प्रदेशों में भाजपा के अंदर गुटबाजी
भाजपा बहुत अनुशासित और संगठित पार्टी है। ऊपर से जब से नरेंद्र मोदी और अमित शाह की कमान बनी है तब से पार्टी के अंदर कुछ ज्यादा ही अनुशासन बहाल हो गया है। यह सोचा ही नहीं जा सकता है कि पार्टी के नेता केंद्रीय नेतृत्व के किसी फैसले पर सवाल उठाएं और आपस में लड़ाई करें। लेकिन असल में ऐसा हो रहा है। खास कर उन राज्यों में, जहां भाजपा विपक्ष में है। जहां भाजपा सरकार में है वहां भी गुटबाजी है लेकिन चूंकि मुख्यमंत्रियों को आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त है इसलिए वहां विवाद सामने दिखता नहीं है। जहां पार्टी विपक्ष में है वहां गुटबाजी बहुत साफ दिख रही है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि भाजपा राज्य सरकारों के खिलाफ प्रभावी विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रही है।
झारखंड में विधानसभा बने ढाई साल हो गए हैं और अभी तक सरकार ने भाजपा विधायक दल के नेता को नेता विपक्ष का दर्जा नहीं दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी विधायक दल नेता हैं लेकिन उनकी पार्टी टूटने और उसके भाजपा में विलय को लेकर तकनीकी सवालों के आधार पर उनको नेता विपक्ष का दर्जा नहीं मिल पा रहा है। पर पार्टी की ओर से इसके लिए कोई आंदोलन या विरोध नहीं है। विधानसभा में भी सब कुछ सामान्य तरीके से चलता है। मरांडी की टीम उनको मुख्यमंत्री बनवाने में लगी है तो दूसरी ओर पार्टी के ज्यादातर नेता इसे रोकने में लगे हैं।
ऐसे ही राजस्थान में वसुंधरा राजे बनाम अन्य की खींचतान चल रही है। वसुंधरा खेमा उनके चेहरे पर अगला चुनाव लड़ने का दबाव बना रहा है तो प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत यह लाइन पकड़े हुए हैं कि नेता का नाम पार्टी आलाकमान तय करेगा। इसी तरह की खींचतान महाराष्ट्र में भी चल रही है, जहां देवेंद्र फड़नवीस बनाम चंद्रकांत पाटिल का मसला सुलझ नहीं रहा है। कई जानकारों का मानना है कि अगर यह मामला सुलझ जाता तो वहां भाजपा की सरकार बन जाती। दिल्ली में सारे पुराने नेता घर बैठा दिए गए हैं लेकिन नए नेताओं में भी पूर्व अध्यक्ष मनोज तिवारी बनाम मौजूदा अध्यक्ष आदेश गुप्ता बनाम उससे पहले के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय बनाम विधायक दल के नेता विजेंद्र गुप्ता की वजह से पार्टी एकजुट नहीं हो पा रही है।