कांग्रेस (विपक्ष) के मूर्खों जमीन और भावनाओं की राजनीति करो!

लोगों की नजर में नरेंद्र मोदी की कला उतरती हुई और राहुल गांधी की चढ़ती हुई है। बावजूद इसके हरियाणा में कांग्रेस हारी तो मूर्ख कांग्रेसी, जहां ईवीएम पर वही अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव आदि की पार्टियां कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ रही हैं! ये सभी इस बेवकूफी में जी रहे हैं कि भीड़ अपने आप वोट में कनवर्ट होती है। आप ने अब दिल्ली में अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है तो अखिलेश ने बेवकूफी में उपचुनावों के उम्मीदवारों की एकतरफा घोषणा की। और नोट रखें यूपी उपचुनावों में अखिलेश को झटका लगेगा। वही दिल्ली के अगले विधानसभा चुनाव में आप का हारना गारंटीशुदा है!

क्यों? इसलिए कि औसत हिंदू वोटर की थाली के रसोईये, नरेंद्र मोदी से मोहभंग है, वह मान रहा है कि खाने के नाम पर कंकड़ या कडुआ कचरा है जबकि यह सत्य होते हुए थाली का मेन कोर्स, रोटी, उसका अनाज क्योंकि हिंदू चिंता है तो उसका वोट ठोस, जमीनी प्रबंधों से जीता देने वाला है। इसलिए राहुल गांधी से लेकर नाना पटोले, तेजस्वी यादव, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव, उमर अब्दुल्ला, उदयनिधि स्टालिन (इंडिया गठबंधन) सबको समझना चाहिए रेवड़ियां, नेता के चेहरे, भाषण अपील, जाति जनगणना, आरक्षण सब थाली में चटनी, सलाद, मीठा, नमकीन हैं। असल जरुरत रोटी, अनाज की है। हिंदू को हिंदू रोटी चाहिए, मुसलमान को मुस्लिम रोटी चाहिए।

सच्चाई इस तरह लिखना खराब है लेकिन हकीकत समझे कि भाजपा का कोर वोट पक्का होता हुआ और धीरे धीरे एक-एक, दो-प्रतिशत के हिसाब से चुनाव दर चुनाव बढ़ता हुआ है, गुजरात के बाद मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा आदि का भी गुजरातीकरण है तो वजह 9/11 से सात अक्टूबर 2023 को हमास के इजराइल पर हमले के सतत प्रभावों से भी है। राहुल, अखिलेश, केजरीवाल, हुड्डा, जम्मू के कांग्रेसियों ने नहीं सोचा होगा कि हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह पर घाटी में महबूबा, एनसी उम्मीदवार, लखनऊ के मुसलमानों ने स्यापा किया तो हिंदू चुपचाप दिमाग में इजराइल के यहूदियों की जगह अपने को और सामने मुसलमान को समझे हुए था। मेवात का मुसलमान और उसके अगल बगल के गुरूग्राम, फरीदाबाद, अहिरवाल में हिंदू का दिमाग जैसे खड़का वैसे ही जम्मू कश्मीर में हिंदू और मुसलमान के वोट भी खड़के!

और इसका बेबाक प्रमाण यह भी है कि नरेंद्र मोदी हिंदुओं में एकता का भाषण देने लगे। विकसित भारत की जगह नैरेटिव में बंटोगे तो कटोगे के भाषण होने लगे। सो, राहुल गांधी, कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन के आगे पहली जरूरत है कि उसे पहले हिंदुओं का प्रामाणिक रसोईया बनना है और चुपचाप मुस्लिम रसोई भी चलानी है ताकि भारत में सेकुलर राजनीति का स्पेस बना रहे तो दिलों के टूटने से भारत के आगे टुकड़े होने के सिनेरियो में कांग्रेस का बफर, विकल्प 140 करोड़ लोगों के आगे मौजूद रहे। इसलिए भारत की रक्षा के हित में जरूरत है गांधी की रामधुनी वाली कांग्रेस जैसे भी हो हिंदुओं दिमाग में बची रहे, बैठे रहे।

