मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना का लाभ लाभार्थियों को मिलने में हो रही देरी का असली जिम्मेदार कौन ?

जगजाहिर के विशेष संवाददाता द्वारा तहकीकात

मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना के तहत फूड़ पैकेट वितरण के लिये सहकारी विभाग ने टेंडर प्रक्रिया को आखिरकार अंतिम रूप दे ही दिया। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तय प्रक्रिया का सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना ने बुधवार को अनुमोदन कर दिया।

प्रकरण में प्रक्रिया तय नहीं होने से तय समय 25 मई से फूड पैकेट का वितरण नहीं हो सका था।

सवाल यह है कि प्रक्रिया तय समय में पूरी नहीं होने के क्या कारण रहे और इसके लिये कौन जिम्मेदार है ?

इस प्रकरण की तह में जायें तो प्रकरण देरी होने के कारणों में भ्रष्टाचार की बू आ रही है। इस बात को प्रमाणित करते हुए खाद्य मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास के बयान को महत्वपूर्ण माना जाना चाहिये जिसमें उन्होंने कहा कि अन्नपूर्णा किट का मामला विधानसभा में खाद्य विभाग को दिया गया था, वित्त विभाग ने इसे सहकारिता विभाग को सौंप दिया, कॉन्फेड में झगड़े हो रहे हैं और आज तक टेंडर नहीं हो पाये, वित्त विभाग किसे उपकृत करना चाहता है, उसकी तलाश कर रहे हैं, मुख्यमंत्री से ऐसा करने वाले अधिकारियों की जांच कराने का आग्रह किया है।

प्रतापसिंह खाचरियावास के उक्त बयान से यह निष्कर्ष निकलता है कि वित्त विभाग में कोई अधिकारी इस रौबदार पोस्ट पर काबिज है जो अपने अनुसार पूरी प्रक्रिया को प्रभावित करना चाहता है, क्योंकि विधानसभा में योजना खाद्य विभाग को आवंटित की गई, जिसके लिये 1000 रूपये करोड़ का बजट भी आवंटित कर दिया गया और विधानसभा से प्रस्ताव पास कराये बिना अन्नपूर्णा फूड़ पैकेट खरीद व वितरण का कार्य सहकारी विभाग को स्थानांतरित कर दिया गया, यह नियम विरूद्ध कार्य करने के लिये वित्त विभाग का कोई रौबदार पोस्ट वाला अधिकारी जिम्मेदार है तो वह कौन हैं ? क्योंकि कुल बजट 4500 करोड़ रूपये में भ्रष्टाचार होना है।

अब भ्रष्टाचार की मरूगंगा की छोटी मछलियों की बात करें तो सहकारिता विभाग का रजिस्ट्रार प्रमोटी आइएएस मेघराज रत्नू है, वैसे भी भ्रष्टाचार के इस युग में आइएएस को सरकार के रिकवरी एजेंट की संज्ञा दी गई है, लेकिन जब आइएएस अधिकारी को मालूम हो कि यह अशोक गहलोत सरकार तो कुछ ही महिनों की मेहमान है, दिसम्बर में चुनाव के बाद तो सरकार बदल ही जायेगी तो ऐसे हालात में आइएएस अधिकारी यह मानकर चलते हैं कि अब रिकवरी सरकार के लिये नहीं करनी और ऐसे में आइएस अधिकारी सरकार के लिये रिकवरी न कर स्वयं के लिये और स्वयं के आला अधिकारियों के लिये रिकवरी करने में जुट जायें और नियमानुसार बनाई गई कमेटी के सदस्य ऐसा नहीं करना चाहें तो नोटशीट पर नोटशीट चलती है और आला अधिकारी कमेटी मेम्बर्स और अपने से छोटे अधिकारियों को धमकाकर अपने अनुसार काम करवाना चाहता है, ताकि मलाई खुद व उसके आला अधिकारी खायें और विभागीय जांच के दायरे में मामला आये तो छोटे अधिकारियों व उनके अधीनस्थों को एपीओ करके या कारण बताओ नोटिस जारी करके अपनी जिम्मेदारी उनके माथे डाली जा सके।

अब सवाल यह रहा कि प्रमोटी आइएएस मेघराज रत्नू यह जिम्मेदारी किस पर डालते तो कॉनफेड के एमडी दिनेश कुमार शर्मा हैं और दिनेश कुमार शर्मा को शायद इस घोटाले का आभास हो गया था कि उनसे इस पद पर रहते हुए कुछ न कुछ गलत करने के लिये दबाव डाला जायेगा इसलिये वह चिकित्सा कारणों का हवाला देते हुए एक माह से भी अधिक अवधि के चिकित्सा अवकाश पर चले गये, जिन्हें डयूटी ज्वाईन करते ही सरकार ने एपीओ कर दिया।

