दूसरी शिव सेना नहीं बनने देगी भाजपा

भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में वक्त काट रही है। तभी यह संभव है कि विधानसभा का कार्यकाल पूरा न हो पाए और भाजपा चुनाव में जाए। याद करें पहले कितनी बार कांग्रेस पार्टी ने ऐसा कारनामा किया है कि उसने छोटी पार्टी को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवाई और अपनी सुविधा के हिसाब से सरकार गिरा दी। भाजपा बिल्कुल उसी लाइन पर चल रही है। उसने शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस की महा विकास अघाड़ी सरकार को गिराने के लिए शिव सेना के अंदर नाराज चल रहे एकनाथ शिंदे से बगावत करा दी और उनको मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन उन पर ऐसी नकेल रखी है कि वे अपने मन से कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं।

यहां तक कि सरकार बनने के एक महीने 10 दिन तक मंत्रियों की शपथ नहीं हो पाई। शिंदे के मुख्यमंत्री और देवेंद्र फड़नवीस के उप मुख्यमंत्री बनने के 40 दिन बाद 18 मंत्रियों की शपथ हुई तो कई दिन बीत जाने के बाद भी विभागों का बंटवारा नहीं हो पाया। यह सब काम शिंदे की ऑथोरिटी को कम करने के लिए किया जा रहा है क्योंकि भाजपा के अंदर न मंत्रियों की संख्या को लेकर कोई कंफ्यूजन था और न विभागों को लेकर है। भाजपा के अंदर किसी तरह की बगावत की भी संभावना नहीं है। सो, मंत्रिमंडल बनने में देरी या विभागों के बंटवारे में देरी से यह मैसेज बना है कि शिंदे का कंट्रोल नहीं है और उनको इस बात की चिंता है कि पार्टी के विधायक वापस उद्धव ठाकरे खेमे में लौट सकते हैं।

असल में भाजपा की रणनीति एकनाथ शिंदे गुट को कमजोर करके रखने की है ताकि एक और शिव सेना नहीं खड़ी हो पाए। सोचें, अगर भाजपा का लक्ष्य शिव सेना के खत्म करना है तो वह एक और शिव सेना क्यों खड़ी करेगी? अगर भाजपा को हिंदुत्व के वोट पर अपना एकाधिकार रखना है तो इसके लिए जरूरी है कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना खत्म हो और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिव सेना खड़ी ही न हो पाए। फिलहाल पार्टी इसी योजना पर काम करती दिख रही है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि उद्धव ठाकरे की पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह जब्त कराने का फैसला आने वाले दिनों में हो सकता है। उसके बाद उद्धव और शिंदे दोनों नए नाम और नए चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे। शिंदे के साथ भाजपा का तालमेल बृहन्नमुंबई नगर निगम यानी बीएमसी चुनाव तक रह सकता है। उसके बाद भाजपा किसी बहाने विधानसभा भंग करके चुनाव में जाएगी। बीएमसी सहित दूसरे नगर निगम में प्रदर्शन के आधार पर भाजपा सीटों की साझेदारी करेगी। भाजपा का प्रयास ज्यादा सीटों पर लड़ कर ज्यादा सीटें जीतने का है ताकि वह 2014 की तरह अकेले दम पर बहुमत के नजदीक पहुंच जाए या बहुमत हासिल कर ले। अगर सब कुछ भाजपा की स्क्रिप्ट के हिसाब से हुआ तो अगले साल के शुरू में चुनाव होना चाहिए। लेकिन स्क्रिप्ट बिगड़ भी सकती है। अगर भाजपा को लगा कि शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस का तालमेल खत्म नहीं हो रहा है तो वह चुनाव टाले रहेगी।

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