दुष्कर्म से बीच रास्ते छूटी बेटियों की शिक्षा

– शिक्षा के मंदिरों पर उंगलियां उठने लगी हैं। चपरासी, चौकीदार और शिक्षक, जिन्हें रक्षक की भूमिका में होना था, वही आज भक्षक बन रहे हैं। पहले ही बच्चियों की पढ़ाई पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, ऐसे में दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं से शिक्षा खतरे में पड़ गई है।

गीता यादव, वरिष्ठ पत्रकार
हाल ही में जोधपुर जिले के एक निजी स्कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा से दुष्कर्म का मामला सामने आया है। सात वर्ष की मासूम की मां ने बताया कि गत 12 जुलाई को वह पुत्री के कपड़े धो रही थी, तब कपड़ों पर उसे कुछ धब्बे व निशान नजर आए। संदेह होने पर पुत्री से पूछा। मासूम ने बताया कि स्कूल में चपरासी ने पिछले एक साल में दो-तीन बार उसके साथ गंदा काम किया। मां घबरा गई। वह बच्ची को लेकर स्कूल गई, प्राचार्य को पूरी बात बताई। फिर महिला ने चपरासी के खिलाफ दुष्कर्म व पॉक्सो की धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई।

दूसरी घटना उत्तरप्रदेश के कोसीकलां थाना इलाके के एक सरकारी स्कूल की है। यहां नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा के साथ शिक्षक ने ज्यादती करने की कोशिश की। परिजनों को घटना का पता तब चला, जब छात्रा दो दिन से स्कूल जाने में आनाकानी कर रही थी। परिजनों के जोर देने पर छात्रा ने बताया कि स्कूल में गोविंद नाम के शिक्षक ने उससे ज्यादती करने की कोशिश की। परिवार वालों ने स्कूल जाकर प्रिंसिपल को घटना के बारे में बताया। उनकी शिकायत पर क्लास रूम में लगा सीसीटीवी फुटेज चेक किया गया। उसे देखकर सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई। सीसीटीवी में वह घटना साफ नजर आ रही थी। छात्रा के विरोध करने पर शिक्षक उस पर तेजाब डालकर जलाने की धमकी दे रहा था। पीड़िता ने परिवार के साथ थाने पहुंचकर आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कराया।

इन दोनों घटनाओं ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बच्चियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। किसी ब्रांडेड स्कूल में भी नहीं और न ही किसी सरकारी स्कूल में। इस तरह की घटनाएं स्कूल में पढ़ने वाली हर बच्ची और उसके अभिभावकों को झकझोर कर रख देती हैं। पिछले दिनों जो घटनाएं हुई हैं, उनमें स्कूल के चपरासी से लेकर शिक्षक तक मासूम बच्चियों से ज्यादती करते पाए गए हैं। ऐसे में अभिभावकों की चिंता यह है कि आखिर वह भरोसा करें तो किस पर। ऐसे में कई अभिभावक तो इतने मायूस हो जाते हैं कि बच्चियों की पढ़ाई तक छुड़वा देते हैं। पहले ही बच्चियों की पढ़ाई पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, ऐसे में दुष्कर्म की बढ़ती इन घटनाओं ने आग में घी का काम किया है।

दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में यौन शोषण का सामना करने वाले हर तीन में से एक बच्चा स्कूल छोड़ देता है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि दुष्कर्म अथवा यौन उत्पीड़न से प्रताड़ित बच्चों में से 33 प्रतिशत ने स्कूल छोड़ दिया है और केवल 9 प्रतिशत के पास पढ़ाई फिर से शुरू करने की योजना है। यौन उत्पीड़न से बचे बच्चों के स्कूल छोड़ने के पीछे लंबी और महंगी कानूनी प्रक्रिया, सामाजिक कलंक, सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं शामिल हैं। अध्ययन में पाया गया कि ऐसे बचे लोगों के 55 प्रतिशत परिवारों को अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे कम आय 57 प्रतिशत और बच्चों की सुरक्षा 47 प्रतिशत।

