जल जीवन मिशनः जलदाय मंत्री महेश जोशी पर 20 हजार करोड़ के टेंडर घोटाले में दर्ज नहीं हुई एफआईआऱ
जयपुर। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली गहलोत सरकार भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर तक दर्ज करने को तैयार नहीं है। राज्यसभा सांसद और भाजपा नेता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा जल जीवन मिशन में 20,000 करोड़ रुपए के टेंडर घोटाले की एफआईआर दर्ज कराने के लिए कई घंटे से अशोक नगर थाने पर धरने पर बैठे हैं।
इस मामले उनके साथ पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था से जुड़े डॉ. टी. एन. शर्मा की ओर से एफआईआर का मजमून लिखा गया है। इसमें दावा किया गया है कि वित्त विभाग की आपत्तियों के बावजूद जल जीवन मिशन की गाइड लाइन और आरटीपीपी एक्ट के प्रावधानों को दरकिनार करते हुए सरकार ने टेंडर कर दिए।
एफआईआर में इसके लिए जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री डॉ. महेश जोशी, तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव सुबोध अग्रवाल और जल जीवन मिशन के प्रबंध निदेशक डॉ. अविरल चतुर्वेदी को जिम्मेदार मानते हुए कार्रवाई की मांग की गई है।
एफआईआर के मजमून के मुताबिक जलदाय विभाग ने 6 अक्टूबर, 2021 से 24 नवंबर, 2022 के बीच 11 विभिन्न कामों के लिए 48 निविदाएं मांगी थी। इनका कुल मूल्य करीब 20,000 करोड़ रुपए था। इन सभी निविदाओं में प्री साइट विजिट का प्रावधान रखा गया था। इससे निविदा देने वाली फर्मों को पूलिंग करने का मौका मिल गया। वित्त विभाग ने भी 16 दिसंबर, 2022 को एक परिपत्र जारी करके योग्यता की शर्त के रूप में प्री बिड मीटिंग के दौरान साइट विजिट सर्टिफिकेट शामिल करने को गंभीर माना। क्योंकि इसमें पूलिंग की आशंकाएं रहती हैं। वैसे भी यह आरटीपीपी एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ था।
इसके बाद भी जलदाय विभाग के अफसर नहीं जगे। जबकि वित्त विभाग ने 22 मार्च, 2023 को विशेष रूप से कहा था कि वर्ष 2022 के दूसरे 6 माह में वर्ष 2022 के पहले 6 माह की तुलना में परियोजना में उपयोग होने वाली सामग्री की कीमतें कम हो गई थीं। इसका मतलब था कि अगली निविदा में अपेक्षित प्रस्ताव 10 प्रतिशत कम होना चाहिए था।
साथ ही जिन टेंडरों में 10 प्रतिशत प्रीमियम स्वीकार किया गया था, उन पर भी पुनर्विचार होना चाहिए था। इसके बाद 12 अप्रैल, 2023 को वित्त विभाग ने फिर कहा कि टेंडरों को भारत सरकार द्वारा घोषित जेजेएम की विस्तारित तिथि के भीतर पूरा होने का समय होना चाहिए था। साथ ही प्राइस वेरिएशन के कारण राशि का 50 प्रतिशत वहन करने के लिए भारत सरकार की सहमति ली जानी चाहिए थी। लेकिन, इसके लिए केंद्र सरकार की कोई सहमति नहीं ली गई। कई परियोजनाओं को पूरा करने की निर्धारित तिथि वर्ष 2025 रखी गई है। यह जलजीवन मिशन के दिशा-निर्देशों का तो उल्लंघन है ही। जेजेएम की समय सीमा खत्म होने के बाद इन परियोजनाओं का खर्च राज्य सरकार को ही वहन करना पड़ेगा।
फर्जी दस्तावेजों से दे दिए चहेती फर्मों को कार्यादेशः
डॉ. टी. एन. शर्मा के मुताबिक जलदाय विभाग ने जलदाय विभाग ने जलजीवन मिशन के अंतर्गत कुछ टेंडर निकाले थे। इनमें NIT no. 41/2022-23, 73/2022-23, 74/2022-23, 75/2022-23, 46/2022-23, 42/2022-23, 7/2022-23, 6/2022-23, 81/2022-23, 82/2022-23, 89/2022-23 और 90/2022-23 हैं। इन टेंडर्स के अंतर्गत दो फर्मों श्याम ट्यूबवैल कंपनी शाहपुरा जयपुर और गणपति ट्यूबवैल कंपनी शाहपुरा जयपुर को कार्यादेश दिए गए। इन दोनों फर्मों ने टेंडर लेने के लिए भारत सरकार के उपक्रम इरक़ॉन इंटरनेशनल लिमिटेड के कार्य समापन संबंधी फर्जी प्रमाण पत्र पेश किए।
इन दस्तावेजों की रुटीन जांच के लिए जलदाय विभाग के एक अधिकारी ने इरकॉन इंटरनेशनल को 21 मार्च को मेल करके जानकारी मांगी। अगले ही दिन यानि 22 मार्च को इरकॉन इंटरनेशनल ने विभाग के ई-मेल के रिप्लाई में स्पष्ट कर दिया कि ये दस्तावेज पूरी तरह फर्जी हैं। इसके बाद जलदाय विभाग ने पुनः 5 अप्रैल को ई मेल करके इरकॉन इंटरनेशनल से दस्तावेजों का सत्यापन करने को कहा। लेकिन, इरकॉन इंटरनेशल ने पुनः 6 अप्रैल को इन दस्तावेजों को फर्जी बताते हुए संबंधित फर्मों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने को कहा था। लेकिन, इन फर्मों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। क्योंकि इन फर्मों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।