किस एकता में ज्यादा दम?

विपक्षी दलों का एकजुटता प्रयास बंगलुरू पहुंचने के मौके पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को भी अपने गठबंधन- नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) का ख्याल आया। तो आज जबकि बंगलुरू में 24 विपक्षी पार्टियों की बैठक पूरी होगी, तो नई दिल्ली में एनडीए की भी बैठक होगी, जिसमें बताया गया है कि 19 पार्टियां हिस्सा लेंगी। इस धारणा के युद्ध में कि भाजपा के साथी दलों की कमी नहीं है, उसने कुछ बिछड़े नेताओं (और उनके दलों) को फिर से अपने साथ जोड़ लिया है। इनमें उत्तर प्रदेश के ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान तथा बिहार के चिराग पासवान शामिल हैं। वैसे उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए अधिक चिंता का पहलू नहीं है। लेकिन पिछले आम चुनाव के बाद से तीन वैसे राज्यों में समीकरण बदले, जहां से एनडीए को लोकसभा की भरपूर सीटें मिली थीं। फिलहाल, ऐसा लगता है कि इसमें से महाराष्ट्र को उसने दोबारा एक हद तक साध लिया है, जबकि बिहार में भी क्षति-पूर्ति की उसकी कोशिशों में प्रगति हुई है।

इसीलिए ध्यान इस पर था कि कर्नाटक की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जनता दल (सेक्यूलर) को जोड़ने में उसे सफलता मिलती है या नहीं। फिलहाल, ऐसा नहीं हुआ है, लेकिन यह संभावना अभी खत्म भी नहीं हुई है। एनडीए के साथ लाभ के कई पहलू हैं। धन, प्रचार और संस्थाओं का उसकी तरफ झुकाव आदि तो फिलहाल भारतीय राजनीति का स्थायी पहलू बने हुए हैँ। इसके साथ ही एक बड़े दल के रूप में भाजपा अपनी शर्तों पर गठबंधन चलाने की स्थिति में भी है। ऐसे में उसका ध्यान खासकर वैसे दलों या नेताओं पर केंद्रित है, जिनके आने से जातीय-सामुदायिक समीकरणों में उसे लाभ हो या फिर जिससे विपक्ष के समीकरण गड़बड़ाते हों। दूसरी तरफ विपक्ष की चर्चा सीटों के तालमेल पर सिमटी हुई है। उसके नेताओं की प्राथमिकता पर सवाल अभी तक बने हुए हैँ। अगर बंगलुरू बैठक से ये दल ऐसे भ्रमों को दूर करने में कामयाब रहे, तो बेशक अपनी मजबूत एकता को दिखाने में वे सफल रहेंगे। वरना परस्पेसन वॉर एनडीए बाजी एनडीए की तरफ झुक सकती है।

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