उपाय सोचने की जरूरत
रासायनिक खादों का उपज बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। लेकिन जैसे किसी भी चीज का अत्यधिक उपयोग हानिकारक होता है, तो वही बाद इन उर्वरकों पर भी लागू होती है। कृषि वैज्ञानिक आगाह करते रहे हैं कि अगर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में कटौती नहीं की गई, तो मानव जीवन पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा। अब गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल के कारण देश की 30 फीसदी जमीन बंजर होने के कगार पर है। भारत में 83 फीसदी रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल देश के महज 292 जिले करते हैं। दरअसल, तेजी से बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती में रासायनिक खादों का इस्तेमाल बढ़ा है। लेकिन इसका आम लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों के अधिक मात्रा में उपयोग से ना सिर्फ फसल प्रभावित होती है, बल्कि इससे फसल को खाने वाले इंसान और जानवरों की सेहत के साथ ही पर्यावरण पर भी प्रतिकूल असर होता है।
अनाज और सब्जियों के माध्यम से इसकी विषाक्तता लोगों के शरीर में पहुंचती है। इस कारण लोग तरह-तरह की बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल ने नाइट्रोजन चक्र को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। नाइट्रोजन चक्र बिगड़ने का दुष्परिणाम केवल मिट्टी-पानी तक सीमित नहीं रहा है। नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में यह एक ग्रीनहाउस गैस भी है और वैश्विक जलवायु परिवर्तन में इसका बड़ा योगदान है। केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 1950-51 में भारतीय किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करते थे। यह अब कई गुणा बढ़कर 335 लाख टन हो गया है। इसमें 75 लाख टन विदेशों से आयात किया जाता है। जाहिर है, यह एक चिंताजनक जानकारी है। इसलिए अब आवश्यकता इस बात की है कि रासायनिक खादों के विकल्प पर गंभीरता से सोचा जाए। चुनौती यह सुनिश्चित करने की है कि सबको पर्याप्त अनाज उपलब्ध हो, लेकिन साथ-साथ वह अनाज स्वस्थकर भी हो।