‘इंडिया’ होना क्या?

सचमुच क्या है भारत उर्फ इंडिया? वह सारतत्ववह मूल, वे वैल्यूज क्या है जो ‘इंडिया’ सुनते दिमाग में झकृंत होते है?  इस स्वतंत्रता दिवस पर ‘इंडिया’  अर्थअंहम है। याद करें हालिया संसद सत्र में ‘इंडिया’‘भारत’, भारतमाता पर क्या कुछ कहा और बोला गया! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने INDIA का नया उच्चारण, नई व्याख्या दी, शब्द के टुकड़े किए। इसलिए क्योंकि विपक्ष ‘इंडिया’ के अक्षर पर जुमले बना‘इंडिया’ को हाईजेक किए हुए है। इसकी प्रतिक्रिया में अब लग रहा है किअपनी इंडिया केंद्रीत जुमलेबाजी छोड़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा जुबां पर‘भारत’ ले आए है। सोचे इंडिया बनाम भारत के प्रोपेगेंडा, नैरेटिव के इंडिया अर्थ के कितने अनर्थ होते हुए है। एक तरफ भारत नाम से सीमाबद्ध हम 140 करोड लोग तो वही दूसरी तरफ उसके नेताओं में भारत या इंडिया को अलग-अलग, नए-नए अर्थदेने और अपने को इंडिया की आत्मा के सच्चे प्रतिनिधिबतलानेका संग्राम बनाए हुए!

क्या है इंडिया की आत्मा? और उस आत्मा के प्रतिनिधी, पोषक, रक्षक क्या नरेंद्र मोदी है या राहुल गांधी? ‘इंडिया’ क्या महज एक शब्द है जो उसे तोडमरोड कर कोई देशभक्त या देशभंजक बनता है? जाहिर है हाल के वर्षों में इंडिया शब्द का उपयोग या दुरूपयोग जितना और जैसा हुआ है वैसा आजाद भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रसुरक्षा के हुंकारों से क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छप्पन इंची छाती है, हिंदू वोटों की भक्ति है और लोगों में असुरक्षा की भयाकुलता का क्रिएशन है तो दुनिया भले ‘इंडिया’ को पारंपरिक अर्थ में लेती है लेकिन हम 140 करोड़ लोग ‘इंडिया’के अर्थ और भाव में अब न केवल भिन्नताए-मतभेद लिए है बल्कि इंडिया नाम पर तमाम तरह की उग्रताए भी।

तभी ‘इंडिया’और उसके अर्थ अब वे नहीं है जो 15 अगस्त 1947 से पहले या बाद में था। अपनी जगह तथ्य और सत्य है कि इंडिया का एक वैश्विक कालजयी अर्थ है। इंडिया मतलब सांप संपेरों का, अंधविश्वासों का देश। इंडिया मतलब दुनिया की प्राचीन सभ्यता, विशाल और बड़ी आबादी वाला कानिर्धनतम देश। आजादी के वक्त इंडिया की आबादी कोई 30 करोड थी। अब 140 करोड है तथा हमनेचीन को पछाड़ दिया है तो स्वभाविक जो सर्वाधिक आबादी का भी देश मतलब इंडिया। जबकि 140 करोड की इस आबादी को लेकर सरकार के मंत्री भी संसद में यह सत्य बताते होते है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 60 करोड गरीब लोगों का पेट भर रहा है। हालांकि रियलिटी में आज का इंडिया फ्री के राशन-पानी-खैरात के सहारे जीने वाले100 करोड लोगों के लिए हुए है।

तो देश में भले ‘इंडिया’ मतलब दुनिया की तीसरी बड़ी होती इकॉनोमी हो लेकिन वैश्विक परसेप्शन वही है जो 1947 से पहले था। दुनिया की सर्वाधिक निर्धनतम आबादी वाला देश। इंडिया मतलब गरीबी, बदहाली, अव्यवस्था और समस्याओं का देश।

इस अर्थ को देश में या तो शाईनिंग इंडिया के वक्त पूरी तरह नकारा गया था या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मौजूदा अमृत काल ने नकारा हुआ है। इसलिए तय माने कि हाल में जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेइंडिया को 21 वीं सदी का पर्याय बताया वैसे ही 15 अगस्त 2023 को लाल किले के भाषण में भी भारत का अर्थ सबको पछाड़ने वाला बतलाते हुए होंगे।

एक लबोलुआब यहभी कि राष्ट्रवाद के भभकों में, उसकी उग्रताओं में इंडिया का अर्थ वैसे ही बदला है जैसे मर्यादापुरूष रामजी का बदला है या साधनारत भक्त हनुमानजी का बदला है। सत्ता ने राष्ट्रवाद  को रबर की तरह खींच-खींच इंडिया, न्यू इंडिया, भारत या मां भारती जैसे शब्दों से अर्थ का वह अनर्थबनाया है जिसके कारण अब15 अगस्त 1947 के बाद का कुछ भी नहीं है। तब आजाद भारत का गांधी, सावरकर से लेकर सुभाषचंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरू या श्यामाप्रसाद मुकर्जी या डा आबेंडकर ने इंडिया का जो भाव- अर्थ बनाया, जो कल्पनाएं की या सपने देखें वह सब अब नदारत है। हां, विचार की किसी भी धारा का वह इंडिया अब नहीं है जिसके आजादी के बाद संविधान सभा के प्रतिनिधियों ने अर्थ बनाए थे या विचारा और बहस की थी। बहस की उस इमारत के ही सदनों में पिछले सप्ताह राज्यसभा में जगदीप धनकड तथा लोकसभा में ओम बिडलाकी अध्यक्षता में भारत के सासंदों ने क्या किया?  इंडिया के साथ कैसा अनर्थ था?

