नर-नारी समता का लक्ष्य दूर

हाल के विभिन्न संकटों ने दुनिया के लैंगिक अंतर को और बड़ा कर दिया है। यह आम तजुर्बा भी है और यही बात अब महिला सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की संस्था- यूएन वूमन और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कही है। कहा गया है कि इस मसले के समाधान के लिए जिस गति से प्रगति हो रही है, उससे तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में 300 और साल लग जाएंगे। कार्यस्थलों पर नेतृत्व में समान प्रतिनिधित्व के लिए 140 साल और राष्ट्रीय संसदीय संस्थानों में समान प्रतिनिधित्व के लिए कम से कम 40 साल और इंतजार करना होगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत 2030 तक सार्वभौमिक लैंगिक समानता प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित समय से बहुत दूर हो चुका है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि दुनिया एकजुट होकर महिलाओं और लड़कियों की प्रगति में तेजी लाने के लिए उचित निवेश करे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक चुनौतियां जैसे कि कोविड-19 महामारी और उसके बाद हिंसक संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और महिलाओं के खिलाफ यौन हमले के कारण लैंगिक समानता की खाई और चौड़ी हो गई है। इस साल के अंत तक लगभग 38.3 करोड़ महिलाओं और लड़कियों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया जाएगा और उन्हें प्रति दिन 1.90 अमेरिकी डॉलर में जीवन बिताना होगा। इसकी तुलना में समान रूप से स्थिति से पीड़ित पुरुषों और लड़कों की संख्या लगभग 36.8 करोड़ होगी। इस रिपोर्ट ने हमें फिर आगाह किया है कि समस्या या संकट चाहे जो भी हो या जैसा भी हो, उसकी सबसे ज्यादा मार महिलाओं पर ही पड़ती है। संभवतः ऐसा इसलिए होता है कि मानव समाजों में उन्हें पहले से ही वंचित और कमजोर अवस्था में रखा गया है। इस रिपोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि आधुनिक दौर में चाहे लैंगिक समता की जितनी बातें हुई हों, जमीन पर उसे साकार करने के उपाय उसी अनुपात में नहीं किए गए हैं। नतीजतन, सूरत और बिगड़ गई है।

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