राहुल, प्रियंका का आत्मघाती दस्ता
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस पार्टी का भविष्य हैं। लेकिन राजनीति में सक्रिय होमे के बाद से दोनों ने जाने अनजाने में ऐसे नेताओं को आगे बढ़ाया, जो कांग्रेस के लिए फिदायीन साबित हुए, जिन्होंने अपने छोटे स्वार्थों में कांग्रेस का बड़ा नुकसान किया। सोचें, सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं तो उन्होंने कैसे लोगों को आगे बढ़ाया और राहुल-प्रियंका ने कैसे लोगों की मदद की! सोनिया ने जिनको आगे बढ़ाया उनमें अपवाद के लिए दो-तीन लोग ही होंगे, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ी, भाजपा के साथ गए या कांग्रेस का नुकसान किया। इसके उलट राहुल व प्रियंका ने जिनको आगे बढ़ाया, उनमें ज्यादातर ने कांग्रेस का नुकसान किया।
पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू का प्रयोग इसकी बड़ी मिसाल है। प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं की कीमत पर सिद्धू को बढ़ाया गया, जिन्होंने अपनी बयानबाजी और गुटबाजी के जरिए पार्टी का भट्ठा बैठाने में बड़ी भूमिका निभाई। अजय माकन वैसा ही काम कर रहे हैं, जैसा सिदधू ने पंजाब में किया। माकन ने राजस्थान के प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया है। परिवार के प्रति उनकी निष्ठा को लेकर कोई सवाल नहीं है। लेकिन सोचें, उन्होंने कितना गलत समय चुना। प्रदेश में दिसंबर के पहले हफ्ते में एक उपचुनाव होना है, उसी समय राहुल गांधी की यात्रा राजस्थान पहुंचने वाली है और उसी समय गुजरात में मतदान होना है।
सोचें, माकन ने क्या सोच कर यह समय चुना? उन्होंने यही सोचा होगा कि इसका असर ज्यादा होगा या इससे कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा! सितंबर के आखिरी हफ्ते की घटना को लेकर उन्होंने आठ नवंबर को कांग्रेस अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी। ध्यान रहे दिल्ली के डिजास्टर के बाद भी कांग्रेस ने उनको बड़े पदों पर बनाए रखा और इस साल हरियाणा से राज्यसभा की टिकट भी दी, जहां वे एक वोट से हार गए। बहरहाल, ऐसे लोगों की लंबी सूची है। राहुल ने ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद तीनों को केंद्र में मंत्री बनवाया था। ज्योतिरादित्य ने तो 15 साल बाद मध्य प्रदेश में बनी कांग्रेस की सरकार को ही गिरवा दिया। जितिन और आरपीएन भी अलग अलग समय पर भाजपा के साथ चले गए।
सचिन पायलट भी चले ही गए थे, लेकिन कुछ ऐसा हुआ, जिससे उनका प्रयास सफल नहीं हो सका। राहुल ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अजय कुमार को पार्टी में आने के साथ ही झारखंड का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था और एक चुनाव हारते ही वे पार्टी छोड़ कर चले गए। अब फिर वे वापस आ गए हैं तो उनको पूर्वोत्तर के तीन राज्यों का प्रभारी बनाया गया और दिल्ली में एमसीडी चुनाव का भी प्रभार मिला है। अशोक तंवर को राहुल ने छह साल तक हरियाणा का अध्यक्ष बनाए रखा और वे पार्टी के बारे में अनाप-शनाप बोलते हुए पार्टी छोड़ गए। गुजरात में अमित चावड़ा और परेश धनानी से लेकर केरल में के सुधाकरन तक सारे प्रयोग कांग्रेस के लिए आत्मघाती हुए। यह सही है कि इन नेताओं ने धोखा दिया या गलती की। पर हैरानी है कि कोई नेता अपने छोटे से राजनीतिक जीवन में कैसे इतने धोखेबाज या गलती करने वाले लोगों को बिना पहचाने आगे बढ़ा सकता है?