फिर ‘आपदा’ में ‘अवसर’
चीन, जापान, दक्षिण कोरिया आदि देशों में कोरोना संक्रमण की आई लहर को देखते हुए ऐसा लगता है कि भारत सरकार ने ‘आपदा’ में ‘अवसर’ की अपनी रणनीति को फिर याद किया है। 2020 में कोरोना संक्रमण आते ही सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे मशहूर शाहीनबाग आंदोलन से मुक्ति पा ली थी। अब निशाने पर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा है। वरना, अभी जबकि सरकार ने कोई आम अनिवार्य एडवाइजरी जारी नहीं की है। कहीं भी मास्क पहनना या सोशल डिस्टेंसिंग को जरूरी नहीं बनाया गया है। लेकिन एक भाजपा सांसद की शिकायत पर स्वास्थ्य मंत्री ने यह जरूरी समझा कि राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिख कर कोरोना के खतरे से आगाह किया जाए। पत्र में कहा गया कि या तो यात्रा के दौरान कोरोना नियमों का पालन किया जाए या फिर यात्रा रोक दी जाए।
अगर कोरोना लहर का खतरा वास्तविक है, तो सरकार को पूरा अधिकार है कि वह ऐसे परामर्श या आदेश जारी करे। लेकिन अगर ऐसे पत्र सिर्फ सत्ताधारी समूह के लिए असहजता पैदा कर रही किसी राजनीतिक गतिविधि को भेजा जाएगा, तो उस पर जरूर सवाल उठाए जाएंगे। इसके पहले बच्चों के कथित राजनीतिक उपयोग का आरोप लगाते हुए भी संबंधित सरकारी संस्थान ने भारत जोड़ो यात्रा पर शिकंजा कसने की कोशिश की थी। अलग-अलग मसलों पर जो सियासी विवाद खड़े किए गए, वो तो अलग ही हैं। बहरहाल, सरकार, मंत्रियों और उसकी संस्थाओं को यह अवश्य समझना चाहिए कि ऐसे एकतरफा और राजनीति से प्रेरित महसूस होने वाली उनकी कार्रवाइयों से खुद ही उनकी ही साख कमजोर होती है। उससे सत्ताधारी समूह की समर्थक जमातों में जरूर उत्साह पैदा होता होगा, लेकिन समाज के अन्य हिस्सों में आक्रोश भरी प्रतिक्रिया होती है। यह भी समझने की बात है कि शासन सिर्फ शक्ति से संचालित नहीं होता। बल्कि उसकी साख और प्रतिष्ठा भी एक बड़ी चीज होती है। ‘भेड़िया आया’ वाली कहानी इस सिलसिले में सबको याद रखनी चाहिए। इसलिए कि ऐसा ना हो कि जब सचमुच भेड़िया आए, तब भी ऐसे शोर पर लोग यकीन ही ना करें।