मिलावट के दौर में बस दर्द खालिस है…….
गीता यादव
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार,
मिलावट वह संगीन जुर्म है, जो आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक है। इसे घोर विडंबना ही कहेंगे कि चीन में दूध में मेलामाइन की मिलावट करने पर दोषी को फांसी की सजा दी जाती है, लेकिन भारत में मिलावटखोरों को किसी का खौफ नहीं। क्या हमारे देश में भी मिलावट कर आमजन की जि़ंदगी से खेला करने वालों को फांसी की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए?
‘खाली डब्बा, खाली बोतल ले ले मेरे यार
खाली से मत नफरत करना, खाली सब संसार
खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी
शहद में गुड़ के मेल का डर है, घी के अंदर तेल का डर है
मक्खन में चर्बी की मिलावट, केसर में कागज की खिलावट
मिर्ची में ईंटों की घिसाई, आटे में पत्थर की पिसाई।
यह गीत 1968 में आई फिल्म ‘नील कमल का है। इसे अभिनेता महमूद पर फिल्माया गया था। मिलावट पर केंद्रित, यह गीत इस बात की तस्दीक करता है कि खाद्य पदार्थों की मिलावट का खेल बरसों पुराना है। किसी भी तरह से, किसी भी ऐसे पदार्थ को मिलाना, जो भोजन की गुणवत्ता को बदल देता है खाद्य मिलावट है। जो पदार्थ मिलाया जाता है, उसे मिलावट कहते हैं। भारत में मिलावटी पदार्थों की शुरुआत कब हुई, निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन यह निश्चित है, इसकी दिखाई पड़ने वाली शुरुआत व उसकी बढ़ोत्तरी स्वतंत्रता के बाद, विकास के बढ़ते दौर के साथ हुई है। जनसंख्या, विज्ञान और व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ जैसे-जैसे वस्तुओं की मांग बढ़ी, वैसे-वैसे मिलावट में भी वृद्धि हुई है। नकली-सस्ती चीजों को मिलाकर बेचने वाले मुनाफा भी अधिक कमाते हैं। एफएसएसएआई की रिपोर्ट से ये साफ हो चुका है कि भारत में 13 फीसदी खाना गुणवत्ता के मानक स्तर से नीचे है। आज मिलावट का स्वरूप बदल चुका है। कोई भी खाद्य पदार्थ, इससे अछूता नहीें है। आईआईटी बॉम्बे की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, अब नमक भी सुरक्षित नहीं रहा। बड़ी-बड़ी कंपनियां नमक में प्लास्टिक मिलाती हैं। खाद्य पदार्थ फल, सब्जी, औषधि, पदार्थ, चॉकलेट आइसक्रीम, सौंदर्य प्रसाधन आदि में घातक कृत्रिम रसायन और कीटनाशक मिले हैं। नवजात शिशु दूध भी शुद्ध पी रहा है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह मिलावटी उत्पाद हमारे जीवन में क्या-क्या उत्पात मचा सकते हैं, यह जानकर हमारी रूह कांप सकती है। अनेक मिलावटी सामग्रियों में से ज्यादातर पदार्थों में केमिकलों की मिलावट की जाती है। ये केमिकल मानव स्वास्थ्य पर अल्पकालीन से लेकर दीर्घकालीन प्रभाव तक छोड़ते हैं। खाद्य पदार्थो की मिलावट का बुरा प्रभाव डायरिया, पेट दर्द, मितली, उल्टी, आंखों की समस्या, सिर दर्द, कैंसर, खून की कमी, नींद न आना, लकवा और मस्तिष्क को क्षति, पेट के विकार, जोड़ों के दर्द, लिवर विकार, ड्राप्सी, आंत्रशोधीय
