आम रेल यात्री लावारिश और असुरक्षित
शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कभी ना कभी रेल यात्रा न की हो। रेलवे स्टेशन पर सुनाई देने वाली घोषणा की शुरुआत ‘यात्रीगण कृपया ध्यान दें’ से ही होती है। इसका उद्देश्य सभी मौजूद यात्रियों का ध्यान आकर्षित करना होता है। यह तो हुई एक साधारण बात। परंतु बीते कुछ वर्षों में हो रहे रेल हादसों के बाद से अब इस घोषणा का सीधा सम्बंध भारतीय रेल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े मंत्रियों और अफ़सरों से है। बढ़ते हुए रेल हादसों के चलते अब भी अगर संबंधित मंत्री और अधिकारी नहीं जागेंगे तो कब जागेंगे?
देश की जीवन रेखा माने जाने वाली भारतीय रेल हर ख़ास-ओ-आम आदमी के लिए देश के किसी भी कोने से दूसरे कोने तक यात्रा करने का सस्ता और भरोसेमंद साधन है। हर यात्री को इस बात का भरोसा होता था कि देर-सेवर वो अपने गंतव्य तक पहुँच ही जाएगा। ज्यों-ज्यों देश की आबादी बढ़ी सरकार ने रेल यात्रा में उचित सुधार भी किए।
आज भारत में रेलवे की कुल लंबाई 1,15,000 किलोमीटर है। भारतीय रेल रोजाना करीब 2 करोड़ 31 लाख यात्रियों और 33 लाख टन माल को ढोती है। यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सेवा है। 12.27 लाख कर्मचारियों के साथ, भारतीय रेलवे दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी व्यावसायिक इकाई है। भारतीय रेल के कार्यचालन के विभिन्न पहलुओं की देखभाल करने के लिए इसने 11 सरकारी क्षेत्र के उपक्रम भी है। भारत जैसे देश के लिए इतने बड़े स्तर पर यात्रा का साधन मुहैया कराने वाली भारतीय रेल पर देश को गर्व है। परंतु हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।
बीते कुछ वर्षों में रेल मंत्रालय द्वारा कई ट्रेनों में जो बदलाव किए गए हैं वह एक ओर जहां यात्रियों द्वारा बधाई प्राप्त कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पूरे सिस्टम में फैली अव्यवस्था को लेकर भारी विरोध भी झेल रहे हैं। यात्रियों की सुविधा की दृष्टि से रेल मंत्रालय ने अनेकों आधुनिक गाड़ियाँ भी चलाईं। जैसे-जैसे रेल यात्रा में सुविधा बढ़ी वैसे-वैसे किराये में भी वृद्धि हुई।
उल्लेखनीय है कि जिस कदर रेल के किरायों में वृद्धि हुई है उसमें यात्रा केवल वही लोग कर पा रहे हैं जो उस बढ़े हुए किराए का वहन कर सकते हैं। आम जनता जो कि साधारण श्रेणी में यात्रा करती है उसके लिये कोई भी नई सुविधा नहीं दी गई है। आबादी के बढ़ने पर आम जनता के लिए आम श्रेणी की गाड़ियों में भी बढ़ौतरी की जानी चाहिए थी, परंतु ऐसा नहीं हुआ।
आँकड़ों के अनुसार बीते वित्तीय वर्ष में 2.70 करोड़ यात्री टिकट होने के बावजूद रेल में यात्रा नहीं कर पाए, क्योंकि उनका टिकट कन्फर्म नहीं हो पाया। इसी का नतीजा हुआ कि आए दिन हमें यह देखने को मिलता है कि ट्रेन में सफ़र करने वाले लोग ट्रेन की क्षमता से ज़्यादा पाए जाते हैं। इससे आरक्षित टिकट प्राप्त कर यात्रा करने वालों को काफ़ी असुविधा का सामना करना पड़ता है। क्या रेल मंत्रालय के अधिकारियों इस बात की जानकारी नहीं थी कि देश में बढ़ती हुई आबादी के चलते आवागमन में भी वृद्धि होगी? क्या जिन यात्रियों की टिकट कन्फर्म नहीं हुई और उन्हें उनके किराए की राशि वापिस की गई, इसकी संख्या में होती वृद्धि पर किसी का ध्यान नहीं गया? क्या जिन साधारण श्रेणी के डिब्बों को उच्च श्रेणी में तब्दील किया जाना उचित था? क्या उच्च श्रेणी की आधुनिक ट्रेनों को चलाने के लिए साधारण श्रेणी की ट्रेनों को रद्द करना उचित था? यदि समय रहते सही निर्णय लिया गया होता तो रेल में भीड़ के चिन्ताजनक दृश्य सामने नहीं आते।
एक ओर जहां किसी नई और आधुनिक रेल के उद्घाटन के समय जिस कदर मंत्री और अफ़सर श्रेय लेने के लिए आगे आते हैं, वह रेल में हो रही लापरवाहियों का ज़िम्मा लेने से बचते नज़र आते हैं। आँकड़ों के अनुसार 2014 से 31 मार्च 2023 तक 1117 रेल हादसे हो चुके हैं। इनमें सैंकड़ों लोगों की जानें गई, हज़ारों की तादाद में लोग घायल हुए और करोड़ों की संपत्ति का भी नुक़सान हुआ। परंतु इन हादसों से कोई सबक़ नहीं लिया गया। ग़ौरतलब है कि पिछले साल जून 2023 में देश में एक भीषण रेल हादसा बालासोर में हुआ था जहां लगभग 300 लोगों की जान गई और क़रीब 900 घायल हुए।
इसके बाद इसी सप्ताह पश्चिम बंगाल में एक ओर रेल हादसा हुआ जिसने रेल सुरक्षा की पोल खोल कर रख दी। यहाँ एक तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक होगा कि सीएजी की एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष में 20 हज़ार करोड़ रुपये आने थे। जिसमें 15 हज़ार करोड़ केंद्र सरकार द्वारा दिये जाते और 5 हज़ार करोड़ रेल मंत्रालय देता। परंतु चार साल बाद मात्र 4225 करोड़ ही आए और इन्हें भी ग़ैर ज़रूरी मदों पर खर्च किया गया रेलवे सुरक्षा पर नहीं।
सोचने वाली बात यह है कि अधिकतर दुर्घटनाओं में मानवीय त्रुटि बताई जाती है। यानी ट्रेन चलाने वाले या रेल की पटरियों और रेल ट्रैफ़िक को संचालित करने वाले, दुर्घटना के ज़िम्मेदार होते हैं। रेल मंत्री द्वारा संसद में दिये गये उत्तर के मुताबिक़ रेलवे में 3.12 लाख रिक्त पद पड़े हैं। ग़ौरतलब हैं कि ट्रेन चलाने वाले लोकोपायलट के 70093 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 21 प्रतिशत पद ख़ाली पड़े हैं। इसी के चलते मौजूदा लोकोपायलटों को लंबे समय तक ड्यूटी पर रहना पड़ता है। थकान और नींद के चलते ऐसे हादसे होना स्वाभाविक है।
परंतु क्या देश में बढ़ती बेरोज़गारी के चलते सरकार को इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए था? विपक्ष द्वारा बार-बार यह सवाल उठाया जा रहा है कि एक के बाद एक हादसे होने के बावजूद किसी भी तरह की नैतिक ज़िम्मेदारी लेने से बचने वाले रेल मंत्री का अपनी कुर्सी पर बने रहना कहाँ तक उचित है? क्या मंत्री जी इस बात पर ध्यान देंगे?