बेमौसम बरसात का कितना असर, क्या मानसून के दौरान पड़ेगा सूखा?

मई का पहला हफ्ता शुरू हो चुका है। ये वो समय है, जब हर साल लोग तपती गर्मी से बेहाल हो जाते थे। उमस और लू से लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता था, लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग है। यूपी, दिल्ली एनसीआर से लेकर पंजाब,राजस्थान, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तक में बारिश हो रही है। इसके चलते मौसम काफी खुशनुमा है।

ऐसे में सवाल ये है कि आखिर ये बारिश होती कैसे है?
बेमौसम बरसात होने का क्या कारण है? इसका कितना असर पड़ेगा? क्या आने वाले समय में जब बारिश का मौसम होगा तो क्या सूखा पड़ेगा? आइए जानते हैं…

पहले जानिए बारिश होती कैसे है?

इसे समझने के लिए हमने मौसम वैज्ञानिक से बात की। उन्होंने कहा, ‘पृथ्वी पर पानी के तीन रूप हैं। भाप, तरल पानी और ठोस बर्फ। जब पानी गर्म होता है तो वह भाप बनकर या गैस बनकर हवा में ऊपर उठता है। जब ऐसी भाप बहुत अधिक मात्रा में ऊपर जमा होती जाती है तो वह बादलों का रूप ले लेती है। इस पूरी प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।’

उन्होंने आगे कहा, ‘जब बादल ठंडे होते हैं तो गैसीय भाप तरल पानी में बदलने लगती है और ज्यादा ठंडक होने पर बर्फ में भी बदलने लगती है। वाष्प के सघन होने की प्रक्रिया को संघनन कहते हैं, लेकिन बारिश होने के लिए केवल यही काफी नहीं है। पहले तरल बूंदें जमा होती हैं और बड़ी बूंदों में बदलती हैं। जब ये बूंदें भारी हो जाती हैं तब कहीं जा कर बारिश होती है। पानी के आसमान से नीचे आने की प्रक्रिया को वर्षण कहते हैं।’

वर्षण के कई रूप होते हैं। यह बारिश, ओले गिरना, हिमपात आदि के रूप में हो सकता है। जब पानी तरल रूप में न गिर कर ठोस रूप में गिरता है तो उसे हिमपात कहेंगे। जब बारिश के साथ बर्फ के टुकड़े गिरते हैं तो उसे ओला कहते हैं। इसके अलावा कई जगह सर्दियों में पानी की छोटी छोटी बूंदें भी गिरती हैं जिन्हें हम ओस कहते हैं।

बारिश हर जगह एकसाथ नहीं होती और हर जगह एक सी नहीं होती है। पृथ्वी पर बहुत सारी प्रक्रियाओं के चलते अलग-अलग स्थान पर अलग- अलग समय और तरह से बारिश होती है। भारत में मानसून की प्रक्रिया के तहत एक ही इलाके में एक से तीन चार महीने तक लगातार या रुक-रुक कर बारिश होती है। कई बार बेमौसम बारिश होती है जिसे स्थानीय वर्षा कहा जाता है। कई बार समुद्र से चक्रवाती तूफान बारिश लाकर तबाही तक ला देते हैं।

अचानक इस गर्मी में क्यों होने लगी बारिश?
आमतौर पर गर्मी के समय पश्चिमी विक्षोभ ज्यादा सक्रिय नहीं होते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार पश्चिमी विक्षोभ ज्यादा सक्रिय हो गए हैं। इसी के चलते बेमौसम बारिश हो रही है।

पश्चिमी विक्षोभ के रूप में चक्रवाती सर्कुलेशन निचले और ऊपरी क्षोभमंडल स्तरों में मध्य पाकिस्तान पर स्थित है। निचले क्षोभमंडल में दक्षिण पाकिस्तान और इससे सटे पश्चिमी राजस्थान के ऊपर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बना हुआ है। चक्रवाती हवाओं का एक क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम उत्तर प्रदेश और दूसरा दक्षिण छत्तीसगढ़ के ऊपर निचले क्षोभमंडल स्तर पर बना हुआ है। ये क्षोभमंडलीय स्तरों में पूर्वी विदर्भ से तमिलनाडु के अंदरूनी क्षेत्र में हवाओं के बदलाव से मौसम बदला हुआ है। इसका असर अगले तीन से चार दिनों तक उत्तर पश्चिम भारत में देखने को मिलेगा।

बेमौसम बरसात का कितना असर?
इसे समझने के लिए हमने कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बात की। उन्होंने कहा, ‘बेमौसम बारिश का दो तरह से असर देखने को मिला है। एग्रोनॉमी के लिए ये नुकसानदेह है। खासतौर पर उन किसानों के लिए जिन्होंने अभी तक गेहूं नहीं काटा था और थ्रेसिंग नहीं करवाई थी। जिनके खेतों में अभी भी गेहूं हैं, वो काफी बर्बाद हो गए होंगे। मार्च में भी बारिश ने गेहूं की फसल पर बुरा असर डाला था।’

जहां, एग्रोनॉमी के लिए ये बारिश मुसीबत लेकर आई है, वहीं हॉर्टिकल्चर के लिए ये बारिश फायदेमंद साबित होगी। फल, फूल और सब्जियों को इस बारिश से काफी फायदा होगा। इससे उत्पादन बढ़ने की संभावना है।’

तो क्या जुलाई-अगस्त में बारिश नहीं होगी?
इसको लेकर दो अलग-अलग दावे हुए हैं। स्काईमेट वेदर ने कहा था कि इस साल सामान्य से कम बारिश होगी और सूखा पड़ने की आशंका है। वहीं, भारतीय मौसम विभाग ने इसके ठीक उलट दावा किया है। मौसम विभाग का कहना है कि इस साल मॉनसून सामान्य रहेगा और इसके 96 प्रतिशत (+/-5% ) रहने का अनुमान है। मौसम विभाग ने ये भी कहा है कि इस साल देशभर में 83.7 मिलीमीटर बारिश होगी। विभाग ने कहा कि जुलाई के आसपास एल-नीनो कंडीशन रह सकती है, लेकिन मॉनसून के साथ एल-नीनो का सीधा संबंध नहीं रहेगा।

बता दें कि प्रशांत महासगार में पेरू के पास सतह का गर्म होना अल नीनो कहलाता है। अल नीनो की वजह से समंदर के तापमान, वायुमंडल में बदलाव होता है और इस बदलाव की वजह से समंदर का तापमान 4-5 डिग्री तक बढ़ जाता है। अल नीनो की वजह से पूरी दुनिया के मौसम पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

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