समस्याओं, श्वसन संबंधी परेशानियों, कैंसर, कार्डियक अरेस्ट, ग्लूकोमा, गुर्दों में खराबी,पाचन तंत्र के विकारों आदि के रूप में सामने आते हैं। नए-नए रोगों के चलते डॉक्टरों के यहां लगी रोगियों की कतारें, काफी हद तक मिलावटी खाद्य पदार्थों का ही नतीजा हैं। ऐसा माना जाता है, दिन-भर के भोजन में सबसे ज्यादा और संतुलित पोषण किसी चीज से मिलता है, तो वो सब्जियां हैं। भारत की खाद्य सुरक्षा एवं मानक अथॉरिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर के बाजारों में बेची जा रही सब्जियों में से कम से कम 9.5 फीसदी खाने लायक नहीं पाई गई हैं। रासायनिक कीटनाशकों से हो रही खेती के कारण पंजाब में कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ी। ये पीड़ित कुछ समय पहले तक अपने इलाज के लिए बठिंडा से बीकानेर जिस ट्रेन से जाते थे, उसे कैंसर एक्सप्रेस के नाम से पुकारा जाने लगा था। लोग इस ट्रेन का असली नाम तक भूल गए थे। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं, कीड़े-मकौड़ों और बीमारियों की रोकथाम के लिए आजकल अनाज, फल, सब्जियों आदि पर अंधाधुंध पेस्टीसाइडों का प्रयोग किया जाता है, जिनमें से कई का असर पदार्थों को धोने पर भी नहीं जाता। ये बचे हुए पेस्टीसाइड शरीर के प्रमुख अंगों पर जहरीला असर डालते हैं। भारत में दूध में मिलावट एक चुनौती है। बीस फीसदी से ज्यादा दूध मिलावट करके तैयार किया जाता है। भारत में खुले मसालों की बिक्री अभी भी थमी नहीं है, जबकि 2018 में बने कानून के अनुसार ऐसा करना गैर कानूनी है। अनेक डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में कृत्रिम फ्लेवर डाला जाता है। सौंदर्य प्रसाधनों में प्रिजर्वेटिव के हानिकारक प्रभावों से कोई नहीं बचा है। बात दवाओं की करें, तो इसमें मिलावट कोई नया विषय नहीं। दवाओं की मिलावट अच्छे या बुरे स्वास्थ्य को नहीं, बल्कि जि़ंदगी और मौत को निर्धारित करती है। जीवन रक्षक दवाइयों के मामलों में दवा बदलने का मौका नहीं होता है, यहां मिलावट आपको सीधा मौत देती है। हाल ही में दिल्ली पुलिस ने कैंसर की नकली दवा बनाने वाले गैंग का भंडाफोड़ किया है। पकड़े गए आरोपी अस्पताल से खाली शीशियां लेते थे, फिर उनमें नकली दवाई भर उसे बेच देते थे। अब सवाल उठता है कि जिन लोगों ने ये नकली दवाएं खाई हैं, उनका क्या हश्र हुआ होगा। खाने-पीने की वस्तुओं के अलावा अनेक ऐसी वस्तुएं हैं, जो आम आदमी इस्तेमाल करता है और अनजाने में ही उनके इस्तेमाल से होने वाले नुकसानों का खामियाजा भुगत है। शोध बताते हैं, हम लोग मिलावटी खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करते-करते उनके रूप-रंग को देखने के इतने आदी हो गए हैं कि असली चीजें देखने या प्रयोग करने पर नकली जैसी लगने लगती हैं। सबसे विकट स्थिति उपभोक्ता के सामने होती है, जो ज्यादातर मामलों में असली सामान की पहचान करने की सलाहियत नहीं रखते। यद्यपि मिलावट रोकने के लिए सरकार ने अनेक उपाय किए हैं। समय-समय पर कमजोर नियमों में सुधार भी किए जाते रहे हैं, फिर भी मिलावट का कहर कम नहीं हो पा रहा है।
