विपक्ष का चेहरा खिला-खिला रहेगा?

विपक्ष इस बार मोदी जी को मनमानी नहीं करने देगा। मोदी जी के चेहरे से परेशानी टपकने लगी है। जो गोदी मीडिया उनके चेहरे पर ग्लो (चमक) देखता था अब उसे वह चेहरा बुझा बुझा सा दिखने लगा है। बोल नहीं पाएगा। मगर यह भी नहीं बोलेगा कि मोदी जी तो थकते नहीं। कितनी उर्जा से भरे रहते थे।… विपक्ष को जनता ने जिताया नहीं मगर मजबूत बहुत कर दिया। संख्या से तो जितना किया उतना कियाही मगर हौसले बहुत बढ़ा दिए।

विपक्ष को झूठ बोलना नहीं आता हिप्पोक्रेसी नहीं आती इसीलिए शायद वह विपक्ष में है। जनता झूठ और मक्कारी से घिर गई है।नोम चोमस्की इस सदी के सबसे बड़े विचारकों में हैं। खास बात नए विचार देने में और यह बताने में की राजनीति मीडिया मिल कर जनता को किस तरहबेवकूफ बनाते हैं।वही हो रहा है।

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार मीडिया कोसंबोधित कर रहे थे। 18 वीं लोकसभा का पहला दिन। परंपरा के अनुसार लोकसभाजाने से पहले प्रधानमंत्री की मीडिया से बात। मगर पहले के प्रधानमंत्रीयह करते थे। बात। संवाद। सवालों के जवाब। मनमोहन सिंह बात करत थे। सवालका जवाब देते थे। वाजपेयी करते थे।

नरसिम्हा राव, देवगौड़ा, गुजराल, वीपीसिंह राजीव गांधी और इन्दिरा गांधी सब। मगर मोदी जी बोलते हैं। और चलदेते हैं। और बात भी अपनी नहीं। अपनी सरकार की नहीं। कामकाज की नहीं।दूसरे को क्या करना चाहिए इसकी। पर उपदेश कुशल बहुतेरे! विपक्ष कोजिम्मेदार बनना चाहिए। और इसके लिए उन्होंने जिन शब्दों का उपयोग कियानखरे, ड्रामे!

यह उसी स्तर के शब्द हैं जैसे प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार के दौरान बोलतेरहे। भैंस खोलने, मंगलसूत्र छीनने से जैसे। पिछली बार प्रधानमंत्री नेकहा था कि चुनाव में ऐसी बातें हो जाती हैं। मगर बाद में नहीं होतीं। मगर अब तो मोदी जी चुनाव के बाद भी वही भाषा बोल रहे हैं। विपक्ष के लिएड्रामेबाजी नखरा!

भारत के किसी प्रधानमंत्री की भाषा इस स्तर की नहीं रही। क्या होता हैइसका परिणाम? मीडिया यही भाषा इसी तरह के विचार जनता के पास पहुंचा देताहै। सोमवार को क्या हुआ? लोकसभा का पहला दिन। सुरक्षा व्यवस्था सहितपत्रकारों के पास बनाने का सारा काम पार्लियामेंट के स्टाफ से हटाकरसीआईएसएफ को दे दिया गया है। यहां तक की उसकी प्रेस गैलरी में भी

सीआईएसएफ तैनात कर दी गई है। जो कभी नहीं हुई। राज्यसभा के सांसदों को भीलोकसभा की पत्रकार प्रेस गैलरी में बिठा दिया गया। पत्रकारों से कहा गयाकि पेन भी अंदर नहीं ले जा सकते। पत्रकार बहुत परेशान थे। हमसे कह रहे थे कि आप तो बहुत लिख रहे हैं। मगरविपक्ष को भी उठाना चाहिए। हमने कहा कि विपक्ष तो बहुत सवाल उठ रहा है।मगर आप को भी कुछ लिखना बोलना चाहिए! दोस्त चुप।

राहुल ने पूरे भारत की सड़कें नाप दीं। दस हजार किलोमीटर से ज्यादा दोयात्राओं में चले। मगर पत्रकार कहते हैं विपक्ष को सड़क पर उतरना चाहिए।उन्हें जो सीखा दिया गया है वही बोलते रहते हैं। चोमस्की ने यही कहा कि विचार का एक दायरा बना दिया जाता है। जहां लोगघूमते रहते हैं। व्ह्टसएप ग्रुप और गोदी मीडिया ने पैरामीटर बना दिए हैं।विपक्ष को यह करना चाहिए, वह करना चाहिए। राहुल कितना ही पैदल चल लें,हजारों लोगों से मिले लें। अखिलेश तेजस्वी कितनी मेहनत कर लें।

बेरोजगारी, महंगाई, जनता के सारे सवाल उठा लें मगर मीडिया वही कहेगा औरउससे सीखी जनता का एक हिस्सा भी कि विपक्ष को यह करना चाहिए। वह एक कहावत है बहुत पुरानी कि मुर्गी अपनी जान से गई खाने वाले को मजानहीं आया! विपक्ष कर करके मर गया ( मुहावरे के तौर पर) और मीडिया औरउससे सीखी जनता कहती है कि कुछ करते क्यों नहीं?

चोमस्की यही समझाते हैं कि राजनीति और मीडिया किस तरह लोगों को सोच के एकदायरे में घूमाती रहती है। बार बार एक ही बात कहकर। यही हिटलर और उसकेप्रचारतंत्र का मुखिया गोएबल्स कहता था कि एक झूठ को सौ बार बोलो लोग उसेसच मानने लगते हैं। दस साल में जनता के सवालों को गायब कर दिया गया है।मीडिया में कहीं आपको दिखते हैं?

