राजस्थान में 104 के करीब बोर्ड-आयोग, टॉप कुर्सियों में ब्यूरोक्रेट आगे
राजस्थान में विभिन्न आयोग-बोर्ड-अथॉरिटी में चेयरमैन व सदस्यों के 8 पदों के लिए कई रिटायर्ड IAS-IPS जैसे ब्यूरोक्रेट जी-जान से कोशिशों में जुटे हैं।
उन्हें विश्वास है कि जैसे उनसे पहले सरकार ने 22 ब्यूरोक्रेट्स को इस तरह के पद देकर नवाजा, वैसे ही उन्हें भी पुरस्कृत किया जाएगा।
इस बीच जो ब्यूरोक्रेट रिटायर्ड नहीं हुए हैं, वे भी इन पदों के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं। राजस्थान में कहां-कहां टॉप ब्यूरोक्रेट को नियुक्तियां दी जा चुकी हैं? नियुक्तियां देने के क्या नियम हैं? पढ़िए इस स्पेशल रिपोर्ट में…
राजस्थान में 104 के करीब बोर्ड-आयोग, टॉप कुर्सियों में ब्यूरोक्रेट आगे
प्रदेश में 104 के करीब संवैधानिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक आयोग-बोर्ड-अथॉरिटी हैं। ऐसा नहीं है कि सभी में प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त किया गया हो, जिस भी पार्टी की सरकार है वो अपने कार्यकर्ताओं को ऐसे पदों पर नवाजती हैं, लेकिन ब्यूरोक्रेट भी इस मामले में पीछे नहीं है।
अब एक बार फिर खाली हुए 8 शीर्ष पदों पर नियुक्ति पाने के लिए ब्यूरोक्रेट्स ही कतार में दिख रहे हैं। इससे पहले बीते कुछ सालों में 20 से ज्यादा पद ऐसे हैं जिन पर पूर्व ब्यूरोक्रेट्स को ही नियुक्त किया गया है।
हाल ही में राहुल गांधी ने भी कहा था कि सरकार ब्यूरोक्रेट्स चला रहे हैं, हालांकि इस दौरान उन्होंने योजनाओं की तारीफ भी की थी।
राजस्थान में 14 यूआईटी, साढ़े चार साल से चेयरमैन पद खाली
प्रदेश के 75 साल के राजनीतिक-प्रशासनिक इतिहास में यह पहली बार है, जब प्रदेश की 14 यूआईटी (नगर विकास न्यास) में चेयरमैन के पद पिछले साढ़े चार सालों से रिक्त चल रहे हैं।
इन सभी पदों का कार्यभार जिलों में कलेक्टर संभाल रहे हैं। कोटा, भीलवाड़ा, अलवर जैसे बड़े UIT में बिना चेयरमैन के ब्यूरोक्रेट ही प्रशासनिक कार्यों के निर्णय ले रहे हैं।
साढ़े चार साल में इन्हें भरा नहीं गया है। वहां चेयरमैन के अलावा 4 से 10 सदस्यों की भी नियुक्ति करनी होती है, वो भी नहीं हुई।
एआईसीसी सदस्य रघुवीर मीणा ने बताया कि गुरुवार को हुई बैठक में राहुल गांधी ने सरकार की खूबी बताते हुए योजनाओं की तारीफ की थी, साथ ही उन्होंने चेताया था कि योजनाएं सरकारी अफसरों की बजाय, पार्टी कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
सरकार में दिखना चाहिए कि कार्यकर्ता फ्रंट पर हैं और वे जनता तक कल्याणकारी योजनाओं को लेकर जा रहे हैं।
हां, ये बात सही है कि जितनी भी यूआईटी और अन्य बोर्ड निगम हैं, वहां पद तुरंत भरे जाने चाहिए और इन पदों पर राजनीतिक नियुक्तियां की जानी चाहिए।
रिटायरमेंट से पहले ही RERA चैयरमेन पद के लिए आवेदन
राजस्थान रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) को राज्य सरकार के सबसे ऊंचे प्रतिष्ठित बोर्ड-अथॉरिटी में से गिना जाता है। रेरा के चेयरमैन पद पर आवेदन के लिए 5 जुलाई अंतिम तारीख तय की हुई थी।
इसके लिए 5 जुलाई की शाम को 4 बजकर 45 मिनट पर (अंतिम समय से ठीक 15 मिनट पहले) अतिरिक्त मुख्य सचिन (खान पेट्रोलियम) वीनू गुप्ता ने आवेदन कर दिया।
