चुनाव आयोग और महाराष्ट्र की दशा
चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब भी कोई असहज सवाल उठता है तो मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार या तो विपक्ष पर तंज करने लगते हैं या शायरी सुनाने लगते हैं। उनकी शायरी सुन कर ‘सन ऑफ सरदार’ फिल्म के अजय देवगन की तरह यह पूछने का मन करता है कि ‘पाजी पहले आप हाईवे पर ट्रक चलाते थे’? क्योंकि उनकी शायरी भी ट्रक के पीछे लिखी गई शायरी की तरह होती है। शायरी से आगे बढ़ कर वे वस्तुनिष्ठ जवाब नहीं देते हैं और न जिम्मेदारी लेते हैं। अब एक अजीब तरह की स्थिति महाराष्ट्र में है, जहां 26 नवंबर की आधी रात को विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो गया लेकिन कोई सरकार शपथ नहीं ले पाई। इसका मुख्य कारण यह है कि चुनाव आयोग ने चुनाव का कार्यक्रम इस तरह घोषित किया कि मतगणना 23 नवंबर को हुई। इसके बाद तीन ही दिन का समय बच रहा था सरकार गठन के लिए। उसमें भाजपा तीन चौथाई बहुमत के बावजूद सरकार नहीं बना सकी।
सोचें, चुनाव आयोग ने क्यों ऐसा शिड्यूल बनाया? जब महाराष्ट्र की विधानसभा का कार्यकाल तीन नवंबर को खत्म हो रहा था तो उसका चुनाव पहले एक अक्टूबर को घोषित किया गया और फिर पांच अक्टूबर को करा लिया गया। यानी विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से एक महीने पहले चुनाव कराया गया। सवाल है कि एक विधानसभा का कार्यकाल तीन नवंबर को और दूसरे का 26 नवंबर को खत्म हो रहा था क्यों नहीं दोनों का चुनाव एक साथ कराया गया? सुरक्षा व्यवस्था और मानसून का तर्क फालतू का है क्योंकि चुनाव आयोग तो पूरे देश का चुनाव एक साथ कराने को तैयार है तो दो चार राज्यों में क्या दिक्कत हो सकती है और मानसून भी एक ही जैसा था फिर भी अक्टूबर में हरियाणा और जम्मू कश्मीर का चुनाव हुआ और महाराष्ट्र छोड़ दिया गया। महाराष्ट्र के साथ झारखंड का चुनाव कराया गया, जिसकी विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी 2025 को खत्म हो रहा था।
ऐसा लग रहा है कि चार राज्यों का चुनाव कार्यक्रम इतने अतार्किक और असंगत तरीके से तय करने के पीछे राजनीतिक डिजाइन था। लेकिन ऐसा नहीं है कि राजीव कुमार के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने पहली बार ऐसी स्थिति पैदा की है, जैसी महाराष्ट्र में है। इसी साल चुनाव आयोग ने सिक्किम में वोटों की गिनती चार जून को तय की थी, जबकि राज्य की विधानसभा का कार्यकाल दो जून को ही समाप्त हो रहा था। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद जब आयोग को बताया गया तो मतगणना की तारीख बदली और दो जून को गिनती हुई। उसी दिन नतीजे आए और उसी दिन आनन फानन में विधानसभा का गठन किया गया ताकि राष्ट्रपति शासन नहीं लगाना पड़े। सोचें, ऐसे उलटे सीधे काम हो रहे हैं लेकिन जवाबदेही के नाम पर सड़क छाप शायरी है।