राजस्थान में नरेंद्र मोदी लड़ रहे चुनाव!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले नौ वर्षों में किसी प्रदेश (गुजरात व यूपी में भी नहीं) के विधानसभा चुनाव की भाजपा लड़ाई का कंट्रोल अपने पास नहीं रखा। लेकिन राजस्थान का असेंबली चुनाव अपने कंट्रोल में लिया है। हां, राजस्थान में प्रदेश भाजपा या केंद्रीय भाजपा संगठन दिखावे के रोल में है। नरेंद्र मोदी खुद एक-एक बात तय करते हुए हैं। प्रचार-प्रसार और मीडिया प्रबंधन आदि का सारा काम मोदी-जेपी नड्डा कमांड की अधीनस्थ टीमों से होगा। तमाम व्यस्तताओं के बीच नरेंद्र मोदी हर तरह का टेकओवर लिए हुए होंगे। क्यों? कई कारण हैं। एक, आगे के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं जीतने देना। दो, अमित शाह और वसंधुरा राजे का हेडऑन। तीन, मोदी की यह गणित की उनके चेहरे से प्रदेश में आंधी बनेगी। इसलिए मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ सीधे अमित शाह की जिम्मेदारी में रहे तो उनके जलवे में की रिस्क नहीं। चार, राजस्थान में कांग्रेस के अंदरूनी हालात। पांच, पिछले तीन विधानसभा चुनाव के आंकड़ों की भाजपा बनाम कांग्रेस तस्वीर। छह, एआईसीसी व प्रदेश कांग्रेस की हवा-हवाई तैयारियां।
इन बातों का एक-एक कर खुलासा संक्षेप में संभव नहीं है। मोटा-मोटी यह जानें कि नरेंद्र मोदी पिछले चुनाव के आंकड़ों व अलग-अलग जरियों की सर्वे रिपोर्टों, फीडबैक, जमीनी बारीक जातीय हिसाब पर फैसले लेते हैं। तभी आश्चर्य नहीं जो गुरुवार को उन्होंने मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ की क्रमशः उन 39 व 21 सीटों पर उम्मीदवार सबसे पहले घोषित कराए, जिनमें भाजपा लगातार हारती आई है या जात-पात की गणित व कांग्रेज के दिग्गजों का दांव है। दोनों प्रदेशों की लिस्ट में एसटी-एससी या मुस्लिम बहुल क्षेत्र या दिग्विजय सिंह के क्षेत्र, भूपेश बघेल की सीट (जो उम्मीदवार घोषित किए उनके जीतने के अवसर भले कम हो) पर उम्मीदवार देकर यह मैसेज तो बनवा दिया है कि भाजपा सर्वाधिक कमजोर सीटों पर सर्वाधिक तैयारी और फोकस करते हुए है।
बतौर उदाहरण मुस्लिम बहुत भोपाल मध्य में भाजपा ने ध्रुवनारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया। इस सीट पर कांग्रेस का मुस्लिम विधायक है। कहते है कांग्रेस ने पिछले चुनाव में अपने खांटी पुराने कांग्रेसी मुस्लिम को बदल ओवैसी के कहने पर इसे टिकट दी। पहले 2008 में कांग्रेसी विरासत के ध्रुवनारायण सिंह ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता था। बाद में शहला मसूद की हत्या की साजिश में उनका नाम आया तो साइडलाइन हुए। ध्रुवनारायण सिंह की भाजपा में लॉबी नहीं थी। सो, सीबीआई से क्लीन चिट हुई तब भी हाशिए में। प्रदेश नेताओं से नाम नहीं गया हुआ था। तभी कहते हैं जब दिल्ली की बैठक में मोदी-शाह ने ध्रुवनारायण सिंह का नाम रखवाया तो प्रदेश नेताओं ने दबे में ही सही विरोध कर कहा इससे हल्ला बनेगा। पुरानी खबरें ताजा होंगी। लेकिन दो टूक शब्दों में प्रदेश नेताओं की यह कहते हुए बोलती बंद की गई कि जब सीट पर टक्कर लायक दूसरा कोई नहीं है और इससे पार्टी ने एक बार सीट जीती है तो यही उम्मीदवार। क्या इसके खिलाफ अब कोई केस है?…नहीं है तो यह फाइनल।
जाहिर है किसी टिकटार्थी का कोई इतिहास हो, संघ-भाजपा के विचार-संगठन में बेगाना हो लेकिन मोदी-शाह वही नाम तय कर रहे हैं, जो जीतने की अधिकतम संभावना लिए है। लिस्ट में दिग्विजय सिंह के भाई के आगे जातीय गणित का हिसाब कर इसी एप्रोच में महिला उम्मीदवार को उतारा। ऐसे ही भूपेश बघेल के मुकाबले में उनके भतीजे भाजपा सासंद विजय बघेल को उतारा गया। कुल मिलाकर एक-एक मुश्किल या हारने वाली सीट पर भी मोदी-शाह की घेरेबंदी बहुत निर्मम है। मान सकते हैं कि मोदी-शाह (साथ में जेपी नड्डा-ओम माथुर) माइक्रो लेवल की हर सीट पर दिल्ली से नजर रखेंगे।
नरेंद्र मोदी की अपने लेवल की टीम ही राजस्थान की दो सौ सीटों में हर सीट पर न केवल खुद उम्मीदवार तय करेगी, बल्कि यह भी टारगेट होगा कि प्रदेश में तीन बार से लगातार हारती पांच सीटों पर भी भाजपा जीते। पूरा दम लगे।
वैसे राजस्थान में भाजपा की लगातार हारने वाली सीटें मध्य प्रदेश के मुकाबले बहुत कम हैं जबकि प्रदेश में बार-बार सरकार बदलती रही है। नोट रखें जैसे मध्य प्रदेश-छतीसगढ़ के प्रदेश नेताओं को दिल्ली बुलाकर उन्हें उम्मीदवार बता दिए गए वैसे ही राजस्थान के नेताओं को बुलाकर लिस्ट थमा दी जाएगी। मोदी-शाह के पास सर्वे, उम्मीदवारों की पैनल और सब नाम लगगभ तय हुए पड़े हैं।
सोचें, इस सबके मुकाबले कांग्रेस, मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रदेश कांग्रेस नेताओं की तैयारियों का क्या हाल है? नरेंद्र मोदी के आगे जहां अकेले अशोक गहलोत को तैयारी करनी है। साधन जुटाने हैं। चुनावी अधिसूचना के तुरंत बाद पाला बदलने वाले टीवी चैनलो, मीडिया को संभालना है तो वही सचिन पायलट और टिकटार्थियों की मारामारी से भी जूझना है। एंटी इनकम्बेसी लिए मंत्रियों-विधायकों के टिकट काटने हैं। नरेंद्र मोदी के कमान संभालने के बाद जयपुर के मीडिया की यह धारणा फालतू है कि वसुंधरा राजे को भाव नहीं देने से चुनाव में भाजपा डूबेगी। और यदि ऐसा पहले था भी तभी तो नरेंद्र मोदी ने कमान संभाली है। ऐसे में आगे क्या -क्या बदलेगा, चुनाव माहौल कैसा बनेगा, यही राजस्थान चुनाव का असल मामला है।