हकीकत पर कैसी हैरत!

भारत की 140 करोड़ की आबादी में तकरीबन एक अरब लोग ऐसे हैं, जिनके पास मनपसंद वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने लायक पैसा नहीं है। इस रूप में भारत का उपभोक्ता वर्ग 13-14 करोड़ लोगों से ज्यादा बड़ा नहीं है।

ब्लूम वेंचर्स की इंडस वैली रिपोर्ट में कोई ऐसी नई जानकारी नहीं है, जिससे कोई चकित हो। बल्कि ये बातें भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों, केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक सर्वे और भारत सरकार के उपभोग सर्वेक्षणों से जाहिर होती रही हैं। इसके बावजूद ताजा रिपोर्ट अधिक चर्चित हुई और उस पर बड़ी संख्या में आर्थिक जगत से जुड़े लोग हैरत में नजर आए, तो उसकी पहली वजह तो यह है कि ब्लूम वेंचर्स के शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष सरल और दो टूक लहजे में सामने रखे हैं। दूसरा कारण संभवतः यह है कि इस रिपोर्ट की विस्तृत खबर बीबीसी की वेबसाइट पर छपी, जिससे सहज ही प्रभु वर्ग का ध्यान उस ओर खिंच गया।

ब्लूम वेंचर्स ने रिपोर्ट कंपनियों के नजरिए से उपभोक्ता वर्ग का आकलन करने के लिए तैयार किया है। संभवतः इसलिए भी कॉरपोरेट और वित्तीय क्षेत्रों से जुड़े लोगों का ध्यान इस अधिक और तुरंत गया है। कुछ अपने बनाए और कुछ पश्चिमी मीडिया के बनाए नैरेटिव्स में कैद लोगों के लिए ये तथ्य गले से उतारना मुश्किल साबित हुआ है कि भारत दुनिया की आर्थिक महाशक्ति या 2047 तक विकसित देश बनने की ओर नहीं बढ़ रहा है। बल्कि भारत की ग्रोथ कथा गतिरुद्ध हो चुकी है।

इंडस वैली रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि भारत की 140 करोड़ की आबादी में तकरीबन एक अरब लोग ऐसे हैं, जिनके पास मनपसंद वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने लायक पैसा नहीं है। इस रूप में भारत का उपभोक्ता वर्ग 13-14 करोड़ लोगों से ज्यादा बड़ा नहीं है। लगभग 30 करोड़ लोग उपभोक्ता वर्ग का संभावित हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन अभी वे रोजमर्रा की जरूरतों से इतर खरीदारी नहीं करते। मौजूदा रुझान का उल्लेख करते हुए शोधकर्ताओं ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘विस्तृत’ नहीं, बल्कि ‘गहरी’ हो रही है। इसका अर्थ है कि धनी लोगों की संख्या नहीं बढ़ रही है, मगर धनी लोगों का धन तेजी से बढ़ रहा है। इस वजह से आम चीजों का बाजार मंदा है, लेकिन महंगे- प्रीमियम उत्पादों के बाजार में तेजी बनी हुई है। और यही आज के भारत की हकीकत है।

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