अभी से क्यों और कैसे सर्वे हो रहे हैं?

भारत में राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करने वाले कई तत्वों में एक चुनावी सर्वेक्षण भी हैं। आमतौर पर सर्वेक्षण चुनाव के समय होते हैं लेकिन पिछले कुछ समय से यह देखने में आया है कि सर्वेक्षण एजेंसियां चुनाव के कई महीने से पहले से झूठे-सच्चे सर्वे करके राजनीतिक चर्चाओं को दिशा देने का काम करने लग रही हैं। इस साल पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप के राज्यों को लेकर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण होने चाहिए। हालांकि उनमें भी यह बताया जाना चाहिए कि जब गठबंधन तय नहीं है और किसी भी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है तो किस आधार पर सीट जीतने-हारने का आकलन किया जा रहा है?

बहुत हैरानी की बात है कि बिना उम्मीदवार की घोषणा के और बिना मुख्यमंत्री के चेहरे की दावेदारी के सर्वे एजेंसियां बता रही हैं कि कौन कितनी सीटों पर जीतेगा। कायदे से एजेंसियों को यह बताना चाहिए कि किस पार्टी को कितना समर्थन है। ज्यादा से ज्यादा किसी पार्टी को मिलने वाले वोट प्रतिशत के बारे में बताया जा सकता है। सीटों के बारे में तो कतई नहीं बताया जा सकता है क्योंकि सर्वे एजेंसियों को भी पता है कि भारत में फर्स्ट पास द पोस्ट का सिस्टम लागू है, जिसमें किसी पार्टी को मिला वोट प्रतिशत और उसे मिली सीटें ज्यादातर समय समानुपातिक नहीं होती हैं। मिसाल के तौर पर 2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी को उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी वोट मिले थे लेकिन एक भी सीट नहीं मिल पाई थी।

बहरहाल, राज्यों के साथ साथ सर्वेक्षण एजेंसियां और मीडिया हाउस लोकसभा चुनाव का भी सर्वे दिखा रहे हैं और फिर से एनडीए की भारी जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को तीन सौ से ज्यादा और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को दो सौ से कम सीट का अनुमान जाहिर किया जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि चुनाव से 10 महीने पहले इस सर्वे की क्या जरूरत है? इस तरह के सर्वे करके और ऐसे नतीजे दिखा कर एजेंसियां और मीडिया समूह किसकी सेवा कर रहे हैं?

दूसरा सवाल यह है कि सीटों की संख्या का अनुमान कैसे निकाला? दोनों गठबंधन में अभी जो पार्टियां उनमें से कई पार्टियों के बारे में तय नहीं है कि वे उसी गठबंधन से लड़ेंगी। यानी अभी पार्टियों का गठबंधन तय नहीं है, न यह तय है कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी और कौन कौन सी सीटें मिलेंगी फिर भी सर्वे एजेंसियां बता रही हैं कि कौन सी पार्टी कितनी सीट जीतेगी। बिहार, उत्तर प्रदेश सहित ज्यादातर राज्यों में गठबंधन की सहयोगी पार्टियां पसंद की सीटों के लिए दबाव बना रही हैं। उनको खुद अंदाजा नहीं है कि उनको कौन सी सीट मिलेगी। पर सर्वेक्षण एजेंसियों ने अपनी पसंद की सीटों पर उनकी जीता का अनुमान जाहिर कर दिया। ऐसे ही कामों से इन एजेंसियों की साख बिगड़ी है।

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