अपनी फिक्र कैसे करें?
सर्वे के मुताबिक काम में अधिक समय लगाने का तथ्य महिला और पुरुषों दोनों के मामले में उजागर हुआ। महिलाएं अब काम में 2.3 प्रतिशत अधिक समय लगा रही हैं, जबकि पुरुषों के मामले में यह वृद्धि 3.5 फीसदी है।
भारत में लोग काम और घरों में बच्चों/ बुजुर्गों की देखभाल (जिसके बदले कोई आर्थिक लाभ नहीं होता) पर अपेक्षाकृत अधिक समय खर्च कर रहे हैं, जबकि नींद और अपनी व्यक्तिगत देखभाल में लगने वाला उनका समय घट गया है। यह निष्कर्ष 2024 में जनवरी से दिसंबर के बीच हुए ‘समय उपयोग सर्वेक्षण’ (टीयूएस) से निकला है। यह भारत सरकार की तरफ से कराया गया सर्वे है, जिसकी रिपोर्ट राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने जारी की है। उल्लेखनीय है कि इस सर्वेक्षण के नतीजे आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षणों (पीएलएफएस) के हालिया निष्कर्षों से मेल खाते हैं। उन सर्वेक्षणों से सामने आया कि कोरोना काल के बाद से काम करने या काम की तलाश करने में लगे लोगों की कुल संख्या बढ़ गई है। पिछला टीयूएस 2019 में हुआ था। इस तरह ताजा सर्वे पांच साल में लोगों के उपयोग में आए बदलाव को बताता है।
2024 के सर्वे के मुताबिक काम में समय बढ़ने का तथ्य महिला और पुरुषों दोनों के मामले में उजागर हुआ। महिलाएं अब काम में 2.3 प्रतिशत अधिक समय लगा रही हैं, जबकि पुरुषों के मामले में यह वृद्धि 3.5 फीसदी है। यहां ये तथ्य गौरतलब है कि भारत सरकार ने अब काम की परिभाषा बदल दी है। इसके तहत स्वरोजगार में लगे और उसमें सहायता करने वाले व्यक्तियों को भी रोजगार-शुदा माना जाता है। इस तरह घरेलू कारोबार में सहायता करने वाली महिलाओं को भी रोजगार-शुदा समझा जा रहा है। घरों में असक्त लोगों की देखभाल को अनपेड केयर-गिविंग की श्रेणी में गिना जाता है।
नई परिभाषा के तहत सांस्कृतिक गतिविधियों, अवकाश, मीडिया उपयोग और खेल-कूद को मनोरंजन की श्रेणी में रखा गया है। इस तरह कोई व्यक्ति अगर मोबाइल पर वीडियो देखता है या हताशा के कारण काम की तलाश छोड़ दी हो, उसे अवकाश की श्रेणी में देखा जाता है। ताजा सर्वे के मुताबिक अब पांच साल पहले की अवधि की तुलना में लोग ‘मनोरंजन’ में औसतन अधिक समय लगा रहे हैं। स्पष्टतः काम, अनपेड केयर-गिविंग और मनोरंजन में औसत समय बढ़ना खुशहाली का संकेत नहीं है। बल्कि असल में, यह प्रतिकूल स्थितियों की ओर इशारा है।