IAS वीनू गुप्ता ने रिटायर होने से 6 महीने पहले ही रेरा चेयरमैन पद के लिए आवेदन कर दिया है।
राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में मुख्य सचिव उषा शर्मा के बाद वीनू ही सबसे सीनियर हैं। मुख्य सचिव उषा को हाल ही 30 जून को रिटायर होने के बावजूद केन्द्र व राज्य सरकार ने 6 महीने का कार्यकाल विस्तार दे दिया है तो वीनू के मुख्य सचिव बनने के सारे अवसर समाप्त हो गए हैं।
क्योंकि उनका 31 दिसंबर-2023 में रिटायर होना है। लेकिन रिटायर होने से छह महीने पहले ही उन्होंने रेरा के चैयरमेन पद के लिए आवेदन कर दिया है।
दो रिटायर्ड IAS और एक चीफ इंजीनियर और बने दावेदार
RERA चैयरमेन बनने के लिए वीनू गुप्ता से पहले दो रिटायर्ड आईएएस पी. के. गोयल और रविशंकर श्रीवास्तव भी आवेदन कर चुके हैं। गोयल शिक्षा विभाग और श्रीवास्तव विभागीय जांच विभाग से अतिरिक्त मुख्य सचिव के पदों से पिछले 6 महीनों में रिटायर हुए हैं।
रियल एस्टेट बिजनेस को नियंत्रित करने वाली अथॉरिटी को टॉप ग्रेड माना जाता है। रेरा में नियुक्ति 5 साल तक के लिए की जाती है।
रियल एस्टेट बिजनेस को नियंत्रित करने वाली अथॉरिटी को टॉप ग्रेड माना जाता है। रेरा में नियुक्ति 5 साल तक के लिए की जाती है।
इनके अलावा राजस्थान हाउसिंग बोर्ड के एक रिटायर्ड चीफ इंजीनियर एस. एल. गुरनानी ने भी आवेदन किया है। वीनू चूंकि वर्तमान में दूसरे नंबर की सीनियर मोस्ट ब्यूरोक्रेट हैं, ऐसे में इन चारों उम्मीदवारों से वीनू का दावा ही ज्यादा मजबूत माना जा रहा हैं।
रेरा में फिलहाल दो सदस्य हैं शैलेंद्र अग्रवाल और एस. एस. सोहता। दोनों ही रिटायर्ड आईएएस हैं। फिलहाल सदस्य अग्रवाल के पास ही रेरा के चैयरमेन पद का कार्यभार सौंपा हुआ है।
सूचना आयुक्त के 3 पद खाली : तीन पूर्व IAS दौड़ में, दो पदों पर पहले से ही रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट
प्रदेश में 28 जून-2023 को प्रशासनिक सुधार विभाग ने राज्य सूचना आयोग में सदस्य की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी कर दिया है।
इसमें आवेदन की अंतिम तारीख 31 जुलाई है। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कार्यरत डी. बी. गुप्ता प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव रह चुके हैं। वहीं दूसरे सदस्य एम. एल. लाठर राज्य के पुलिस महानिदेशक जैसे शीर्ष पद पर रहे हैं।
अब आयोग में दो सदस्यों के जल्द ही रिटायर होने के कारण पद रिक्त होने वाले हैं। एक सदस्य सितंबर-2022 में रिटायर हो चुके हैं।
ऐसे में 3 सदस्यों के पदों को इस नए विज्ञापन के जरिए आने वाले आवेदकों में से भरा जाएगा। सूत्रों के अनुसार हाल ही रिटायर हुए दो डीजी रैंक के आईपीएस सहित 3 पूर्व आईएएस इन पदों को पाने के लिए दौड़ में हैं।
RPSC में चार सदस्यों के पद खाली : कई ब्यूरोक्रेट, प्रोफेसर, राजनीतिक कार्यकर्ता कतार में
राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) में सदस्यों के चार पद रिक्त चल रहे हैं। इन में एक पर सीएम गहलोत के विशेष सचिव देवाराम सैनी की नियुक्ति पक्की मानी जा रही है।
उनकी नियुक्ति के लिए सरकारी स्तर पर राज्यपाल को अनुशंषा हो चुकी है। सैनी आरएएस अफसर हैं और 5 साल बाद रिटायर होंगे। वे आरपीएससी में सदस्य बनेंगे तो उनका कार्यकाल छह साल बाद पूरा होगा।
