चेहरा ‘कमल’ या नरेंद्र मोदी?
नवंबर 2023 के विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी की राजनीति का नया मोड है। हिसाब से 2023-24 के चुनावों को उनके कार्यकाल के आखिरी चुनाव मानने चाहिए। इसलिए क्योंकि यह सोचना संभव नहीं कि 2028-29 का चुनाव भी उनके चेहरे पर होंगे? बावजूद इसके वे भाजपा, संघ परिवार में किसी चेहरे की जगह बनने नहीं दे रहे है। उनका नारा है चेहरा नहीं कमल। चित्तौड़गढ़ की सांवरियासेठ सभा में उन्होने दो टूक कहा- चुनाव में सिर्फ़ एक ही चेहरा कमल है। हमारा उम्मीदवार सिर्फ़ कमल है। कमल को जिताना है। उन्होने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ और तेलंगाना में कही भी भाजपा के पुराने स्थापित नेता या मुख्यमंत्री का नाम नहीं लिया। न मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का जिक्र किया और न वसुंधरा राजे का।
जाहिर है 2023-24 के अपने आखिरी चुनाव में वे उलटे और ज्यादा भाजपा को एकेश्वरवादी मतलब एक अकेले मोदी की पार्टी बना दे रहे है। कल्पना करें 2029 के चुनाव की, मोदी के बाद का कोई चेहरा क्या पका और बना हुआ मिलेगा? जब कोई और चेहरा ही नहीं तो भला अमित शाह या योगी आदित्यनाथ का यदि मनोनयन भी हुआ तो एकेश्वर नरेंद्र मोदी के हाथों होगा।
बहुत बारीक और बड़ा मामला है यह। मौजूदा विधानसभा चुनाव की मोदी सभाओं पर गौर करें। उनका नया व निर्णायक मैसेज क्या है? मैं मतलब कमल। 2014 में चुनाव जीतने के बाद लालकृष्ण आडवाणी, डा मुरलीमनोहन जोशी आदि बुजुर्ग के चेहरे हाशिए में। 2019 के चुनाव में बाकि सभी शूरवीर नरेंद्र मोदी के पैदल सिपाही। अब 2023-24 में क्षत्रप और पैदल सेना सब खत्म। अब सब एकेश्वर की लीला के मात्र दर्शक।
भाजपा के इस एकेश्वरीकरण में कमल की आड सभी चेहरे लुप्त होते हुए। ईश्वर समान अवतार के खूंटे पर संघ-भाजपा की राजनीति और हिंदू विचारधारा में सिमट गई या सिमटती हुई। कोई आश्चर्य नहीं जो मौजूदा चुनाव की अभी तक की तमाम गतिविधियों में न प्रदेश स्तर के पार्टी संगठन, कमेटियां, प्रदेश अध्यक्षों, कार्यसमितियों या केंद्रीय स्तर की केंद्रीय चुनाव समिति की सामूहिक गतिविधियों कीकोई आड है और न प्रदेश या जिला स्तर पर उम्मीदवार तय होने की हलचल।
लाख टके का सवाल है कि शिवराजसिंह चौहान, वसुंधरा राजे, रमनसिंह या एक्सवाईजेड में कोई भी चुनावी प्रक्रिया का साधिकार भागीदार है तो आगेक्या योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्वा, देवेंद्र फडनवीस जैसे चेहरों की वही दशा नहीं होगी जो भोपाल, जयपुर, रायपुर, हैदराबाद में भाजपा के चेहरों की अभी दिख रही है?जो हो रहा है वह ईश्वरीय इच्छा से होता हुआ है। तभी केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव लड़ना पड रहा है तो पुराने विधायक नए चेहरों से रिप्लेस होते हुए है। कह सकते है यह पीढीगत परिवर्तन है। सत्तर पार के मोदीजी पार्टी को चालीस साला उम्र की बना दे रहे है। सो संभव है कि जिस भी प्रदेश में भाजपा जीतेगी वहा मौजूदा या पिछला सीएम वापिस शपथ नहीं नहीं लेगा। प्रदेश की भाजपा सभी सरकारों का चरित्र, चेहरा और चाल वैसी ही होंगी जैसे गुजरात में है। मतलब सबकुछ निराकार और अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभामंडल, एकेश्वर अवतारसे सबकुछ।
कह सकते है नरेंद्र मोदी और उनकी टीम इस आत्मविश्वास में है कि जी-20 के बाद हर वह हिंदू वोट मोदीजी को धारे हुए है जो केवल और केवल उन्ही को देखताऔर मानता है। इसलिए भला शिवराजसिंह, वसुंधरा राजे, योगी आदित्यनाथ आदि का क्या अर्थ?
