सिर्फ एक बार टिकट मांगने वाले अशोक गहलोत कैसे बन गए तीन बार मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 72 साल के हो गए, उनके यह 72 साल जितने उपलब्धियों से भरे दिखते हैं उससे कहीं ज्यादा संघर्षों और अनुभव की खदान में दिखती है। एक सामान्य परिवार से आने के बावजूद अशोक गहलोत आज प्रदेश के मुखिया के रूप में कमान संभाल रहे हैं इसमें कांग्रेस पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं का योगदान तो है ही लेकिन यह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रतिभा का ही नतीजा है कि वह तमाम झंझावातओ और चक्रव्यूह से निकलकर लगातार आगे बढ़ते गए। अब इसे नियति कहें या गहलोत की नैसर्गिक प्रतिभा लेकिन अब तक के सफर में अब तक में कहीं भी विश्राम की मुद्रा में नहीं दिखे।
3 मई 1951 को जन्मे अशोक गहलोत राजस्थान की राजनीति के ऐसे सितारे हैं जो अब तक जन से जननायक तक का सफर कर चुके हैं गहलोत का यह सफर निरंतर जारी है लेकिन इसकी शुरुआत काफी रोचक और प्रेरक रही।
इंदिरा से मुलाकात और बदल गई सियासी दिशा
अशोक गहलोत छात्र जीवन से ही सामाजिक कार्यों की तरफ रुझान रखते थे समाज सेवा के कार्यों से जुड़े गहलोत अलग-अलग जगह जरूरत पड़ने पर सामाजिक कामों में अपनी रुचि और भूमिका निभाते दिखे 1971 में बंगाल में पूर्वी बांग्लादेश शरणार्थियों के कैंप में गहलोत की तरफ से किए सेवा कार्यों ने उनकी प्रतिभा को एक विशेष पहचान दिलाई।
इन शरणार्थी कैंपों में सेवा करते हुए अशोक गहलोत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजर में आए और तब से उनकी राजनीतिक यात्रा का सफर एक अलग दिशा में मुड़ गया। शरणार्थी शिविर में लोगों की मदद करने के दौरान जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनकी मुलाकात हुई तो बेबी गहलोत के संगठनात्मक कौशल से प्रभावित हुई और उन्होंने अशोक गहलोत को कांग्रेस के छात्र राजनीति से जुड़े अग्निशमन एनएसयूआई में राजस्थान का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया।
एनएसयूआई से जिलाध्यक्ष तक
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजरों में आने के बाद अशोक गहलोत को एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी मिली 1974 से साल 1979 तक गहलोत ने एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम किया और इस दौरान पूरे राजस्थान में छात्र संगठन को खड़ा किया। एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए गहलोत ने जो टीम बनाई उस टीम के कई सदस्य आज तक उनके साथ कदमताल कर रहे हैं एनएसयूआई में जो काम गहलोत ने किया, उससे उनका राजनीतिक आधार मजबूत हुआ और अगली सीढ़ी के रूप में वे जोधपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पड़ाव पर पहुंचे।
गहलोत का पहला चुनाव
साल 1979 में जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने के बाद 1980 में अशोक गहलोत ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा। साल 1977 में विधानसभा चुनाव हारने वाले गहलोत ने 1980 के चुनाव में जेएनपी के बलवीर सिंह कच्छावा को हराकर पहली बार देश की सबसे बड़ी पंचायत में कदम रखा। कैसे छात्र जीवन से ही सेवा कार्य शुरू करते हुए राजनीति में कदम बढ़ाने वाले अशोक गहलोत ने जनसेवा को अपना मुख्य उद्देश्य बनाया कैसे वे संगठन के काम में मजबूती से कदम रखते गए और आगे बढ़ते गए
गहलोत बने पांच बार सांसद और तीन बार मुख्यमंत्री
राजनीति में गहलोत अपनी पारी खेल रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद कई बार कह चुके हैं कि उन्होंने अपने लिए सिर्फ एक बार टिकट मांगा था और उसके बाद उन्होंने पार्टी से कभी टिकट नहीं मांगा। वह कहते हैं कि पार्टी ने उन पर जब भी भरोसा जताया, जिस भी भूमिका में काम करने के लिए कहा उसमें काम किया और संगठन की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश की। गहलोत खुद कहते हैं कि पार्टी का भरोसा और कार्यकर्ताओं का आधार ही है जिसने उन्हें पांच बार सांसद और तीन बार मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया।