क्या है राजद्रोह कानून का इतिहास? 2010 से लेकर अब तक कितने मामले हुए दर्ज

राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। SC ने री-एग्जामिन प्रोसेस पूरा होने तक इस कानून पर रोक लगा दी है। यानी जब तक री-एग्जामिन प्रोसेस पूरा नहीं हो जाता, तब तक आईपीसी की धारा 124ए के तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को धारा 124ए के प्रावधानों पर फिर से विचार करने के लिए कहा है। ये वही धारा है जो राजद्रोह को अपराध बनाती है।

राजद्रोह कानून क्या है?

राजद्रोह कानून का उल्लेख आईपीसी की धारा 124ए में मिलता है। इसके मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ कुछ लिखता या बोलता है, या किसी ऐसी सामग्री का इस्तेमाल करता है, जिससे देश को नीचा दिखाया जाए, या फिर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होता है तो उसके खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया जाता है। ये कानून अंग्रेजों के शासन के दौरान साल 1870 में बना था। उस दौरान इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों के लिए किया जाता था। पहली बार राजद्रोह का केस बंगाल के एक पत्रकार जोगेंद्र चंद्र बोस पर साल 1891 में लगाया गया था। वो अंग्रेजी हुकूमत की इकोनॉमिक पॉलिसी और बाल विवाह के खिलाफ बने कानून के विरोध में थे।

मोदी सरकार में आई राजद्रोह के केसों में तेजी

भारत में पहले राजद्रोह के केसों का डाटा नहीं रखा जाता था, लेकिन साल 2014 से यानी NCRB ने इसका डाटा रखना शुरू किया। भारत में वैसे तो पहले भी बहुत लोगों पर राजद्रोह के केस लगते रहे हैं लेकिन साल 2014 में देश में मोदी सरकार के आने के बाद इन केसों में बढ़ोतरी हुई। आंकड़े कहते हैं कि साल 2014 से 2017 के बीच राजद्रोह के 163 मामले दर्ज किए गए और साल 2018-20 तक इन मामलों की संख्या 236 तक पहुंच गई।

साल 2010 से 2021 तक राजद्रोह के 867 मामले

आंकड़ों के मुताबिक, साल 2010 से साल 2021 तक राजद्रोह के 867 मामलों में 13,306 लोगों को बुक किया गया। इसमें बिहार, तमिलनाडु और यूपी में इस कानून (Sedition law) का खूब इस्तेमाल हुआ। वहीं मिजोरम, मेघालय और नागालैंड में साल 2010 के बाद कोई राजद्रोह का केस दर्ज नहीं हुआ। जिन राज्यों में सबसे ज्यादा राजद्रोह के आरोपी रहे, उनकी संख्या झारखंड में 4641, तमिलनाडु में 3601, बिहार में 1608, यूपी में 1383 और हरियाणा में 509 है।

नॉन बीजेपी शासित राज्यों में ज्यादा केस फाइल हुए

बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के दौरान 161 राजद्रोह के केस फाइल हुए और 1498 लोग आरोपी बनाए गए। तमिलनाडु में जयललिता की सरकार के दौरान 125 राजद्रोह के केस फाइल हुए और 3402 लोग आरोपी बनाए गए। यूपी में योगी सरकार में राजद्रोह के 100 केस फाइल हुए, जिसमें 1049 लोग आरोपी बनाए गए। झारखंड में रघुवर दास की सरकार में 46 राजद्रोह के मामले सामने आए जिसमें 1581 लोग आरोपी बनाए गए। कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी की सरकार में राजद्रोह के 18 मामले सामने आए, जिसमें 77 लोग आरोपी बनाए गए। हैरानी की बात ये भी है कि जिन राज्यों में सबसे ज्यादा राजद्रोह के केस दर्ज हुए, वह नॉन बीजेपी शासित राज्य हैं।

बीते 11 सालों में करीब 70 फीसदी केस 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद सामने आए

राजद्रोह के केसों को लेकर ये आंकड़ा थोड़ा हैरान करने वाला है। बीते 11 सालों में जितने राजद्रोह के मामले सामने आए हैं, उनमें से करीब 70 फीसदी केस साल 2014 के बाद से सामने आए हैं। 2014 वही साल था, जब देश में मोदी सरकार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 से 595 राजद्रोह के केस सामने आए जोकि 2010 से अब तक सामने आए कुल केसों का 69 फीसदी है। मिली जानकारी के मुताबिक, जिन लोगों पर राजद्रोह के केस लगे, उनमें 653 पुरुष और 94 महिलाओं के केस हैं।

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