मनुष्य परिवार से ही सामाजिक प्राणी हैं – प्लेटो को नकारा गया है..
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री या प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी जी ने देश की सबसे बड़ी समस्या राजनीति में परिवारवाद को बताया ! उनके उद्बोधन से साफ झलकता था कि वे राष्ट्र की समस्याओं को नहीं वरन – वे अपनी पार्टी के एजेंडे पर बोल रहे हैं। उनके अनुसार राजनीति में परिवारवाद योग्यता को नकारता हैं ! पर क्या वास्तव में ऐसा हैं ? कम से कम भारत में तो एक ऐसा परिवार हैं जिसने देश को तीन प्रधानमंत्री दिये और उनमें से दो देश के लिए शहीद हुए…! जी हाँ मैं इन्दिरा जी और राजीव जी की बात कर रहा हूँ। नेहरू-गांधी परिवार से ही पंडित जवाहर लाल नेहरू-इन्दिरा प्रियदर्शिनी गांधी और राजीव गांधी हुए हैं। कम से कम इन तीनों ने देश को अपने सामर्थ्य के अनुसार आर्थिक और सामरिक रूप से बलशाली बनाया हैं। उनकी उपलब्धियों को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के गंदे प्रचार से हिंदुवादी ना तो नकार सकते हैं और ना ही धुंधला कर सकते हैं।
यूनान के एक अदार्शनिक हुए हैं उनका नाम प्लेटो था, उनकी अवधारणा थी कि शासक वर्ग के लिए उन लोगों को चुना जाना चाहिए जो नागरिकों और समाज को न्याय दे सके। उनकी निष्पक्षता के लिए, उनका सुझाव था कि नागरिकों के बालकों को परिवारों से अलग कर के लालन – पालन किया जाए। उनकी देखरेख विद्वानों द्वारा की जाये जो उनकी शारीरिक और बौद्धिक क्षमता के विकास को सुनिश्चित करे। परिवार से अलग होने के कारण उनमें सबके लिए समान भाव होगा। इन लोगों को उन्होने “दार्शनिक शासक” कहा था। परंतु यह प्रयोग बुरी तरह निष्फल हुआ।
क्यूंकि मनुष्य जन्म के पश्चात दस बारह वर्ष की आयु तक माता -पिता के संरक्षण में ही बड़ा होता हैं। वह परिवार के सहारे ही समाज में परिचय पाता हैं। परिवार से ही जाति-धरम मिलता हैं। प्राचीन काल में व्यवसाय भी परिवार से ही मिलता था। ईशा मसीह के पिता बढ़ई थे उन्होंने बाल्यकाल में पिता की मदद की थी। अगर हम विश्व का इतिहास देखे तो राजवंशों का इतिहास पारिवारिक विरासत का ही इतिहास हैं। ऐसा ही कुछ व्यापारी वर्ग में भी होता था और आज भी बड़े बदर औद्योगिक घराने वंशानुगत ही चल रहे हैं। चाहे वे अंबानी हो -बिरला हो या या फिर अन्य कोई। जो नए उद्योगपति बने हैं वे भी अपने परिवार जनों को व्यापार की बागडोर दे रहे हैं। ऐसे में मोदी जी का कथन उनके राजनीतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को क्षेत्रीय दलों से मिल रही चुनौतियों की गंभीरता को उनकी चिंता हैं। संघ परिवार में अधिकतर उच्च पदाधिकारी अविवाहित हैं। कहते हैं की संघ के अनुसार परिवार राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन के कार्य में बाधा बनते हैं। जो आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने वालों के जीवन से गलत साबित होता हैं।
