विपक्ष के गड़बड़ाते समीकरण?
यह तो साफ है कि शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा सामान्य स्थितियों में नहीं दिया है। इसका कारण उनकी अधिक उम्र से बनी परिस्थितियां नहीं हैं। इसके विपरीत पार्टी के अंदर काफी समय से खींचतान के संकेत मिल रहे थे। संभवतः ऐसा पहली बार हो रहा था कि पवार जो चाहते हैं, उनका पार्टी के अंदर कुछ नेता आंख मूंद कर पालन नहीं कर रहे थे। पार्टी के एक धड़े के भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने की चर्चा हाल में रही है। इस बीच पवार ने भी कुछ ऐसे बयान दिए, जिनसे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दल जो नैरेटिव बुन रहे हैं, उसको धक्का लगा। मसलन, पवार का उद्योगपति गौतम अडानी के बचाव में खुलकर बोलना, फिर सरेआम अडानी से मिलना, और साथ ही “अंबानी-अडानी कथानक” सार्वजनिक तौर पर असहमति जताना अपने-आप में एक संदेश लिए रहा है। इन बातों का महाराष्ट्र की राजनीतिक गतिविधियों से क्या संबंध है, इस बारे में सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैँ।
इसी माहौल में पवार ने अचानक पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का एलान किया। मगर मंगलवार शाम तक उनके भतीजे और पार्टी के प्रमुख नेता अजित पवार के इस बयान से भ्रामक स्थिति पैदा हो गई कि पवार अपने इस्तीफे पर पुनर्विचार कर रहे हैँ। जाहिर है, इन घटनाओं से अगर किसी एक पार्टी को सबसे ज्यादा राहत मिलेगी, तो वह भाजपा है। चाहे भाजपा हो या विपक्ष- अगले साल होने वाले में आम चुनाव में दोनों के समीकरणों में महाराष्ट्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लोकसभा में 48 सदस्य भेजने वाले इस राज्य की पिछले दो आम चुनावों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन भाजपा के शिवसेना से संबंध टूटने और बाद में खुद शिवसेना के टूट जाने के बाद से राज्य की राजनीतिक स्थिति अनिश्चित बनी रही है। यह अनिश्चय भाजपा के लिए ज्यादा बड़ी चिंता का विषय रहा है। अब एनसीपी के अंदर हो रही घटनाओं से चिंता का पलड़ा फिर से संतुलन में आता दिख रहा है। सियासी हलकों में इसे विपक्ष के राष्ट्रीय समीकरणों के गड़बड़ाने का संकेत माना जाएगा।