राजस्थान में बीजेपी का सदस्यता अभियान : रणनीतिक असफलता या कार्यकर्तााओं की उदासीनता ?

जयपुर। राजस्थान में बीजेपी के सदस्यता अभियान का लक्ष्य 1 करोड़ था, लेकिन इसे बढ़ाकर 1 करोड़ 25 लाख कर दिया, जो एक अव्यवस्थित और बिना सोचे-समझे लिए गए फैसले की तरह लगता है। संगठन में ऐसी महत्वाकांक्षी वृद्धि को बिना सही योजना और साधनों के लागू करने का क्या औचित्य था? क्या यह सिर्फ एक संख्या का खेल था, या वास्तव में संगठन को मज़बूत बनाने की कोई ठोस रणनीति थी?‌‌वहीं अब बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौ़ड़ ने प्रदेश सक्रिय सदस्यता समीक्षा समिति का भी गठन कर दिया है । समिति का संयोजन ओंकार सिंह लखावत को बनाया गया है, जबकि नारायण पंचारिया और कैलाश मेघवाल को सदस्य बनाया गया है । यह समिति सदस्यता अभियान की समीक्षा करके अपनी रिपोर्ट देगी ।

कार्यकर्ताओं की व्यस्तता का बहाना : हरियाणा चुनाव का हवाला

सदस्यता अभियान के संयोजक का यह तर्क कि हरियाणा चुनाव की वजह से कार्यकर्ता व्यस्त थे, एक अप्रत्याशित बहाना प्रतीत होता है। अगर कार्यकर्ता इतने व्यस्त थे, तो क्या यह योजना का दोष नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या को हासिल करने का लक्ष्य उसी समय निर्धारित किया गया? यह सवाल उठता है कि अगर हरियाणा चुनाव की तैयारी इतनी महत्वपूर्ण थी, तो राजस्थान में अभियान को सही तरीके से चलाने के लिए पहले से कोई योजना क्यों नहीं बनाई गई?

राजस्थान : संगठन चुनावों में हमेशा पीछे क्यों?

बातचीत में संगठन के अपने नेतृत्व की ढिलाई साफ नजर आती है, खासकर जब यह कहा जाता है कि राजस्थान कभी उन 50 प्रतिशत राज्यों में शामिल ही नहीं रहा जहां संगठन चुनावों की प्रक्रिया तेज होती है। क्या यह बड़े राज्य होने का बहाना है, या फिर एक सोची-समझी लापरवाही, जिसे हर बार दोहराया जाता है? बड़े राज्य होने का मतलब यह तो नहीं होना चाहिए कि संगठन चुनाव की प्रक्रिया ही ढीली रहे। राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण राज्य में संगठन चुनाव की इतनी ढीली गति क्यों होती है?

जेपी नड्डा का दौरा रद्द : संगठन की कमजोरी का प्रतीक

केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा का राजस्थान दौरा रद्द होना क्या इस पूरे ढांचे की कमजोरी को उजागर नहीं करता? यह एक स्पष्ट संकेत है कि संगठन के भीतर गंभीर समस्याएं हैं। अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष का दौरा रद्द होता है, तो इसका मतलब यही है कि संगठनात्मक असफलताएं खुलकर सामने आ रही हैं। कुल मिलाकर, यह पूरी स्थिति संगठन की गंभीर विफलता की ओर इशारा करती है।

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