कांग्रेस ने अपना पूरा घोषणा पत्र जनता के सवालों पर बनाया था। मगर मोदीजी और मीडिया ने कहा कि यह मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र है। जनता को अपनेसवालों से काटने का यह खतरनाक तरीका है। इसमें जनता का ध्यान नानइशु मेंउलझा दिया जाता है।

मगर इससे किसी राजनीतिक दल को फायदा हो सकता है। जैसा इस बार भी हुआ। मगरजनता पिछड़ती जाती है। नौकरी नहीं से अनाज नहीं तक पहुंच जा जाती है। उसेकुछ मालूम नहीं पड़ता। देश में गेहूं की कमी हो गई है। उत्पादन मेंगिरवाट आ रही है। सरकार को व्यापारियों स्टाक कम रखने के आदेश देना पड़ेहैं। कारण सबको मालूम हैं। कृषि और किसान विरोधी नीतियां। किसानों के साथशत्रुओं जैसा व्यवहार। उसे खालिस्तानी, आतंकवादी कहा गया।

इन्दिरा गांधी ने किसानों को विश्वास में लेकर हरित क्रान्ति की थी। देशके गोदाम अनाजों से ठसाठस भर दिए थे। उन्हें जो सुविधाएं चाहिए थीं दी गईथीं। मगर आज सिंचाई सुविधाएं नहीं बढ़ाई जा रहीं। उस पर ध्यान ही नहींहै। बिजली मिल नहीं रही। डीजल मंहगा। खाद नहीं। बीज नहीं। कीटनाशक नकली।जो व्यवस्थाएं सहज सुलभ थीं। उन्हें मुश्किल बना दिया गया है।

अब परिणाम क्या होगें इसकी चिन्ता किसी को नहीं है। यह मुद्दा ही नहींहै। कहीं आपने देखा मीडिया या सरकार को गेहूं उत्पादन में आ रही कमी केबारे में चिन्ता करते?

हर चीज को न्यू नार्मल बना दिया गया है। मतलब लोग अपनी हर परेशानी को यहतो होती है मानने लगे हैं। पहले जो पीएमटी था वही अब नीट है। कभी सुनापर्चा लीक की बात? देश का सबसे प्रतिष्ठित टेस्ट होता है। हर बच्चे का औरमां बाप का सपना होता है डाक्टर बनना। मगर उसमें पैसे वालों के बच्चों कोमेरिट में ले आने का यह खेल पहली बार देखा गया। बहुत उच्च स्तर परभ्रष्टाचार है। मगर नीट की परीक्षा केसिंल नहीं कर रहे। पुलिस भर्ती सेलेकर डाक्टर तक पेपर लीक। मगर यह सब मुद्दे नहीं।

मुद्दा क्या? मुद्दा विपक्ष को क्या करना चाहिए।

घर पर कब्जा सास का! और सवाल सारे बहु से! बहु को यह करना चाहिए, वह करनाचाहिए। गांव में कहावत है कि बहु तो कुछ भी कर ले उसमें कमियां निकाल दीजाती हैं। सीता मैया तक से कह दिया!

यही स्थिति है। गांव देहात के शब्दों में सासो वाली! अपनी गलती कोई देखनानहीं। सारी गलतियां कमियां दूसरे में आरोपित कर देना।

मगर अब यह चलेगा नहीं। इस बार विपक्ष के हौसले बढ़े हुए हैं। जनता ने उसेजिताया नहीं मगर मजबूत बहुत कर दिया। संख्या से तो जितना किया उतना कियाही मगर हौसले बहुत बढ़ा दिए।

लोकसभा शुरू हुए दो दिन हो गए। मोदी जी और सत्ता पक्ष में पुरानी अकड़नहीं दिख रही। विपक्ष उत्साह में और उर्जा से भरा हुआ दिखाई दे रहा है।हर मोर्चे पर लड़ने को तैयार। पहले प्रोटेम स्पीकर पर अपना विरोध दर्जकराते हुए सरकार और प्रोटेम स्पीकर के साथ सहयोग नहीं किया। फिर डिप्टीस्पीकर की मांग नहीं मानने पर लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ने कोतैयार हो गया। जो प्रोटोम स्पीकर के सबसे ज्यादा चुनाव जीतने के कारणस्वाभाविक अधिकारी थे उन के सुरेश का पर्चा भरवा दिया। वे दलित भी हैं।

एक और मैसेज। इस बार यूपी का दलित न मायावती के साथ गया और न भाजपा के।वह कांग्रेस के साथ तो आया ही। पहले था भी उसके साथ। आश्चर्यजनक रूप सेसपा के साथ गया। पहले वह सपा के साथ कभी नहीं जाता था।

तो विपक्ष इस बार मोदी जी को मनमानी नहीं करने देगा। मोदी जी के चेहरे सेपरेशानी टपकने लगी है। जो गोदी मीडिया उनके चेहरे पर ग्लो (चमक) देखता थाअब उसे वह चेहरा बुझा बुझा सा दिखने लगा है। बोल नहीं पाएगा। मगर यह भीनहीं बोलेगा कि मोदी जी तो थकते नहीं। कितनी उर्जा से भरे रहते थे। मीडिया के लिए पुराना मुख महिमामंडन मुश्किल होगा।

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