इन पदों को भरने के लिए आरपीएससी के चेयरमैन संजय श्रोत्रिय ने राज्य सरकार को पत्र भी लिखा है। सरकार संभवत: चुनावी आचार संहिता लगने (अक्टूबर मध्य) से पहले सैनी सहित अन्य तीन पदों पर सदस्यों की नियुक्ति कर देगी।
इन रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को नवाजा है सरकार ने
आम तौर पर हर राज्य में हर मुख्यमंत्री के कार्यकाल में रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को बोर्ड-निगम-आयोग में पद देकर नवाजा जाता रहा है, लेकिन अभी तक देश के किसी भी राज्य में ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक ही सरकार के कार्यकाल में 20-25 ब्यूरोक्रेट्स को इस तरह की प्रसाद स्वरूप नियुक्तियां मिली हों।
1. निहाल चंद गोयल
गोयल प्रदेश के मुख्य सचिव रहे हैं। उन्हें रेरा का चैयरमेन बनाया गया। एक महीने पहले ही वे रेरा के चेयरमैन से सेवानिवृत्त हुए तो सरकार ने उन्हें नव निर्मित राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर (मल्टीपर्पज कल्चरल सेंटर) का निदेशक नियुक्त कर दिया है।
2. चेतन देवड़ा : आरएएस से प्रमोट होकर आईएएस अफसर बने चेतन देवड़ा को रिटायर होने के बाद राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय प्राधिकरण का सदस्य बना दिया गया है।
3. अरविंद मायाराम : केन्द्रीय वित्त सचिव से मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार
केन्द्रीय वित्त मंत्रालय में सचिव रहे अरविंद मायाराम हैं गहलोत के आर्थिक सलाहकार। वे राजस्थान कैडर में आईएएस थे। उन्हें गहलोत ने 2019 में अपना सलाहकार बनाया था। मायाराम ने हाल ही भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी से मुलाकात भी की थी। वित्तीय मामलों पर उनकी गहन पकड़ मानी जाती है।
4. डॉ. गोविंद शर्मा : आईएएस की परीक्षा में टॉप-10 में चुने गए थे। राजस्थान में विभिन्न विभागों की कमान संभालने के बाद वे सीएम गहलोत के पिछले कार्यकाल (2008-13) में वित्त विभाग के प्रमुख शासन सचिव बने। रिटायर होने के बाद उन्हें गहलोत ने अपने वर्तमान कार्यकाल में सलाहकार बनाया। बजट तैयार करने में डॉ. शर्मा की सलाहों को गहलोत ने तरजीह दी है।
5. जी.एस. संधू : नगरीय विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव पद पर रह चुके जी. एस. संधू को गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल में हुए एकल पट्टा प्रकरण जेल भी जाना पड़ा था। संधू को सीएम गहलोत और मंत्री शांति धारीवाल का विश्वसनीय अफसर माना जाता है। संधू को 2020 में सरकार ने नगरीय विकास विभाग का सलाहकार बनाया। हालांकि संधू बतौर मासिक वेतन केवल एक रुपया ही लेते हैं।
6. डी. बी. गुप्ता : एक के बाद एक तीन टॉप पोस्ट पर नियुक्ति
आईएएस गुप्ता वसुंधरा सरकार (2013-18) में फरवरी-2018 में मुख्य सचिव बने। दिसंबर-2018 में सरकार चली गई, लेकिन तब भी मुख्यमंत्री गहलोत ने उन्हें बदला नहीं बल्कि मुख्य सचिव बनाए रखा। आम तौर पर नई सरकार बनते ही मुख्य सचिव को बदलने की परम्परा रही है। मुख्य सचिव से रिटायर होने के बाद गुप्ता को गहलोत ने 2020 में खुद का सलाहकार बनाया था और वर्ष 2021 में प्रदेश का मुख्य सूचना आयुक्त बनाया। गुप्ता को इस तरह से एक के बाद एक लगातार तीन टॉप पोस्ट्स मिली। गुप्ता मौजूदा पद से दिसंबर-2023 में रिटायर होंगे।