इस बीच दिनेश कुमार शर्मा का कार्यभार अनिलकुमार के पास आ गया, जिनका इस पूरे प्रकरण से दूर दूर तक कोई लेना देना ही नहीं था, कार्यवाहक एमडी का वक्तव्य जो मीडिया में प्रकाशित हुआ था उसके मुताबिक अनिलकुमार ने मीडिया को बताया था कि टेंडर प्रक्रिया में कम से कम एक महिना और लगेगा, इसके बाद ही फूड पैकेट वितरित होंगे, कोशिश है कि जल्द काम हो जाये, लेकिन टेंडर दस्तावेज को उच्च स्तर पर फाइनल करने के बाद ही फाइल आगे बढेग़ी, दस्तावेज पहली बार 28 अप्रेल को समिट कर दिये गये थे।

इससे यह जाहिर होता है कि कॉनफेड के जनरल मैनेजर राजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में 13 अधिकारियों की बनी टेंडर कमेटी ने टेंडर दस्तावेज बिल्कुल सही समय पर तैयार कर पहली बार 28 अप्रेल को समिट कर दिये थे, लेकिन सहकारिता विभाग के उच्च स्तर यानि रजिस्ट्रार प्रमोटी आइएएस मेघराज रत्नू की तरफ से इन दस्तावेंजों को बार बार टीका टिप्पणी कर फाइनल नहीं किया जा रहा था, जिसके कारण ही टेंडर प्रक्रिया में देरी हुई और ऐसा मेघराज रत्नू वित्त विभाग में बैठे अपने किस आला अधिकारी के गोपनीय इशारे पर कर रहे थे असल में यह जांच का विषय है, क्या किसी फर्म से इन लोगों द्वारा पहले ही सांठगांठ कर ली गई थी कि टेंडर तुम्हारी फर्म को दिलवा देंगे और इसके लिये भारी भरकर राशि भी एडवांस में ले ली गई थी कि इतना हमारा कमीशन है और इस सारे होने वाले घोटाले में कॉनफेड के जनरल मैनेजर राजेन्द्रसिंह की अध्यक्षा में बनी ईमानदार कमेटी की ईमानदारी के दस्तावेज भ्रष्टाचार के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रहे थे, जिसके कारण मेघराज रत्नू के मन की नहीं हो पा रही थी और वह गुस्सा खा खा कर फाईल पर अनावश्यक टीका टिप्पणी कर फाइल को लंबित करते रहे और गाज जो कि मेघराज रत्नू पर ही गिरनी चाहिये थी वह गाज मेघराज रत्नू की वजह से छोटे अधिकारियों पर गिरती रही।

4500 करोड़ के प्रोजक्ट के कमीशन के लिये भ्रष्टाचार की इस मरूगंगा में ऊपर से नीचे तक सभी मौन ?

खैर भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इसकी जांच करवानी चाहिये कि ऐसा कैसे हुआ और इसकी सबसे छोटी कड़ी प्रमोटी आइएएस मेघराज रत्नू के रूप में पकड़ में आ सकती है, यह अलग बात है कि जांच के बाद सबसे बड़ी मछली के रूप में भी मेघराज रत्नू का ही नाम निकलकर सामने आये, लेकिन ऐसा कम संभव प्रतीत होता है, क्योंकि भ्रष्टाचार की मरूगंगा में सारा पानी अकेले नहीं पिया जा सकता, यहां पूरी टोली काम करती है, और दिनेश कुमार शर्मा, अनिलकुमार और 13 सदस्यीय कमेटी मेंबर इस भ्रष्टाचार की मरूगंगा को आगे बढऩे में सबसे बड़ी बाधा थे इसलिये टेंडर प्रक्रिया लंबित हुई, इस टेंडर प्रक्रिया में देरी के असल जिम्मेदार और दोषी प्रमोटी आइएएस मेघराज रत्नू हैं जिसके कारण मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना का लाभ लाभार्थियों को समय से नहीं मिल पाया, जिनके खिलाफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को नियमानुसार कार्यवाही कर जांच बैठानी चाहिये, जिससे जनता को पता चले कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भ्रष्टाचार की जरा सी भी बू आने पर किसी आइएएस तक को नहीं बख्शते हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की छवि में चार चांद लग जायें जिससे उन्हें आने वाले विधानसभा चुनावों में निश्चित रूप से फायदा मिलेगा और उन आइएएस अधिकारियों में डऱ व्याप्त होगा जो यह सोचकर कि अशोक गहलोत सरकार तो अब दिसम्बर तक की ही मेहमान है, अशोक गहलोत सरकार अब जाने वाली है इसलिये सरकार की बजाय अपने और अपने साथियों के लिये कमीशन देने वाली फर्मों को अनुचित लाभ पहुंचाकर या अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश कर रिकवरी में लग गये हैं।

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