डिजिटल भी रुपया ही है!

भारतीय रिजर्व बैंक आज रुपये का डिजिटल संस्करण जारी कर रहा है। फिलहाल, प्रायोगिक तौर पर- चार शहरों में और चार बैंकों के जरिए इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। शुरुआत में जिन चार बैंकों का चयन किया गया है, उनमें आईएफडीसी भी है। एक अंग्रेजी अखबार ने इंटरव्यू के क्रम में जब इस बैंक के महाप्रबंधक से पूछा जब भारत में यूपीआई के जरिए पहले से ही डिजिटल भुगतान प्रचलित हो चुका है, तब डिजिटल रुपये की क्या विशेषता होगी? महाप्रंधक ने कहा कि इसके जरिए होने वाला लेन-देन अधिक गोपनीय रहेगा। यानी यूपीआई पेमेंट सीधे बैंक से होता है, इसलिए व्यक्ति किसे कितनी रकम दे रहा है, यह सारा बैंक के डेटाबेस में मौजूद रहता है। जबकि डिजिटल रुपया का स्वरूप नकदी की तरह होगा, जो बैंक से निकाल लेने के बाद आप कहां खर्च करते हैं, यह बैंक को मालूम नहीं होता। तो इस रूप में इससे उन लोगों को बेशक बहुत सुविधा होगी, जो अपना हर हिसाब-किताब बैंक को नहीं देना चाहते।

बहरहाल, इससे रुपये के मूल्य या उपलब्धता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस रूप में इससे रुपये की हैसियत बढ़ने या जिनके पास धन नहीं है, उन्हें कोई आसानी होने की संभावना नहीं होगी। यह एक सामान्य बात है, लेकिन जिस समय देश हर बात को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जाता हो, तब हर चीज को उसके संदर्भ में रखना जरूरी हो जाता है। तो रुपये का डिजिटल संस्करण आने से भारतीय मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में कोई प्रगति होगी, ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए। रुपये की अंतरराष्ट्रीय हैसियत तभी बनेगी, जब दूसरे देशों को रुपये को अपने पास रखना बहुमूल्य महसूस होगा। ऐसा तभी हो सकता है, अगर भारत वस्तुओं और सेवाओं का इतना उत्पादन करे कि उन्हें खरीदना दूसरे देशों को अपेक्षाकृत लाभकारी मालूम पड़े। मुद्रा की अंतरराष्ट्रीय हैसियत का मतलब यह होता है कि उसमें दूसरे अपने आयात-निर्यात का भुगतान स्वीकार करें। इस मामले में स्थिति यह है कि रूस के साथ रुबल-रुपया कारोबार का सिस्टम बन जाने के बावजूद असली कारोबार इस रूप में ज्यादा नहीं हो रहा है। कहने का तात्पर्य यह कि डिजिटल रुपया आने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था और मुद्रा की मूलभूत स्थितियां जस की तस रहेंगी।

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