यह तो बेरहमी है

जिस देश में उच्चतर शिक्षा पहले से समस्याग्रस्त स्थिति में हो, वहां आम छात्रों के लिए उसे महंगा बनाना किस रूप में तार्किक नीति हो सकती है, इसे समझना कठिन है। हाल में कई विश्वविद्यालयों में फीस में हुई भारी बढ़ोतरी के बाद अब खबर है कि हॉस्टलों और पीजी कमरों पर 12 प्रतिशत जीएसटी भी लगा दिया गया है। महंगाई के इस दौर में जब आम परिवारों की वास्तविक पहले से घट रही है, गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को इस टैक्स का बोझ भी उठाना होगा। इसलिए सरकार को इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर तुरंत विचार करना चाहिए। वरना, यह कर लगाना एक तरह की बेरहमी समझा जाएगा। सरकार कह सकती है कि यह निर्णय जीएसटी काउंसिल के अथॉरिटी ऑफ एडवांस्ड रूलिंग (एएआर) ने दिया है। उसकी दो अलग-अलग बेंचों ने इस मामले में एक जैसे फैसले दिए हैं। इसके तहत नया टैक्स प्रभावी हुआ है। तो अब किसी हॉस्टल या पीजी (पेइंग गेस्ट) कमरे का किराया अगर 10 हजार रुपये था, तो अब यह 11,200 रुपये हो जाएगा। जिन दो मामलों में ये फैसले आए, उनमें एक बेंगलुरु बेंच का है।

एक याचिका में बेंच से महिलाओं के लिए हॉस्टल और पीजी सेवायें चलाने वाली एक कंपनी ने अपील की थी कि निजी हॉस्टलों को आवासीय परिसरों की ही श्रेणी में डाला जाए और उन पर जीएसटी ना लगाया जाए। आवासीय परिसर को किराए पर देने पर उन पर जीएसटी नहीं लगता है। बेंगलुरु एएआर ने अपने फैसले में कहा कि हॉस्टल और पीजी कमरों को आवासीय परिसर नहीं माना जा सकता, क्योंकि वहां अपरिचित लोग एक साथ रहते हैं और हर महीने प्रति बिस्तर के आधार पर बिल बनाए जाते हैं। इसी तरह हॉस्टल चलाने वाली नोएडा स्थित एक कंपनी ने लखनऊ एएआर से कहा था कि वो आवासीय सेवाएं देती है, इसलिए उससे जीएसटी नहीं वसूला जाए। लेकिन इस मामले में भी एएआर इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। लेकिन इन फैसलों का सीधा असर हॉस्टलों और पीजी कमरों में रहने वाले छात्रों पर पड़ेगा। क्या इसे शिक्षा को हतोत्साहित करने वाला निर्णय नहीं माना जाना चाहिए?

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