कल्पना कर तुलना करें सदन के आसन पर बैठे तब के डा राजेंद्र प्रसाद और पीजी मावंलकर बनाम वर्तमान के जगदीप धनकड़ व ओम बिडला के चेहरों पर या प्रधानमंत्री नेहरू व सरदार पटेल बनाम नरेंद्र मोदी,अमित शाह के चेहरों और इनसे फिर टपकते इंडिया अर्थपर!

निश्चित ही 15 अगस्त 1947 बनाम 15 अगस्त 2023 में समय का बड़ा फर्क है। लेकिन इससे बड़ी और गंभीर रियलिटी इंडिया के मूल, उसकी वैल्यूज का फर्क है। बुद्धी का फर्क है। 1947 की दरिद्रतम दशा के बावजूद तब इंडिया, इंडिया के लोग, उसका नेतृत्व बुद्धी, विचार और इरादे लिए हुए था। वह संस्कारी था। तब इंडिया नैतिकता, शुचिता और संस्कार लिए हुए था। राजनीति गरिमा, मूल्य और विचार आधारित थी। न खरीदफरोख्त की मंडी थी और न वैसी तू-तू, मैं-मैं थी जैसी इन दिनों है। वह सब 2023 के मौजूदा इंडिया में छीजा और खत्म है।  सन् 2023 का इंडिया नैतिकताविहीन है।नैतिक मूल्यों, भौतिक, आध्यात्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्राप्तियों में वह या तो खोखला है या दिखावे, ढकोसलों में वक्त काटता हुआ है।

सोचे ‘इंडिया’ में मणिपुर के दो समुदाय उसका क्या अर्थ निकालते हुए होंगे? नुंहू, गुरूग्राम में मुसलमान क्या सोचता हुआ होगा तो हिंदू क्या?नरेंद्र मोदी क्या सोचते हुए हैतो राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल क्या सोचते हुए है? वे उद्योगपति, कारोबारी, पेशेवरक्या सोचते हुए है जो साल-दर-साल हजारों-लाखों की संख्या में इंडिया छोड़ विदेश जा रहे है?

ईमानदारी से दिल पर हाथ रख कर सोचे, मणिपुर में हिंदू मैतई हो या कुकी ईसाई इनके‘भारत’ अर्थ में आज क्या है? एक असुरक्षित-अराजक देश। मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में (कश्मीर घाटी, मेवात, बंगाल, पुरानी दिल्ली)रह रहे हिंदुओं का इंडिया और हिंदू बहुल इलाकों में मुस्लिम बस्तियों के जीवन में इंडिया की नब्ज टटोलेंगे तो समझ नहीं आएगा की राष्ट्रवाद धडक कैसा रहा है।

ऐसा संकट पाकिस्तान में नहीं है। चीन या जापान आदि किसी भी सभ्य लोकतांत्रिक देश में नहीं है। हर देश अपने नाम के साथ सभ्यतागत संस्कारों की वैल्यजूकी पहचान का व्यवहार लिए मिलेगा।अमेरिका, ब्रिटेन में कितनी ही तरह के नस्लीय झगड़े, धार्मिक अंहकार हो लेकिन ‘अमेरिका’और उसके मान व अर्थ में पक्ष-विपक्ष, राजनीति व समाज सभी में सम्मान-विरासत-धरोहक की चिंता और आचरण मिलेगा। क्या कल्पना भी संभव है जो ब्रिटेन की संसद में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और विरोधी लेबर नेता आपस में ब्रिटेन के नाम को लेकर या ब्रिटेन के पिछले प्रधानमंत्रियों, पिछली सरकारों को ले कर वैसी गालीगलौज और तेंवर दिखाए जो हालिया संस़द में नरेंद्र मोदी के मुंह से सुनने को मिली या राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी पर जो कहा।

सो मौजूदा वक्त इंडिया उर्फ भारत के अर्थों का गडबडझाला है। दुनिया इंडिया को अब नरेंद्र मोदी के नाम से भी जानती है। इससे देश में कईलोग सोचते है कि इंडिया मतलब विश्व गुरू। ये बूझ नहीं सकते है कि वैश्विक जमात में इंडिया और नरेंद्र मोदी के इंडिया के कितनी तरह के क्या- क्या अर्थ है।

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