7. भूपेन्द्र यादव : डीजीपी से रिटायर होते ही RPSC के चेयरमैन बने
प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहने के बाद भूपेन्द्र यादव को आरपीएससी का चेयरमैन नियुक्त किया गया। यादव को 2020 में रिटायर होने के बाद राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC-अजमेर) का चेयरमैन बनाया गया। वे दो साल उस पद पर रहने के बाद 2022 में रिटायर हो गए।
8. आलोक त्रिपाठी : राजस्थान कैडर में ADG रैंक तक पहुंचे IPS अफसर आलोक त्रिपाठी वर्तमान में सरदार पटेल पुलिस विश्वविद्यालय (जोधपुर) के कुलपति हैं। उन्हें गहलोत ने 2020 में यह जिम्मेदारी सौंपी थी।
9. रामलुभाया : नए जिलों के गठन की कमेटी के अध्यक्ष
मुख्यमंत्री गहलोत के पिछले कार्यकाल (2008-13) में जलदाय विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर रहे आईएएस अफसर रामलुभाया को सीएम गहलोत ने 2021 में नए जिलों के गठन के लिए बनी कमेटी का चेयरमैन बनाया। कमेटी की सिफारिश पर ही राजस्थान में नए 15 नए जिलों का गठन किया जा चुका है और 4 नए जिलों का गठन प्रक्रियाधीन है। कमेटी अब कुछ दूसरे नए जिलों के प्रस्ताव पर भी सरकार को रिपोर्ट सौंपने का काम कर रही है।
IAS रामलुभाया (मध्य में) की कमेटी को हाल ही में सरकार ने एक्सटेंशन दिया था।
10. खेमराज चौधरी : प्रमुख कार्मिक सचिव के पद से रिटायर होने के बाद चौधरी वर्तमान में जयपुर के प्राइवेट विश्वविद्यालय में चांसलर के पद पर कार्यरत रहे हैं। गहलोत ने उन्हें 2021 में कर्मचारियों के विभिन्न मुद्दों पर सिफारिशों की रिपोर्ट देने के लिए गठित कमेटी का चेयरमैन बनाया है।
11. निरंजन आर्य : मुख्य सचिव से मुख्यमंत्री के सलाहकार
आर्य 2021 में प्रदेश के मुख्य सचिव रहे हैं। उन्हें गहलोत ने उनसे सीनियर 10 आईएएस अफसरों की सीनियिरिटी को उलांघकर मुख्य सचिव बनाया था। आर्य की पत्नी संगीता आर्य को भी गहलोत ने इसी कार्यकाल में आरपीएससी में सदस्य बनाया है। आर्य को जनवरी-2022 में रिटायरमेंट के बाद गहलोत ने अपना सलाहकार बनाया। आर्य वर्तमान में इसी पद पर हैं।
12. मधुकर गुप्ता : जयपुर के पूर्व संभागीय आयुक्त मधुकर गुप्ता को सीएम गहलोत ने राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर नियुक्ति दी हुई है।
13. बी. एन. शर्मा : रिटायर्ड आईएएस बी. एन. शर्मा को बिजली कंपनियों की रेगुलेटरी अथॉरिटी का चेयरमैन बनाया हुआ है। शर्मा जयपुर के कलेक्टर रहे हैं और विधानसभा अध्यक्ष सी. पी. जोशी के साले और मौजूदा मुख्य सचिव उषा शर्मा के पति हैं।
14. संजय श्रोत्रिय : मुख्यमंत्री की सिक्योरिटी से आरपीएससी अध्यक्ष
आरपीएस से प्रमोट होकर आईपीएस बने संजय श्रोत्रिय को 2022 में राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC-अजमेर) का चेयरमैन बनाया गया। श्रोत्रिय लंबे समय तक सीएम गहलोत के सुरक्षा दस्ते (सीएम-सिक्योरिटी) की कमान संभालते चुके हैं। उन्हें हाल ही ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने पेपरलीक मामले में नोटिस दिया है।
15. हरिप्रसाद शर्मा : RPS से आईपीएस और अब कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष
