क्या संकट का क्या हल?
दुनिया पर खाद्य संकट का साया घना होता जा रहा है। इसकी चर्चा भी खूब होती है, लेकिन ऐसा लगता है कि दुनिया के कर्णधार इसके आगे लाचार हैं। वरना, वे संकट की चर्चा करने के बजाय अब तक इसे हल करने के ठोस उपाय कर चुके होते। हर रिपोर्ट बताती है कि एशिया और अफ्रीका के एक बड़े हिस्से में इस साल कम अनाज पैदा होने की आशंका है। इसके पीछे एक बड़ा कारण उर्वरकों की तेजी से बढ़ी महंगाई है, जिससे किसानों के लिए इन्हें हासिल करना कठिन हो गया है। फसल कम होने के कारण दुनिया में पहले खड़ा चुका खाद्य संकट और गंभीर रूप ले सकता है। यूक्रेन में रूस के विशेष सैनिक कार्रवाई शुरू करने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर बेहद सख्त प्रतिबंध लगा दिए। एक हद तक रूस के सहयोगी देश बेलारुस पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैँ। उर्वरकों की महंगाई उसका ही नतीजा है। रूस और बेलारुस पोटाशियम क्लोराइड के प्रमख निर्यातक हैं, जिसका उर्वरक उत्पादन में इस्तेमाल होता है।
इसके अलावा रूस प्राकृतिक गैस का भी प्रमुख सप्लायर है, जिससे यूरोप में ज्यादतर उर्वरक कारखाने चलाए जाते हैँ। प्राकृतिक गैस की महंगाई का असर उर्वरक उत्पादन और इनकी कीमत पर पड़ा है। गैर-ऑर्गेनिक खादों के उत्पादन में नाईट्रोजन, फॉस्फोरिक एसिड और पोटाशियम क्लोराइड का खास इस्तेमाल होता है। दुनिया भर में पोटाशियम क्लोराइलड की जितनी खपत होती है, उसके 40 फीसदी हिस्से की आपूर्ति रूस और बेलारुस करते रहे हैँ। विश्व बैंक ने बीते महीने एक रिपोर्ट में बताया कि इन दोनों देशों पर लगे प्रतिबंधों के कारण उर्वरकों में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमत में इस वर्ष 60 से 70 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य कार्यक्रम ने कहा है कि पैदावार में गिरावट से खाद्य की जो कमी होगी, वह 2023 तक बनी रहेगी। जाहिर है, नए हालात में धनी और गरीब देशों के अनाज उत्पादन में खाई और चौड़ी हो जाएगी। यह ऐसा संकट है, जिसका तुरंत हल ढूंढने की जरूरत है। लेकिन लगता नहीं कि यह विश्व नेताओं की प्राथमिकता में है।