लगभग 15 प्रतिशत ने अन्य चुनौतियों जैसे स्कूल में नामांकन न होना, आश्रय गृह में रहने के कारण अनियमितता, भाषण विकार, खराब स्वास्थ्य और शारीरिक विकलांगता का उल्लेख किया। रुचि की कमी और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन को अन्य 15 प्रतिशत ने चुनौती के रूप में देखा। इसके अलावा यह भी पाया गया कि बची हुई कई लड़कियों में दुर्व्यवहार के बाद अलगाव और आत्म-अलगाव के लक्षण दिखे, जो स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण भी हैं। ये निष्कर्ष स्पष्ट रूप से पीड़ितों के लिए आवश्यक कल्याण, कानूनी और अन्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए अधिकांश परिवारों की अपर्याप्त क्षमता का संकेत देते हैं। जब पुर्नवास के लिए सहायता और सेवाएं प्रदान करने की बात आती है तो वर्तमान परिदृश्य निराशाजनक है और इसमें सुधारात्मक उपाय किए जाने की आवश्यकता है।

वहीं राजस्थान पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, साल 2018 में स्कूलों में बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म की 23 घटनाएं सामने आईं। इन मामलों में पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया गया। साल 2019 में प्रदेशभर में स्कूल में बच्चियोंं के साथ गंदी हरकत के 123 मामले सामने आए हैं। यही हालत साल 2020 में रहे और इस साल इस तरह के 103 मामले थानों तक पहुंचे हैं, जबकि साल 2021 में स्कूलों में बच्चियों के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म के 139 मुकदमे राज्य में दर्ज हुए हैं। आंकड़े बताते हैं कि स्कूलों में बेटियों से ज्यादती और छेड़छाड़ के सबसे ज्यादा मामले उदयपुर और सीकर में दर्ज हुए हैं। उदयपुर में साल 2018 में 6, 2019 में 29, 2020 में 23 और 2021 में 28 मुकदमे दर्ज हुए हैं। वहीं सीकर में 2018 में 4, 2019 में 21, 2020 में 20 और 2021 में 23 मुकदमे दर्ज हुए हैं।

इन आंकड़ों के विवेचन, विश्लेषण और अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि स्कूली बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले बढ़ते जा रहे हैं। दुष्कर्म के सरकारी आंकड़े पूर्ण रूप से अधूरे हैं, क्योंकि दुष्कर्म की सभी दुर्घटनाएं आंकड़ों तक पहुंचती नहीं हैं। दुष्कर्म के मामलों के बढ़ने के पीछे यह भी तर्क दिया जा रहा है कि सरकार के जो दिशा-निर्देश हैं, उनकी पालना भी गंभीरता से नहीं हो रही है। जिन स्कूलों में ज्यादा पुरुष स्टाफ हैं, वहां बच्चियों के साथ ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। सरकार और शिक्षा विभाग के साफ निर्देश हैं कि स्कूलों में बाल संरक्षण समिति का गठन होना चाहिए, लेकिन बहुत से स्कूल इन निर्देशों की अनेदेखी कर रहे हैं। बच्चों की काउंसलिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। मनोचिकित्सक मानते हैं कि अश्लील और यौन साहित्य, फिल्म, वीडियो के बढ़ते चलन ने भी यौन अपराधों को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।

राजस्थान के डूंगरपुर जिले की एक घटना ले लीजिए। यहां सरकारी स्कूल में 8 बच्चियों से रेप के मामले में हेडमास्टर के खिलाफ एक महीने के अंदर चालान पेश कर दिया गया। हेडमास्टर द्वारा अश्लील फिल्में देखकर बच्चों से रेप का मामला सामने आया था। यहां तक कि उसके मोबाइल में बच्चियों के अश्लील फोटो भी मिले। इस वारदात के बाद स्कूल प्रशासन सतर्क हो गया और छात्राओं की सुरक्षा के लिए एक बोर्ड लगाया गया, जिसके जरिए उन्हें जरूरी जानकारी दी गई। बोर्ड में लिखा था कि स्कूल में लगातार कोई अनजान व्यक्ति दिखाई दे तो संस्थान प्रधान या शिक्षक को तुरंत बताएं, बाहर जाते समय माता-पिता और शिक्षक को बताकर जाएं कि कहां जा रहे हैं, किसके साथ जा रहे हैं। किसी व्यक्ति द्वारा गलत तरीके से स्पर्श करने पर डरें नहीं और जोर से चिल्लाकर मदद के लिए बुलाएं। जल्दी से उस स्थान से चले जाएं, किसी के पास अकेले ना रुकें। इस बात को छुपाकर ना रखें, माता-पिता या शिक्षक, जिस पर आप भरोसा करते हैं, उसे बताएं। चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर और पुलिस थाने में शिकायत करें।