शर्मा भी आरपीएस से प्रमोट होकर आईपीएस बने थे। वे प्रदेश में जयपुर ग्रामीण, बीकानेर, अजमेर, नागौर जिलों में पुलिस अधीक्षक पद पर रहे हैं। शर्मा को 2020 में गहलोत ने कर्मचारी चयन आयोग (जयपुर) का चेयरमैन बनाया था। वे जल्द ही रिटायर होने वाले हैं।
16. एम. एल. कुमावत : रिटायर्ड आईपीएस अफसर एम. एल. कुमावत बीएसएफ के महानिदेशक रहे हैं। उन्हें गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में आरपीएससी का चेयरमैन और सरदार पटेल विश्वविद्यालय-जोधपुर का संस्थापक कुलपति बनाया था। अब 2021 के चर्चित शिक्षक भर्ती पेपर लीक प्रकरण के बाद नकल रोकने के लिए गठित राज्य स्तरीय कमेटी का अध्यक्ष बनाया हुआ है।
17. एम. एल. लाठर : लाठर राज्य के पुलिस महानिदेशक रहे हैं। वे वर्तमान में राजस्थान सूचना आयोग में आयुक्त हैं। उन्होंने अक्टूबर-2022 में पद पर रहते हुए ही सूचना आयुक्त बनने के लिए आवेदन कर दिया था, जबकि वे विशेष कार्यविस्तार के चलते 60 साल की आयु में रिटायर होने के बावजूद दो वर्ष तक (विशेष कार्य विस्तार) 62 की आयु होने तक पुलिस महानिदेशक के पद पर रहे थे।
18. राजीव स्वरूप : स्वरूप जुलाई 2020 में राजस्थान के मुख्य सचिव बने थे। रिटायर होने के बाद 2021 में उन्हें राजस्थान राज्य पर्यावरण निर्धारण प्राधिकरण का चेयरमैन नियुक्त किया गया। वे वर्तमान में इसी पद पर हैं।
राजीव स्वरूप अक्टूबर 2020 में रिटायर हुए, वे राजस्थान के मुख्य सचिव पद पर चार माह ही रहे थे।
19. बन्ना लाल : राज्य लेखा सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बने बन्नालाल को रिटायर होने पर मुख्यमंत्री गहलोत ने 2019 में उन्हें राज्य वित्त आयोग में सदस्य सचिव के पद पर लगाया था। बन्नालाल का हाल ही निधन हो चुका है।
20. जगरूप यादव : आरएएस से प्रमोट होकर आईएएस बने जगरूप यादव जयपुर के कलेक्टर भी रहे। यादव को सीएम गहलोत ने राजस्थान अपीलेट ट्रिब्यूनल (रेट) में सदस्य बनाया है। चर्चाएं हैं कि यादव जयपुर ग्रामीण या अलवर लोकसभा सीटों के इलाके में आने वाली किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।
21. मातादीन शर्मा : मौजूदा कार्यकाल में राजस्थान एपीलिएट ट्रिब्युनल (रेट) में सदस्य बनाया हुआ है। शर्मा भी प्रमोटी आईएएस हैं।
22. रिटायर्ड आईएएस शैलेन्द्र अग्रवाल रेरा में सदस्य हैं। वहीं आरएएस से प्रमोट होकर आईएएस बने एस. एस. सोहता रेरा में सदस्य हैं।
ब्यूरोक्रेट्स खुद भी रहते हैं सरकारी गाड़ी-बंगले के लिए प्रयासरत
रिटायरमेंट के बाद सरकार के प्रशासनिक, आर्थिक, शैक्षणिक बोर्ड-आयोग में टॉप पोस्टिंग पाने के लिए ब्यूरोक्रेट्स हमेशा प्रयासरत रहते हैं। वे नौकरी के अंतिम वर्षों में इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं। पॉलिटिकल लीडरशिप को अपने काम-काज से खुश करते हैं, ताकि उन्हें रिटायर होने के बाद भी कोई न कोई पोस्टिंग मिल जाए।
आम तौर पर राजस्थान के प्रशासनिक आयोगों-बोर्ड-कमेटी आदि में सदस्यों और चेयरमैन के पदों पर डेढ़ लाख रुपए से लेकर दो लाख रुपए मासिक तक का वेतनमान है। सरकारी बंगला, वाहन, नौकर, ड्राइवर आदि की सुविधाएं वेतन के अलावा मिलती हैं। अधिकांश का कार्यकाल 3 से 5 वर्ष तक रहता है।
क्या केवल IAS-IPS ही हो सकते हैं नियुक्त, कहता है नियम?
