम मेघवाल लगातार तीन बार से लोकसभा का चुनाव जीत रहे हैं। उनके बेटे रवि मेघवाल भी राजनीति में सक्रिय हैं। हालांकि उनको पहले चुनाव में ही तेज झटका लगा और पिछला पंचायत चुनाव बुरी तरह हार गए। इससे पंचायत चुनाव जिताकर प्रमुख बनाने की योजना फेल हो गई।
मेघवाल मजबूत पक्ष – केंद्रीय मंत्री और बतौर सांसद बेदाग छवि, विवादों से हमेशा दूर रहे।
कमजोर पक्ष – 70 से ज्यादा उम्र टिकट के रास्ते में बाधा बन सकती है।
रवि मजबूत पक्ष – अर्जुन राम अपनी जगह पर बेटे को टिकट दिलाने की सिफारिश कर सकते हैं।
कमजोर पक्ष – पंचायत चुनाव में हार और वन फैमिली-वन टिकट का फार्मूला कारण बनेगा।
शेखावत के भतीजे के बेटे की खुल सकती है लॉटरी
पूर्व उप राष्ट्रपति और राजस्थान में बीजेपी की राजनीति के सबसे कद्दावर नेता रहे भैरों सिंह शेखावत के भतीजे नरपत सिंह राजवी अभी अगला चुनाव लड़ने के मूड में है। हालांकि उम्र के बंधन में पेंच फंस सकता है। तब उनके बेटे अभिमन्यु राजवी की लॉटरी लग सकती है।
राजवी मजबूत पक्ष – राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व करने वाला चेहरा। अनुभवी हैं और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत के भतीजे हैं।
कमजोर पक्ष – भाजपा 70 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को टिकट नहीं देने का फैसला लागू करती है तो टिकट कट सकता है।
अभिमन्यु राजवी
मजबूत पक्ष – युवा चेहरा होने के कारण बीजेपी पिता की जगह पर बेटे को प्राथमिकता दे सकती है।
कमजोर पक्ष – यदि पिता को विधानसभा में उतारा तो बेटे को टिकट नहीं मिल पाएगा।
नड्डा का फार्मूला इन परिवारों पर भारी पड़ेगा
सांसद राहुल कस्वां का पूरा परिवार ही राजनीति में सक्रिय है। उनके पिता राम सिंह कस्वा पूर्व सांसद रहे हैं। राहुल कस्वां की मां कमला पूर्व विधायक और समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष रह चुकी हैं। इसके अलावा सांसद नरेंद्र खीचड़, उनकी बहु हर्षिनी कुलहरी जिला प्रमुख झुंझुनूं, बेटी नीलम नगर परिषद पार्षद, बेटा अतुल खीचड़ भी राजनीति में सक्रिय और टिकट का दावेदार है।
टिकट फाइनल करना आलाकमान का काम
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां के मुताबिक प्रदेश नेतृत्व का काम उम्मीदवारों के सीटवार पैनल बनाकर देने का होता है। विधानसभा हो या लोकसभा या फिर कोई भी और चुनाव, पार्टी में टिकट वितरण आलाकमान के निर्देशानुसार ही होता है। बीजेपी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देती। इसलिए पिता, पुत्र या किसी अन्य रिश्तेदार में से किसी एक जिताऊ उम्मीदवार को ही टिकट दिया जा सकता है।
राजस्थान बीजेपी के और पिता-पुत्र दावेदार….
पूर्व मंत्री डॉ जसवंत यादव और उनका बेटा मोहित यादव।
पूर्व सांसद कर्नल सोनाराम और उनका बेटा डॉक्टर रमन चौधरी।
पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी और उनका बेटा मनीष सैनी।
पूर्व मंत्री डॉक्टर राम प्रताप और उनका बेटा अमित साहू।
पूर्व मंत्री सुरेन्द्र पाल टीटी और उनका बेटा समनदीप सिंह।
पूर्व विधायक गुरजंट सिंह और उनका पौत्र गुरबीर सिंह।
पूर्व विधायक हेमराज मीणा और उनका बेटा पूर्व विधायक ललित मीणा।
पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राव राजेन्द्र सिंह और उनका बेटा देवायुश सिंह।
पूर्व विधायक लादूराम बिश्नोई और उनका बेटा कृष्ण बिश्नोई।