कांग्रेस हारी है, ‘इंडिया’ नहीं
विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल पार्टियां अब यह नैरेटिव बना रही हैं कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में अगर चार राज्यों में कांग्रेस हारी है तो यह उसकी हार है। इसके गठबंधन यानी ‘इंडिया’ की हार नहीं कहा जा सकता है। इस बात को अलग अलग तरीके से दूसरी पार्टियां कह रही थीं लेकिन बिल्कुल इसी रूप में नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा। इस तरह के बयानों से विपक्षी पार्टियों का मकसद अपने को कांग्रेस की हार से अलग करना है और ‘इंडिया’ के ब्रांड को बचाए रखना है। अगर यह मैसेज बनता है कि लोकसभा चुनाव से पहले ही ‘इंडिया’ हार गई या देश की 28 पार्टियां मिल कर भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती हैं तो अगले साल के चुनाव से पहले ही विपक्ष की संभावना खत्म हो जाएगी।
तभी विपक्षी पार्टियों ने कांग्रेस से दूरी बनाई है। विपक्षी गठबंधन में शामिल एक पार्टी के जानकार नेता ने कहा कि सबको इस बात पर हैरानी हुई कि आखिर कैसे कांग्रेस ने चुनाव नतीजों के बीच यह सोच लिया कि वह हार रही है तो उसके बुलाने से विपक्षी पार्टियां बैठक में शामिल होने पहुंच जाएंगी! असल में विपक्ष की ज्यादातर पार्टियां चाहती थीं कि अभी कांग्रेस अकेले नतीजों का विश्लेषण करे। उसमें विपक्ष की दूसरी पार्टियों को शामिल करने की जरुरत नहीं है क्योंकि चुनाव तो अकेले कांग्रेस ने लड़ा था। सो, तीन राज्यों में भाजपा की भारी भरकम जीत के बाद इस तरह की धारणा पर काम करना विपक्ष के लिए जरूरी था।
इस मामले में विपक्ष की सोच कांग्रेस से बेहतर है। अगर चार राज्यों में कांग्रेस की हार विश्लेषण ‘इंडिया’ की बैठक में होता तो इससे सभी पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर होता। इन पार्टियों के कांग्रेस की बुलाई बैठक में नहीं जाने और अलग अलग पार्टियों की ओर से कांग्रेस पर हमला करने वाले बयान देने का एक फायदा यह हुआ है कि आम जनता में यह मैसेज बन रहा है कि अगर सारी पार्टियां मिल कर लड़तीं तो हो सकता है कि भाजपा को हरा देतीं। आंकड़ों के जरिए भी यह कहानी बताई जा रही है। इससे ‘इंडिया’ को लेकर यह भ्रम बना रहेगा कि अगर भाजपा के हर उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार मैदान में आता है तो भाजपा को हराया जा सकता है।
इसलिए यह तय है कि 17 दिसंबर को जब विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक होगी तो नतीजों के विश्लेषण से ज्यादा इस बात पर ही चर्चा होनी है कि कांग्रेस ने क्यों थोड़ी बहुत सीटें देकर विपक्ष की कुछ छोटी पार्टियों को एडजस्ट नहीं किया? अगर कांग्रेस उनको एडजस्ट करती तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नतीजे अलग हो सकते थे। इस आधार पर विपक्ष गठबंधन में शामिल प्रादेशिक पार्टियां कांग्रेस के ऊपर दबाव बनाएंगी कि वह लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद न पाले। दूसरी ओर कांग्रेस पांच राज्यों में भाजपा से 10 लाख वोट ज्यादा मिलने का आंकड़ा लेकर बैठेगी। उससे पहले कांग्रेस की अपनी बैठक में चुनाव नतीजों पर मंथन होने की संभावना है।