मूल रूप से हर बोर्ड आयोग के अलग-अलग नियम हैं कि किस में किन लोगों को कितनी अवधि तक और कितने वेतनमान के साथ सदस्य या चेयरमैन बनाया जाएगा। लेकिन कहीं पर भी ऐसा कोई नियम (एक-दो बोर्ड निगम को छोड़कर) नहीं है, जहां केवल ब्यूरोक्रेट्स को ही सदस्य बनाया जाए।
अपीलेट प्राधिकरण (रेट) मे तय नियम है, जबकि शेष सभी बोर्ड-निगम-आयोग में सरकार और मुख्यमंत्री के विवेक पर ही निर्भर करता है कि वे किसे सदस्य या चेयरमैन बनाएं।
आरपीएससी, यूआईटी, बिजली रेगुलेटरी आदि सहित ज्यादातर बोर्ड निगम में तो विज्ञापन या आवेदन करने की भी आवश्यकता नहीं है। सरकार सीधे ही किसी को भी मनोनीत कर सकती है।
एक्सपर्ट का क्या कहना है?
रिटायरमेंट के 5 वर्ष तक नहीं मिलनी चाहिए पोस्टिंग
राजनीतिक टिप्पणीकार वेद माथुर का कहना है कि सरकार के साथ तीन-चार दशक काम करने पर ब्यूरोक्रेट्स के संबंध व ट्यूनिंग बहुत से राजनेताओं से बहुत गहन स्तर तक हो जाती है। ऐसे में राजनेता जब भी पावर में आते हैं, तो वे अपने चहेते ब्यूरोक्रेट्स को ऐसे पद देकर उपकृत करते हैं।
कई बार तो ब्यूरोक्रेट्स के दबाव में पोस्टिंग के नए नियम भी बना दिए जाते हैं ताकि उन पर केवल आसानी से चयन हो सके। जबकि मूल रूप से IAS-IPS तो किसी भी कार्यक्षेत्र या विषय विशेष के एक्सपर्ट होते ही नहीं हैं। सीधे रूप से कानून बनाया जाए कि सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद 5 वर्ष तक किसी तरह की सरकारी, राजनीतिक, प्रशासनिक, संवैधानिक पोस्टिंग पर ब्यूरोक्रेट की नियुक्ति नहीं की जाएगी।
राजनेताओं के लिए अफसरों का चयन करना ज्यादा आसान व सुविधानजक
रिटायर्ड आईपीएस अफसर बहादुर सिंह राठौड़ का कहना है कि राजनेताओं के लिए ब्यूरोक्रेट्स का चयन ज्यादा आसान व सुविधानजक होता है। वे लंबे अर्से तक उनको नजदीक से देखते हैं, तो उनके गुण-दोष से परिचित होते हैं। हालांकि इस तरह के पदों पर किसी को चयनित करने का अधिकार सीधे मुख्यमंत्री, सरकार या उनके द्वारा बनाई कमेटी आदि के पास ही होता है।