महात्मा पंडित नेहरू सरदार पटेल मौलाना आज़ाद आचारी कृपलानी आचारी नरेंद्र देव के पूर्वा लोकमानी तिलक सुरेन्द्र नाथ बनेरजी आदि कितने भी नाम ले सभी विवाहित थे। हाँ क्रांतिकारी सभी अविवाहित थे आज़ाद, भगत सिंह, असफाक़ुल्लाह खान आदि। परंतु इन सभी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ा हुआ था। अनिश्चित जीवन के कारण ही इन क्रांतिकारियों ने विवाह नहीं किया। परंतु संघ की क्रांति में लगा हैं जो अविवाहित लोगो द्वरा संगठन को संचालित किया जा रहा हैं ? क्रांतिकारी हिनसा करते थे, अंग्रेज़ो के कानून तोड़ते थे, इसलिए उन्हें जीवन की अनिश्चितता थी। पर आज संघ को गुरु दक्षिणा के रूप मे करोड़ों रुपये मिलते हैं, उनके सामाजिक संगठनों को चलाने के लिए फिर परिवार से अलगाव क्यूं? अकसर संघ के जीवनदानी स्वयंसेवकों का अंतिम समय बहुत ही दयनीय अवस्था में गुजरता हैं। संगठन द्वारा जीवन के स्वर्णिम काल को इस्तेमाल कर अंत समय में संगठन द्वरा उन्हें उनके हाल में छोड़ देना अमानवीय लगता हैं। इस अवस्था में भी उन स्वयंसेवकों को उनके परिवारों ने ही सहारा दिया, जिनकी खोज खबर उन्होंने अपने युवा काल में नहीं की थी।
लोकतान्त्रिक देशों में भी राजनीति में परिवारों के लोग आए हैं। अमेरिका में जार्ज बुश और उनके पुत्र दोनों रेपब्लिकन पार्टी से राष्ट्रपति बने। कैनेडी राष्ट्रपति बने उनकी हत्या की गयी, फिर उनके भाई राबर्ट केनेडी अट्टार्नी जनरल बने उनकी भी हत्या की गयी। उनके तीसरे भाई एडवर्ड केनेडी सीनेटर बने उनकी भी रहस्यमय स्थितियों में माउट हुई। अभी पूर्व उप राष्ट्रपति डिक चेनी की पुत्री सीनेटर हैं परंतु वे पार्टी में उम्मीदवारी के लिए हुए प्राथमिक चुनावों में हार गई हैं। वे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विरुद्ध जांच कर रही समिति की सदस्य हैं। इसलिए ट्रम्प ने उनके विरुद्ध प्रचार किया।
राज्यों के क्षेत्रीय दल और परिवारवाद
मोदी जी को सबसे ज्यादा फिकर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिह की समाजवादी पार्टी बिहार में लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल तेलंगाना में टीएसआर की तेलंगाना परिषद से आंध्र में नायडू की काँग्रेस से उड़ीसा में बीजू जनता दल से -बंगाल में ममता बैनेरजी की त्रणमूल काँग्रेस से तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कडगम से और नागालैंड में संगमा की पार्टी से। इत्तेफाक से बिहार, उड़ीसा, तेलंगाना, आंध्र, तमिलनाडु, बंगाल और नागालैंड में गैर बीजेपी सरकारे हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में इस बार कोरोना और बढ़ती मंहगाई तथा बेरोजगारी तथा सरकारी नौकरियों में कमी और उनमें भर्ती ना होना प्रतियोगिताओं के परिणाम रद्द किए जाना आदि बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जी नौजवानों को परेशान किए हुए हैं। मोदी के आठ साल के शासन में गत वर्षो में उनके और उनकी सरकार के खिलाफ जनता में काफी रोष हैं। अब बीजेपी राम मंदिर और हिन्दू -मुस्लिम मुद्दा उठाकर चुनावी लाभ नहीं ले सकती हैं।
फिर जिस प्रकार महाराष्ट्र में केंद्र के इशारे पर दल बदल कराकर उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराया गया, उससे बीजेपी सरकार द्वारा लोकतान्त्रिक मूल्यों के हनन का दृश्य सामने हैं। यह बात दूसरी हैं कि बिहार में नितीश कुमार ने जिस सफाई से बीजेपी को विधानसभा में अकेले विपक्ष में बैठा दि