झूठी उम्मीदों और मतिभ्रम का शिकार कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी के नेता झूठी उम्मीदों के सहारे जी रहे हैं। पहली बार चुनाव हार कर 44 सीटों पर आने के बाद कांग्रेस के नेता कह रहे थे कि अब इससे नीचे क्या जाएंगे। इसके बाद तो सुधार ही होना है। पांच साल के बाद सुधार हुआ लेकिन सिर्फ आठ सीट का। पार्टी 44 से बढ़ कर 52 पहुंची। उसके बाद भी कांग्रेस नेता कहते मिले कि अब तो इससे बेहतर ही होगा। आधा दर्जन राज्यों में लगातार दो चुनाव में लोकसभा की सारी सीटें हारने के बाद कांग्रेस नेता उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अगली बार सुधार हो जाएगा। उनको जमीन पर बदलती राजनीतिक हकीकत का अंदाजा ही नहीं है। एकाध राज्यों में भारतीय जनता पार्टी चुनाव हारती है वे इस मतिभ्रम का शिकार हो जाते हैं कि अब लोकसभा में भाजपा हार जाएगी या कांग्रेस की स्थिति सुधर जाएगी। दर्जनों चुनाव हारने के बाद कांग्रेस 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव जीती लेकिन लोकसभा चुनाव में क्या हुआ? इन तीन राज्यों की 65 सीटों में 62 सीटें भाजपा जीत गई। जिस छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 70 सीटों पर जीती वहां भी भाजपा लोकसभा की 11 में से नौ सीटों पर चुनाव जीती।

लगातार दूसरी बार बुरी तरह से लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस ने क्या कोई सबक लिया? कांग्रेस के नेता इस झूठी उम्मीद में बैठे रहे कि इसके बाद सब ठीक हो जाएगा। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद 17 चुनाव हुए और हर जगह कांग्रेस हारी। फिर भी कांग्रेस के कथित दिग्गज नेता और रणनीतिकार मान रहे हैं कि अब सब ठीक हो जाएगा क्योंकि उनका सोचना है कि इससे नीचे अब क्या जाएंगे! लेकिन उनको पता नहीं है कि कांग्रेस इससे कितना नीचे जा सकती है। उन्होंने पतन का निचला बिंदु अभी नहीं देखा है। अगर कांग्रेस इसी तरह राजनीति करती रही, जैसी अभी कर रही है तो उसकी और दुर्गति होगी। ऐसे में कांग्रेस के पास एक मौका खुद चल कर आया था। प्रशांत किशोर ने कांग्रेस की किस्मत बदलने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन कांग्रेस ने घर आए मौके को ठुकरा दिया। अब कांग्रेस के कई नेता इस बात से खुश हैं कि प्रशांत का सारा आइडिया मिल गया है और उससे कांग्रेस की किस्मत पलट देंगे। लेकिन ध्यान रहे उधार के आइडिया से कांग्रेस का भला नहीं होने वाला है।

प्रशांत किशोर ने अपने प्रेजेंटेशन में इम्पावर्ड एक्शन ग्रुप बनाने का सुझाव दिया था। उन्होंने युवाओं के लिए, मध्य वर्ग के लिए, एससी-एसटी के लिए और कुछ अन्य समूहों के लिए कुल आठ ग्रुप बनाने का सुझाव दिया था। उनके इस आइडिया को कॉपी करते हुए कांग्रेस ने छह इम्पावर्ड एक्शन ग्रुप बना दिया और अब कांग्रेस नेता खुश हैं कि इससे पार्टी का कायाकल्प हो जाएगा। कांग्रेस के नेता खुश हैं कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस में नहीं घुसने दिया। वे सोशल मीडिया में किलकारी मारते हुए लिख रहे हैं कि कांग्रेस ने अपने को बचा लिया! पता नहीं प्रशांत किशोर कांग्रेस का क्या कर देते! उनको प्रशांत के अनदेखे खतरे की चिंता थी लेकिन सामने जो खतरा है उसके प्रति कोई चिंता नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष ने भूपेंदर सिंह हुड्डा को एक कमेटी का संयोजक बनाया है। कल उनको पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाती है या उनकी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनता है और उनको मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित नहीं किया जाता है तो वे अलग पार्टी बना लेंगे और कांग्रेस मुंह देखते रह जाएगी। पूरी पार्टी ऐसे ही नेताओं से भरी पड़ी है, जिनके लिए अपना हित सबसे ऊपर है और अगर वह नहीं पूरा होता तो पलक झपकने में जितना समय लगता है उतने समय में वे पार्टी छोड़ कर चले जाते हैं।

हैरान करने वाली बात है कि प्रशांत किशोर ने आधा दर्जन उन पार्टियों के साथ काम किया है, जो भाजपा विरोध की राजनीति करती हैं। लेकिन किसी पार्टी में इस तरह मतिभ्रम पैदा नहीं हुआ कि प्रशांत के कारण पार्टी की विचारधारा कमजोर होगी या प्रशांत भाजपा के आदमी हैं इसलिए नुकसान कर देंगे। ऐसी चिंता सिर्फ कांग्रेस में हुई है। क्या एमके स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने प्रशांत किशोर के साथ काम किया तो द्रविड मूवमेंट से निकली उनकी विचारधारा खत्म हो गई या प्रशांत ने उनके साथ धोखा कर दिया? दो बार से चुनाव हार रही डीएमको को मिली जीत में प्रशांत किशोर का बड़ा योगदान रहा। चाहे डीएमके हो या राजद, समाजवादी पार्टी हो या तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी हो या टीआरएस प्रशांत किशोर के कारण किसी की विचारधारा या पार्टी खतरे में नहीं आई, सिर्फ कांग्रेस पार्टी खतरे में आ रही थी!

