अभिव्यक्ति पर चौतरफा खतरा
लोकतंत्र को कमजोर करने या खत्म कर देने के वैसे तो कई तरीके हैं लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से इसे कमजोर करना अब तक सबसे प्रभावी साबित हुआ है। इंदिरा गांधी ने लोकतांत्रिक तरीके से ही इमरजेंसी लगाई थी, अपने विरोधियों को गिरफ्तार किया था और प्रेस सेंसरशिप लागू की थी। उन्होंने कोई असंवैधानिक काम नहीं किया था। संविधान में दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करके ही लोकतंत्र का गला दबाया था। मौजूदा समय में भी लोकतंत्र को कमजोर करने वाले जितने तरह के काम हो रहे हैं, सब लोकतांत्रिक तरीके से हो रहे हैं। विरोधियों को गिरफ्तार करने या उनकी आवाज दबाने का काम कानूनी तरीके से ही किया जा रहा है। गैरकानूनी या संविधानेत्तर कुछ भी नहीं है।
भारतीय लोकतंत्र की यह विडंबना है कि एक तरफ सदियों पुरानी भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धाराएं हैं और दूसरी ओर एकदम आधुनिक आईटी कानून की धाराएं हैं। इन दोनों का इस्तेमाल विरोधियों की आवाज दबाने और अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने के लिए किया जा रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सरकारें इनका इस्तेमाल सुनियोजित तरीके से कर रही हैं। किसी जमाने में जिस तरह से नेताओं के ऊपर निषेधाज्ञा यानी धारा 144 के उल्लंघन का मुकदमा होता था उसी तरह अब राजद्रोह का मुकदमा हो रहा है। महाराष्ट्र की महिला सांसद और उनके विधायक पति ने मुख्यमंत्री आवास के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करने का ऐलान किया और उनके समर्थक जुटे तो सरकार ने उन दोनों के ऊपर राजद्रोह का मुकदमा कर दिया। सोचें, इसमें क्या राजद्रोह है? क्या किसी चुने हुए प्रतिनिधि के ऊपर राजद्रोह के आरोप लगा कर उसे जेल में डालने से लोकतंत्र मजबूत होगा?
यह सही है कि महाराष्ट्र सरकार ने इसकी शुरुआत नहीं की लेकिन है तो यह बदले की कार्रवाई ही! यह भी सही है कि केंद्रीय एजेंसियों ने राज्य सरकार के मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई की है या सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों, सांसदों पर झूठे-सच्चे आरोपों में कार्रवाई हुई है। लेकिन इसका बदला लेने के लिए विरोधियों के ऊपर राजद्रोह का मुकदमा करना कोई समझदारी की बात नहीं है। उलटे यह महाराष्ट्र सरकार और सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदेह भी साबित हो सकता है। केंद्रीय एजेंसियां शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में कार्रवाई कर रही हैं लेकिन राज्य सरकार ने नवनीत राणा और रवि राणा के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा हनुमान चालीसा के सार्वजनिक पाठ के कारण किया है। इसमें दो राय नहीं है कि मुख्यमंत्री आवास के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करने का ऐलान करना गलत है, लेकिन इसके लिए राजद्रोह का मुकदमा करना आत्मघाती है। हो सकता है कि राजद्रोह का मुकदमा करने और जेल में डालने से विरोधी डरें या घबराएं लेकिन इससे अंततः लोकतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होती है।
