सीएम बनाने से कोई बड़ा नेता नहीं बनता
भाजपा ने जब से तीन राज्यों में नए मुख्यमंत्री बनाए हैं तब से कहा जा रहा है कि यह पीढ़ीगत परिवर्तन है और भाजपा नया नेतृत्व तैयार कर रही है। नई पीढ़ी के हाथों में पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। सिर्फ मुख्यमंत्री या मंत्री बना देने से कोई नेता नहीं बन जाता है। अगर ऐसा होता तो पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जितने नेताओं को मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री बनाया है, सब बड़े नेता हो गए होते। लेकिन हकीकत यह है कि एकाध अपवाद को छोड़ दें तो कोई मंत्री या मुख्यमंत्री बड़ा नेता नहीं बन सका। किसी की ऐसी हैसियत नहीं बन सकी कि वह अपने राज्य में पार्टी को वोट दिला सके या दूसरे राज्य में जाकर प्रचार कर सके। कई जगह तो हालात ऐसे हो गए कि पार्टी को पुराने नेताओं की ओर लौटना पड़ा। मोदी और शाह ने जिन नेताओं को आगे बढ़ाया उनको दूध में पड़ी मक्खी की तरह जब चाहा तब निकाल कर फेंक दिया।
बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 75 विधायकों के साथ नंबर दो पार्टी बन कर उभरी थी और नीतीश कुमार के साथ सरकार बनाई थी तब सभी पुराने नेताओं को छोड़ कर तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। आज ये दोनों नेता कहां हैं, वह किसी को पता नहीं है। झारखंड में भाजपा ने रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन चुनाव हारने के बाद बाबूलाल मरांडी की वापसी कराई गई और उनको कमान सौंपी गई। रघुबर दास को राज्यपाल बना कर ओडिशा भेज दिया गया। अब फिर बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा ही पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। हिमाचल, गुजरात, उत्तराखंड आदि राज्यों में जो हटा दिए गए उनको छोड़िए, जिनको नया बनाना गया उनमें से कोई नहीं है, जो पार्टी को वोट दिला सके। मनोहर लाल खट्टर से लेकर भूपेंद्र पटेल और पुष्कर सिंह धामी तक कोई ऐसा नहीं है, जो पार्टी का बड़ा नेता बन कर उभरा हो। ले-देकर योगी आदित्यनाथ और हिमंत बिस्वा सरमा ही हैं, जो बड़ा नेता बन कर उभरे हैं। इनको दूसरे राज्यों में प्रचार के लिए भी भेजा जा रहा है और अपने राज्य में ये खुद से राजनीति संभाल रहे हैं। बाकी राज्यों में तो सब कुछ दिल्ली से संचालित किए जाने की खबर है।