पीके ने जितनी पार्टियों के लिए काम किया उनमें से किसी में यह चिंता नहीं हुई कि वे पार्टी कब्जा कर लेंगे। यह चिंता भी सिर्फ कांग्रेस में हुई। जिन पार्टियों के पास वोट की पूंजी है उनको भी यह चिंता नहीं हुई कि प्रशांत किशोर उनके राज भाजपा को बता देंगे। लेकिन वोट की पूंजी के लिहाज से जो पार्टी ठन ठन गोपाल है उसको इस बात की चिंता हो गई कि पीके भाजपा के एजेंट हैं और कांग्रेस के राज भाजपा को बता देंगे। कांग्रेस के नेता 11 करोड़ वोट का हल्ला मचाते हैं पर इसमें से आठ करोड़ के करीब वोट अल्पसंख्यकों का है, जो उन्हीं जगहों पर कांग्रेस को मिला है, जहां विकल्प नहीं है। विकल्प मिलते ही वे कांग्रेस को छोड़ेंगे और तब कांग्रेस को पता चलेगा कि गिरावट का आखिरी पायदान कहां है। जैसे अभी उत्तर प्रदेश में पता चला है। प्रशांत किशोर ने चुनाव लड़ाया था तब सौ सीट लड़ कर कांग्रेस को सात फीसदी वोट मिले थे और प्रियंका गांधी वाड्रा के चेहरे पर कांग्रेस के दिग्गजों ने चुनाव लड़ाया तो चार सौ सीट लड़ कर 2.43 फीसदी वोट मिले हैं। कांग्रेस के जो नेता कहते हैं कि लोकसभा की 50 सीट से नीचे क्या जाएंगे, उनको यूपी का चुनाव नतीजा देखना चाहिए। कांग्रेस पूरे देश में उतना नीचे जा सकती है, जितना यूपी में गई है।

यह असल में कांग्रेस के परजीवी नेताओं का असुरक्षा बोध है, जिसकी वजह से प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री नहीं हो सकी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के आसपास के बिना जनाधार वाले, परजीवी नेताओं ने प्रशांत किशोर का डर दिखा कर उनका रास्ता रोक दिया। सोचें, इतनी पुरानी और बड़ी पार्टी एक व्यक्ति से डर गई, जबकि उस व्यक्ति के हाथ में कांग्रेस कोई सेल डीड नहीं देने वाली थी। कांग्रेस पार्टी का बयनामा प्रशांत किशोर के नाम से नहीं होने वाला था। फिर किस बात का डर था, जो कांग्रेस ने खुले दिल से उनको पार्टी में लेकर चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी नहीं दी? यह भी अहम सवाल है कि कांग्रेस के पास क्या पूंजी है, जो वे लूट कर ले जाते? कांग्रेस पिछले तीन साल में 17 चुनाव हारी है और पिछले आठ साल में 50 के करीब चुनाव हार चुकी है। इसके मुकाबले जीत सिर्फ चार-पांच चुनावों में मिली है, जबकि प्रशांत किशोर आज तक सिर्फ एक चुनाव हारे हैं। वे अपना सफलतम ब्रांड दांव पर लगा कर एक मरी हुई पार्टी को जिंदा करना चाह रहे थे। लेकिन कांग्रेस नेताओं ने तय किया कि पार्टी जिंदा हो या न हो लेकिन प्रशांत किशोर को पार्टी में नहीं आने देना है।

प्रशांत किशोर की असली समस्या यह है कि उन्होंने खुल कर कांग्रेस और उसके नेतृत्व की कमियां बताईं। उन्होंने परिवार के बाहर का अध्यक्ष या कम से कम कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि 1885 से 1998 तक कांग्रेस के 61 अध्यक्ष हुए और उनका औसत कार्यकाल 1.85 साल का था, जबकि पिछले 23 साल में सिर्फ दो अध्यक्ष हुए हैं। पीके ने बताया कि 65 फीसदी जिला अध्यक्षों की कांग्रेस अध्यक्ष या संगठन महासचिव से मुलाकात नहीं हुई है। उन्होंने खुल कर कहा कि कांग्रेस की फैसला करने वाली ईकाई के ज्यादातर सदस्य सदस्य ड्राइंग रूम की पोलिटिक्स करनेवाले हैं और चुनाव नहीं लड़ते हैं। प्रशांत किशोर की समस्या है कि वे परजीवी नेताओं की पहचान करके उनको दूर करते हैं। लेकिन कांग्रेस में पूरी कमान परजीवी नेताओं के हाथ में है। प्रशांत कि समस्या यह भी है कि वे वस्तुनिष्ठ तरीके से एलायंस की बात करते हैं, सीटों की पहचान करते हैं और जीतने की क्षमता वाले उम्मीदवार तय कराते हैं, जबकि कांग्रेस में जिसको भी जिम्मा दिया जाता है वह टिकट बेचता है और पैसे आपस में बंटते हैं। पंजाब और उत्तराखंड के हाल के चुनाव में टिकट बेचे जाने के आरोप जिन नेताओं पर लगे वे खुद ही उन आरोपों की जांच कर रहे हैं। सोचें, ऐसे नेता क्यों प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल होने देंगे।

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