देशभर में बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। उनके यौन उत्पीड़न की कई घटनाएं सामने आ ही नहीं पाती हैं। स्कूल प्रशासन और मनोचिकित्सकों का सुझाव है कि माता-पिता लगातार अपने बच्चों से बात करते रहें। उन पर भरोसा करें। उनकी गतिविधियों के बारे में उनसे बात करते रहें ताकि उनका पेरेंट्स से बेझिझक अपनी बात कह सकें। मनोचिकित्सक डॉ. राकेश यादव बताते हैं कि मेरे यहां ज्यादती की शिकार ऐसी बच्चियां आती हैं, जिनके साथ काउंसलिंग कर उनके मन में बैठी दहशत दूर करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। ये प्रताड़ित और पीड़ित लड़कियां बेहद डरी हुई रहती हैं। उनके मन-मस्तिष्क पर इन घटनाओं का ऐसा प्रभाव पड़ता है कि उससे निकलने में उन्हें बरसों लग जाते हैं। छोटी बच्चियों को बहलाना, फुसलाना आसान है। अक्षत योनि की आदिम आकांक्षा और विक्षिप्त कुंठाएं भी इन अपराधों को बढ़ाने में सहायक होती हैं। स्कूलों में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की कुछ घटनाओं के बाद न केवल निजी स्कूल, बल्कि सरकारी स्कूलों में भी विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

सुरक्षा के खास इंतजाम के साथ स्कूलों में अभिभावकों के साथ विशेष अवेयरनेस प्रोग्राम किए जाने की आवश्यकता है। प्रत्येक क्लास में अलग-अलग उम्र में बच्चों की काउंसलिंग के लिए विशेष सत्र आयोजित किए जाने चाहिए। स्कूलों में शौचालय के बाहर महिला अटेंडेंट व स्टाफ को बच्चों की खास निगरानी के लिए रखा जाना चाहिए। शिक्षकों के लिए विशेष ओरिएंटेशन प्रोग्राम और वर्कशॉप आयोजित की जानी चाहिए। न केवल स्कूल परिसर के मुख्य स्थलों व क्लास रूम में, बल्कि स्कूल बसों में भी बच्चों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था की जानी चाहिए। इन बसों के संचालकों और ड्राइवरों का भी पूरा विवरण स्कूलों को रखना चाहिए। पुलिस वेरिफिकेशन के बाद ही बस संचालकों की नियुक्ति होनी चाहिए। बसों में जीपीएस होना चाहिए, जो अभिभावकों को लोकेशन जानने में मदद करता है। बच्चों में भी खुद की सुरक्षा के प्रति सेंस डेवलप करने की जरूरत है।

देश में बच्चियों के साथ होने वाले दुष्कर्म को लेकर प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस यानी पॉक्सो एक्ट बनाया गया है। इस एक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म, यौन शोषण और पॉर्नोग्राफी जैसे मामलों में सुरक्षा प्रदान की जाती है। इस कानून में सात साल या फिर उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। हमारे पास एक मजबूत कानून है। बावजूद इसके, ऐसी घटनाएं रुक नहीं रही हैं। बच्चों के दुष्कर्म के मामले कम होने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। यह दुखद है कि ऐसे प्रकरण न केवल शहरी क्षेत्रों में हो रहे हैं, बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी ऐसी वारदातें हो रही हैं। बच्चियां एक पढ़े-लिखे और खुद को सभ्य समाज का नुमाइंदा कहने वालों की हैवानियत का शिकार हो रही हैं। यह एक चिंता का विषय है और इसके लिए अभिभावक, स्कूल और सरकार को मिलकर समुचित प्रयास करने होंगे, ताकि बच्चियों की गरिमा बरकरार रहे और उनसे उनका स्कूल ना छूटे।

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