सर्वाधिक आबादी की चुनौती
अगले साल भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। यह अनुमान संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएफपीए का है। 2022 में भारत की आबादी 1.41 अरब तक पहुंच चुकी है। अभी चीन की जनसंख्या 1.43 अरब है। अभी जनसंख्या वृद्धि की जो रफ्तार है, उसके हिसाब से 2050 में भारत की जनसंख्या 1.67 अरब हो जाएगी। लेकिन चीन की आबादी तब 1.32 अरब ही होगी। तो यह अनुमान निराधार नहीं है कि ज्यादा आबादी भूख और गरीबी जैसी चुनौतियों को और गंभीर कर सकती है। इसीलिए बहुत तेजी से जनसंख्या में वृद्धि गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण से लड़ाई और शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार को और चुनौतीपूर्ण बना देती है। भारत को अभी से इन असली चुनौतियों की तरफ ध्यान देना होगा। विशेषज्ञों ने उचित सलाह दी है कि भारत सरकार विकास को समान और टिकाऊ रूप से सब तक पहुंचाने की योजना बनानी चाहिए। इसके लिए सरकार की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक नीतियों में सुधार की जरूरत है।
सार यह कि आने वाले समय में भारत को बढ़ती और बूढ़ी होती आबादी की जरूरतें पूरी करने के लिए उपाय करने होंगे। इनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में सुधार जैसी बातें शामिल होंगी। पिछले साल भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या 13.8 करोड़ पर थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग के मुताबिक 2030 तक इस आयुवर्ग में 19.4 करोड़ लोग होंगे। यानी इस उम्र वर्ग की आबादी में 41 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इस तेजी से बूढ़ी होती जनसंख्या के सामने उपेक्षा, अकेलापन और वित्तीय परेशानियों जैसी कई समस्याएं होंगी। शोध दिखाते हैं कि फिलहाल 26.3 प्रतिशत बुजुर्ग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं। 20.3 प्रतिशत बुजुर्ग ऐसे हैं, जो आर्थिक रूप से किसी अन्य पर निर्भर हैं, जबकि 53.4 फीसदी बुजुर्ग अपने बच्चों पर निर्भर हैं। अभी तो भारत को एक युवा देश कहा जाता है। उसकी 55 प्रतिशत जनसंख्या 30 या उससे कम वर्ष की है, जबकि एक चौथाई आबादी अभी 15 वर्ष की भी नहीं हुई है। जनसांख्यिकीय अनुपात से मिलने वाले इस लाभ को आर्थिक लाभों में तब्दील करने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। सवाल है कि क्या भारत इन चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर पाएगा?