इस चुनाव में भी नरेंद्र मोदी 36-38 प्रतिशत कट्टर भक्त वोटों का विश्वास पुख्ता बनाते हुए है वहीं बीच के वोटों याकि फ्लोटिंग वोटों को रिझाए रखने का हर संभव फार्मूला आजमा रहे है। वह सब बोल रहे है और कर रहे है जिससे लोगों का ध्यान असल मसलों, रोजमर्रा की जिंदगी से बंटा रहे। विपक्ष और भाजपा की एप्रोच में फिलहाल बड़ा फर्क यह है कि विपक्ष जहां ओबीसी, रैवडियों से भाजपा के वोट तोड़ सकने के ख्यालों में है वही मोदी-शाह की टीम देश की सुरक्षा, विश्व में इमेज, नई -नई झांकियों, वर्ग-वर्ण के छोटे-बड़े (जैसे महिलाओं, नौजवानों, किसान आदि) समूहों व माइक्रो स्तर के प्रबंधों से उन वोटों पर भी काम करता हुआ है जो हिसाब से भाजपा विरोधी उम्मीदवारों को जाने चाहिए।
और विंडबना या हैरान करने वाला तथ्य है कि मोदी-भाजपा और कांग्रेस-विपक्ष दोनों जाने-अनजाने लोगों के उन रियल मसलों को उभरने नहीं दे रहे है जिनकों ले कर हमेशा पहले हर चुनाव हुआ करता था। जैसे भ्रष्ट्राचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि।
भाजपा को चेहरा मुक्त बनाने के अलावा नरेंद्र मोदी के चुनावी भाषण पुराने टैंपलेट में है। विकास और खर्च के लंबे चौड़े आंकडे, विपक्ष करप्ट, कांग्रेस महाभ्रष्ट के उनके जुमले चुनावों का पुराना ढर्रा है। यह हमेशा होता आया है कि चुनाव निकट आते ही वे बड़ी जनसभाएं करेंगे। उनमें उद्घाटनों, हजारों करोड रू के खर्च आदि की बाते होगी। विपक्ष को महाभ्रष्ट बतलाया जाएगा और कार्यकर्ताओ को अपने आपको प्रचार में झौकने का आव्हान होगा। अंहम फर्क सिर्फ यह है कि चेहरा नहींकमल।
इसका एक कारण राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, तेलंगाना में विरोधी पार्टियों के चेहरों के आगे नरेंद्र मोदी के चेहरे पर फोकस की रणनीति है। अशोक गहलोत, कमलनाथ, भूपेश बघेल, चंद्रशेखर राव के आगे खुद नरेंद्र मोदी अपने आपको ले आए है। हिसाब से इसमें जोखिम भी है। सोचे, यदि चार राज्यों में यदि दो राज्यों में भी भाजपा पंचर हुई तब वह हार क्या खुद नरेंद्र मोदी की नहीं मानी जाएगी?
जो हो, भाजपा और संघ परिवार की राजनीति और चाल,चेहरे, चरित्र का एकेश्वरवादीविकास मई 2024 के लोकसभा चुनाव में भारत को बहुत बदलेगा।