इस बारे में अतिरिक्त आयुक्त खाद्य सुरक्षा एवं औषधि नियंत्रण, राजस्थान, जयपुर के पंकज ओझा का कहना है, आमजन को शुद्ध खाद्य पदार्थ उपलब्ध करवाने के लिए विभाग की ओर से मिलावट की रोकथाम के लिए निरंतर अभियान चलाया जा रहा है। आप देख सकते हैं, त्योहारों का सीजन शुरू होने पर व्यापारियों के साथ ही विभाग भी चौकन्ना हो जाता है और छापेमारी की गतिविधियां बढ़ जाती हैं। क्योंकि दुकानदारों द्वारा लंबे समय से रखे गए स्टॉक को त्योहारों पर उसकी मिठाइयां बनाकर खपाने की प्रवृत्ति होती है। त्योहार ऐसा मौका होता है, जब जनता द्वारा अधिक मिठाइयां खरीदी जाती हैं। इसलिए व्यापारियों की सोच भी यही होती है कि जनता त्योहार पर अवश्य ही उनसे मिठाइयां खरीदेगी। इसलिए लाभ कमाने के लालच में अधिक मिलावट की जाती है। खाद्य सुरक्षा मानकों को लेकर हम समय-समय पर व्यापारियों को जागरूक भी करते रहते हैं। हाल में हमने ‘ शुद्ध आहार मिलावट पर वारÓ अभियान के तहत एक सेमिनार का आयोजन भी किया था, जिसमें बड़ी संख्या में फूड व्यापारी शामिल हुए थे। हमारी टीम द्वारा उन्हें खाद्य पदार्थों में जले हुए तेल के प्रयोग को रोके जाने और फोर्टिफाइड चावल, नमक, तेल, दूध, आटा आदि के उपयोग और उत्पादन के साथ अन्य सुरक्षा मानकों को लेकर जागरूक भी किया गया था। अगर आम आदमी चाहे तो मिलावट का संदेह होने पर मुखबिर योजना के तहत शिकायत दर्ज करवा सकता है। शिकायत दर्ज करवाने के लिए 181 टोल फ्री नंबर पर कॉल कर सकता है। व्हाट्सएप नंबर 9462819999 पर मैसेज कर सकता है, संपर्क पोर्टल पर शिकायत कर सकता है, जिला कलेक्टर कंट्रोल रूम और जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कंट्रोल रूम में शिकायत दर्ज कर सकता है। आम आदमी मिलावट की जांच के लिए मोबाइल चल खाद्य प्रयोगशाला पर तुरंत जांच करवा सकता है। मेरा मानना है, आमजन को सचेत करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना बेहद जरूरी है। जिसमें नुक्कड़ नाटक, मिलेट्स मेले आदि चलाए जाने चाहिए। इसके अलावा बाजार मूल्य से कम मूल्य पर बेची जाने वाली वस्तुओं पर संदेहात्मक फोकस किया जाना चाहिए। आईई सी की गतिविधियां बढ़ाई जानी चाहिए, आदतन मिलावटखोरों पर विशेष निगरानी रखी जानी चाहिए। मुझे लगता है, अभियान की असफलता का एक कारण स्थाई अभिहित अधिकारी और खाद्य सुरक्षा अधिकारियों का न होना भी है। इसके अलावा आम जनता में जागरूकता की कमी और मिलावट के प्रति सही सूचनाओं का प्राप्त न होना भी मुहिम की प्रगति की दिशा में बाधक है। साथ ही माननीय न्यायालय में दोषियों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही का अभाव होना और निर्धारित अवधि में लगाए गए केस का निर्णय न होना और नवीनीकरण की प्रक्रिया का सही ना होना भी एक बड़ा कारण माना जा सकता है। मेरा मानना है, एक आम आदमी मिलावट से पूरी तरह तो नहीं बच सकता। लेकिन थोड़ी जागरूकता और सावधानी से कुछ हद तक इससे बचा जा सकता है।
अफसोस मिलावट रोकने के लिए प्रभावी कानून भी बनाए गए हैं। लेकिन मिलावट जैसा जघन्य कृत्य केवल कानूनों से नहीं थम सकता। इस पर प्रभावी रोक के लिए निर्माताओं, खुदरा व्यापारियों, सरकार और उपभोक्ताओं को सामने आना होगा। जनता को जागरूक बनकर व्यापारियों को यह बताना होगा कि मिलावट जैसा आपराधिक कृत्य किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होगा। समाज को इस जुर्म के अपराधी व्यापारियों को बहिष्कृत भी करना होगा। इससे अन्य व्यापारियों को भी सीख मिलेगी। ध्यान रहे, मिलावट करने वाले या ऐसा सामान बेचने वालों के विरुद्ध हत्या के प्रयास जैसी सख्त धाराओं के तहत कार्रवाई होनी बहुत जरूरी है, तभी सही मायनों में मिलावटखोरों पर नकेल कसी जा सकेगी।