यह असल और आवश्यक राजनीति है। दूसरा पहलू जमीनी राजनीति है। अर्थात भीड़ को बूथ तक पहुंचाने के लिए जातियों की गणित, अर्थात अंग्रेजों के बनाए व मोदी-शाह के अपनाए बांटो और राज करो के फार्मूलों को बारीकी से अपनाने, अमल करने की राजनीति। पता नहीं भूपेंद्र हुड्डा, राहुल गांधी, कांग्रेस की जमीनी सर्वे टीम आदि ने क्यों नहीं लोकसभा में तेजस्वी की गलती तथा अखिलेश की इस समझदारी को गांठ में नहीं बांधा कि तेजस्वी ने ज्यादा यादव उम्मीदवार खड़े कर बाकी जातियों को बिदकाया वहीं अखिलेश न कम यादव और मुसलमान उम्मीदवार खड़े कर मोदी-योगी के खिलाफ सर्वजातियों (यादव-मुसलमान तो वोट देने ही थे और दिए भी) के वोट पा कर यूपी में उलटफेर कराया। तभी हुड्डा बाप-बेटे को क्यों जाटों को इतने टिकट बांटने थे? ये कांग्रेस हाईकमान के नाम पर समझदारी से ब्राह्मण, राजपूत, 36 बिरादरी के ज्यादा उम्मीदवार उतारते तो क्या भाजपा की जमीनी रणनीति (जो जाहिर थी) का वह काउंटर नहीं होता?

मगर भूपेंदर सिंह हुडडा, राहुल गांधी का चेहरा, और भीड़ के शोर से कांग्रेस ने मोदी-शाह के जमीनी चुनावी कौशल के आगे वैसे ही चुनाव लड़ा जैसे वह अहमद पटेल के समय से लड़ती आ रही है। मैंने 2002, 2007, 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान इसी गपशप कॉलम में कमलनाथ-सुरेश पचौरी, मोहन प्रकाश, सीपी जोशी-गहलोत के कांग्रेस प्रबंधकों की खामोख्याली, इनके द्वारा मोदी-शाह को कमतर आंकने और मोदी की भावना केंद्रित जमीनी बंदोबस्तों से मजे में जीत के अनुमानों पर हर बार लिखा है। एक तरफ इनके कर्ताधर्ता अहमद पटेल तथा दूसरी ओर आडवाणी, सुषमा, जेटली, मोदी से मेरी नॉर्मल हमेशा गपशप रही और मैं देखते हुए था कि कांग्रेस क्यों हर बार चुनाव में हार कर दीवार पर सिर पीट रह जाती है। फिर वह सिलसिला 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से है।

कई वजह हैं। पहले सेकुलर सलाहकारों, प्रणय रॉय-राजदीप-हर्ष मंदर जैसे प्रगतिशील, सोशल इम्पावारमेंट वाले एनजीओ-सेकुलरों के मीडिया इकोसिस्टम का नैरेटिव अहमद पटेल-गांधी परिवार को चलाते हुए था और अब उसकी जगह राहुल गांधी के वे सलाहकार हैं, यूट्यूब के सोशल मीडिया का वह इकोसिस्टम है, जो ईमानदारी से नरेंद्र मोदी की असलियत बताता हुआ है लेकिन इन बेवकूफियों का नैरेटिव भी बनाता है कि हरियाणा में मुद्दा किसान-जवान-पहलवान का है। और राहुल, प्रियंका, हुड्डा, तेजस्वी, अखिलेश की भीड़ देखो और जीत नहीं, हवा है, हवा नहीं आंधी है, आंधी नहीं सुनामी है!

भीड़ मोदी की सच्चाई है, भीड़ राहुल की सच्चाई है। इसका प्रतिनिधि सत्य हरियाणा में भाजपा के 39.94 फीसदी और कांग्रेस के 39.09 प्रतिशत की लगभग बराबरी है। पर भाजपा का आंकड़ा हिंदू चिंता से स्थायी-ठोस शक्ल लिए हुए है वहीं कांग्रेस, सपा, राजद, उद्धव, शरद पवार आदि ‘इंडिया’ एलायंस की पार्टियों का आधार चंचल है। यह चंचलता कभी भी धोखा दे सकती है। मोदी-शाह के जमीनी याकि भीड से बूथ तक के प्रबंधों में विपक्ष का वोट दो-चार प्रतिशत इधर-उधर हुआ या आपस में बंटा तो विपक्ष टूंगता रह जाएगा और थाली भाजपा की। इसलिए कांग्रेस, सपा, राजद, आप, महाराष्ट्र की अघाड़ी पार्टियों (सोचें, चुनाव घोषणा से ठीक पहले महाराष्ट्र में मोदी-शाह वोटों के माइक्रो प्रबंधन में कैसे निर्णय करते-कराते हुए हैं) की एक बेसिक कमी जमीनी बिसात की हकीकतों को नजरअंदाज किए रखना है।

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