ऐसा नहीं है कि कोई एक राज्य सरकार या अकेले केंद्र सरकार कानूनों का डंडा चला कर विरोधियों को चुप करा रही है। जिसको जहां मौका मिला हुआ वहां वह अपने विरोधियों को चुप कराने या आम आवाम की आवाज दबाने के लिए कानूनों का दुरुपयोग या मनमाना इस्तेमाल कर रहा है। नई राजनीति का सपना दिखा कर सरकार में आए आम आदमी पार्टी ने मौका मिलते ही अपने विरोधियों के खिलाफ पुलिस का मनमाना इस्तेमाल शुरू कर दिया। पंजाब में सरकार बनते ही आप की सरकार ने पुलिस का जैसा इस्तेमाल शुरू किया है उसे देख कर लगता है कि अच्छा हुआ, जो आप सरकार के पास दिल्ली में पुलिस का अधिकार नहीं है। अगर दिल्ली में आप सरकार के पास पुलिस होती तो पता नहीं उसका इस्तेमाल किस किस के खिलाफ होता! पंजाब में पुलिस मिलते ही भगवंत मान सरकार ने पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लिखने-बोलने वालों के यहां पुलिस दौड़ा दी। भाजपा के प्रवक्ता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा, प्रीति गांधी, नवीन कुमार जिंदल और कांग्रेस नेता अलका लांबा ने केजरीवाल के खिलाफ ट्विट किया या बयान दिया था, जो विरोधी पार्टी होने के नाते उनका काम है। पर पंजाब की पुलिस सबके घर पहुंच गई और नोटिस थमा दिया। केजरीवाल के पुराने साथी कुमार विश्वास ने चुनावों से पहले केजरीवाल पर खालिस्तानियों से मिले होने का आरोप लगाया था। उनके उस बयान पर भी सरकार बनने के बाद मुकदमा हुआ, वह भी पंजाब के रोपड़ में।
सोचें, अगर वह बात केजरीवाल को कुमार विश्वास की बात मानहानिकारक लगी थी तो उसी समय पार्टी ने दिल्ली में मुकदमा क्यों नहीं कराया था? या अगर बग्गा का कोई ट्विट केजरीवाल के लिए मानहानिकारक था तो क्या आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में साइबर सेल में मुकदमा दर्ज कराने का प्रयास किया? ऐसा कोई प्रयास किए जाने की खबर नहीं है। सीधे ‘अपनी पुलिस’ के पास मुकदमा दर्ज कराया गया और ‘अपनी पुलिस’ की टीम भेज दी गई। जाहिर है इसका मकसद इन सब लोगों को डराना है ताकि अपने तमाम विरोधियों को मैसेज दिया जाए कि वे केजरीवाल के खिलाफ टिप्पणी करने की न सोचें क्योंकि अब उनके हाथ में पुलिस की ताकत है। सोचें, आम आदमी की राजनीति करने का दावा करने वाला एक नेता कैसे अभिव्यक्ति की आजादी खत्म करने का काम कर रहा है!
साइबर कानून और पुलिस का इस्तेमाल करके कैसे अभिव्यक्ति की आजादी को दबाया जाता है या दबाने का प्रयास किया जाता है इसका क्लासिक केस गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी का है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक ट्विट किया, जिसके खिलाफ असम के एक दूर-दराज के जिले में मुकदमा दर्ज किया गया और असम की पुलिस ने गुजरात जाकर आधी रात को मेवाणी को गिरफ्तार किया और असम ले गई। सोचें, मेवाणी के ट्विट पर गुजरात में मुकदमा क्यों नहीं हुआ? वहां भी भाजपा की सरकार है और अगर किसी भाजपा कार्यकर्ता को ट्विट से बुरा लगा तो उसे वहां मुकदमा करना चाहिए था। लेकिन मुकदमा असम में हुआ और वहां की पुलिस उनको पकड़ कर ले गई। तीन-चार दिन के बाद अदालत ने उनको जमानत दे दी लेकिन पुलिस ने उनको एक महिला पुलिसकर्मी से बदतमीजी करने के आरोप में फिर गिरफ्तार कर लिया। इसमें भी उनको जमानत मिल जाएगी लेकिन अब उनकी गुजरात से असम यानी पश्चिम से एकदम पूर्वी हिस्से तक दौड़ लगती रहेगी।
जाहिर है अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला चौतरफा है। यह किसी एक पार्टी या किसी एक सरकार का काम नहीं है, बल्कि जो भी सरकार में है वह विरोधियों की आवाज दबाने के लिए एक जैसा तरीका इस्तेमाल कर रहा है। सरकारें जहां आईपीसी की धारा का इस्तेमाल कर सकती हैं वहां उसका कर रही हैं और जहां आईपीसी का इस्तेमाल नहीं हो सकता है वहां साइबर कानून का नया हथियार मिल गया है। ध्यान रहे निजी तौर पर व्यक्ति हमेशा असुरक्षित और भयभीत महसूस करता है। तभी इस तरह की कार्रवाइयों के जरिए लोगों के मन में असुरक्षा बोध पैदा किया जा रहा है और भय बैठाया जा रहा है। यह संविधान से मिली अभिव्यक्ति की आजादी और सम्मान से जीने के अधिकार का उल्लंघन है लेकिन यह उल्लंघन कानूनी और लोकतांत्रिक तरीके से किया जा रहा है।